एतद्देशप्रसूतस्य - XII
Vishnu Sharma lecture series of Manuwadi Party (Vishnu Sharma was the writer of Panchtantra, the classic on political training to princes)
Training syllabus for CM. UP.
मुलायमवाद क्या है
मुलायम दर्शन
मार्क्स, गाँधी, अम्बेडकर, लोहिया
संघपरिवार तथा मुलायम सिंह यादव की विचारधारा के दार्शनिक पहलू : एक तुलनात्मक विवेचन
Vishnu Sharma lecture series of Manuwadi Party (Vishnu Sharma was the writer of Panchtantra, the classic on political training to princes)
Training syllabus for CM. UP.
मुलायमवाद क्या है
मुलायम दर्शन
मार्क्स, गाँधी, अम्बेडकर, लोहिया
संघपरिवार तथा मुलायम सिंह यादव की विचारधारा के दार्शनिक पहलू : एक तुलनात्मक विवेचन
हल्ला बोल (गाँधीवाद, लोहियावाद, तथा मुलायमवाद का तुलनात्मक विवेचन)
जिंदा कौमे पांच साल तक इंतजार नहीं करती -लोहिया
अपराधियों को संरक्षण किंवा अत्त्याचारों से संघर्ष को नई दिशा
जिंदा कौमे पांच साल तक इंतजार नहीं करती -लोहिया
अपराधियों को संरक्षण किंवा अत्त्याचारों से संघर्ष को नई दिशा
यदि अन्याय के विरूद्ध संघर्ष अराजकता है, तो लोहिया को अराजक कहा जा सकता है
| किन्तु लोहिया अराजक नहीं थे - वे न्याय के लिए संघर्षरत एक असहनशील योद्धा थे |
जब उनकी साझे की सरकार ने अनियंत्रित भीड़ पर गोली चलवा दिया था, तो लोहिया ने उस
सरकार को गिरा दिया तथा गर्जना की कि - 'भीड़ को अनियंत्रित होने का अधिकार है | जिन्दा
कौमें पाँच साल तक इंतजार नहीं करतीं |' लोहियावाद इसी मोड़ पर गांधीवाद से अलग
होता है | गांधीवाद धरने में विश्वास रखता है, लोहियावाद घेराव में | गांधीवाद
मानता है कि कोई एक गाल पर थप्पड़ मारता है तो दूसरा भी फेर दो | सशस्त्र क्रांति
से एक स्तर के नीचे की हिंसा तथा उद्दंडता को लोहिया जायज मानते हैं | मार्क्स की
सशस्त्र क्रांति में गुरिल्ला लड़ाई लड़नी पड़ती है - रेवोल्यूसनरी अंडरग्राउंड होता
है - लोहियावादी ओवरग्राउंड होता है - वह जेलभरो आन्दोलन करता है, आवश्यकता पड़ने
पर जूतालात करता है, वक्त की जरूरत पर इंटे पत्थर मारता है, आग लगा देता है - पर
यहीं उनकी लक्ष्मणरेखा है | वह जानबूझ कर किसी की हत्या नहीं करता है | असंतोष सतह
पर दिखने लगे - मात्र इतना ही उद्देश्य है लोहियावादी हिंसा का ओर यही उनकी
परिसीमा है | जब मैं सैनी (कौशाम्बी) में विद्द्यार्थी था तो होर्डिंग (जमाखोरी)
से नाराज लोहियावादियों ने पूरी सिराथू बाजार को लूट लिया था - भीड़ में जाकर | मगर
जिन्दा जलाया नहीं | क्म्युनिस्ठों की तरह वे वर्गशत्रुओंके उन्मूलन (annihilation)' में विश्वास नहीं करते - किन्तु वर्गशत्रुओं
से लातघूसा करके, गाली गलौज करके, ईंटा पत्थर फेंककर, लूटपाट छीनाझपटी करके जेल
भरने के लिए तैयार रहना ही लोहिया का समाजवादी दर्शन है | गाँधी भी व्यापारियों के
ह्रदय परिवर्तन में विश्वास रखते हैं - लोहिया भी | अंतर मात्र इतना है कि लात -
घूसा, गाली - गलौज को लोहिया ह्रदय परिवर्तन का उत्प्रेरक (catalyst) मानते हैं |
जब लोहिया द्वारा निर्धारित यह समाजवादी हिंसा पूर्ण सुनियोजित तरीके से व्यापक पैमाने पर की जाती है तो इसे मुलायम की विचारधारा का 'हल्ला बोल' कह सकते हैं | मुलायमवाद की धारा में जब 'हल्ला बोल' को का युग चालू हुआ, तो सचमुच व्यापारियों का ह्रदय - परिवर्तन हो गया | जिस व्यापारमंडल में समाजवादियों की घुसपैठ असंभव मानी जाती थी, उसमें सुरेन्द्र मोहन अग्रवाल को मुलायम सिंह ने गले लगाया तथा हजारों कार्यकर्ता व्यापारिक प्रकोष्ठ तथा व्यापार मण्डल को संचालित करने के लिए मिले | मुलायम का ह्रदय कितना व्यापक है, किस तरह वे मात्र हल्ला बोल नहीं करते, बल्कि हृदय - परिवर्तन होने पर सारे प्रोटोकाल तोड़कर उनका स्वागत करते हैं तथा उन्हें गले लगा लेते हैं, इसका उदाहरण देखें - मुलायम का हल्ला बोल पाप के खिलाफ है पापी के खिलाफ नहीं | मुलायम की टीम अराजकों तथा गुण्डों का गिरोह नहीं है | वह अन्याय के खिलाफ लड़ने वालों की टीम है | लोहियावादी सीमित हिंसा का संगठित स्वरुप ही हल्लाबोल है | कानपुर के महेन्द्र बहादुर सिंह तथा मैं स्वयं सुरेन्द्र मोहन अग्रवाल के साथ लखनऊ में भोजन ले रहे थे तभी संदेश प्राप्त हुआ कि मुख्यमंत्री जी ने याद किया है | मैं उठकर जाने लगा तो अग्रवाल जी बोले 'समाजवादी माहौल है, सामंतवादी नहीं' - हमारे साथ चलो | देखा तो वह जो अविश्वसनीय था, वहीँ सामने था | चिलचिलाती धूप में गेट पर स्वयं मुलायम सिंह सारे प्रोटोकाल को तोड़कर स्वागत करने को खड़े थे - उतरते ही गले से लगा लिया तथा कहा कि इतनी कीमती गाड़ी से तुम घूम रहे हो - हमको नहीं घुमाओगे | बिना उत्तर की प्रतीक्षा किये लपककर मुलायम सिंह जी गाड़ी में बैठ गए तथा कूदकर सुरेन्द्र मोहन अग्रवाल भी बैठ गए | गाड़ी का टेस्ट ड्राइव करके लौटे | मुख्यमंत्री के लिए क्या दुर्लभ था ? एक इशारे पर दुनिया की कोई चीज हाजिर हो जाती | मुझे कौशाम्बी के पूर्व विधायक रामचरण त्रिपाठी का एक संस्मरण याद आ गया | प्रथम बार बरगद के निशान से विधायक चुने जाने पर रामचरण त्रिपाठी के घर में सारे इष्ट मित्रों के साथ एक जश्न का माहौल था | तभी एक पुराने मित्र आ पहुंचे तथा रामचरण त्रिपाठी ने फरमाइश की कि इस बार जरा बढ़िया कुर्ता पैजामा सिलवाना - विधान सभा में बैठना पड़ेगा | मित्र ने जवाब दिया - 'अब तो तू दूसरों की सिलाने लायक हो गया' | विधायक जी ने तपाक से कहा - 'कपड़े तो सिला सकता हूँ , पर तेरा प्यार मेरी देह पर कैसे टपकेगा ?' मुलायम सिंह द्वारा सुरेन्द्र मोहन अग्रवाल की गाड़ी की तारीफ़ सुनकर मुझे लगा कि मुख्यमंत्री की कुर्सी तक का सफ़र करने के वावजूद भी लोहिया की आत्मा अभी मुख्यमंत्री निवास में सहर्ष गर्वपूरक विचरण कर रही है |
जब लोहिया द्वारा निर्धारित यह समाजवादी हिंसा पूर्ण सुनियोजित तरीके से व्यापक पैमाने पर की जाती है तो इसे मुलायम की विचारधारा का 'हल्ला बोल' कह सकते हैं | मुलायमवाद की धारा में जब 'हल्ला बोल' को का युग चालू हुआ, तो सचमुच व्यापारियों का ह्रदय - परिवर्तन हो गया | जिस व्यापारमंडल में समाजवादियों की घुसपैठ असंभव मानी जाती थी, उसमें सुरेन्द्र मोहन अग्रवाल को मुलायम सिंह ने गले लगाया तथा हजारों कार्यकर्ता व्यापारिक प्रकोष्ठ तथा व्यापार मण्डल को संचालित करने के लिए मिले | मुलायम का ह्रदय कितना व्यापक है, किस तरह वे मात्र हल्ला बोल नहीं करते, बल्कि हृदय - परिवर्तन होने पर सारे प्रोटोकाल तोड़कर उनका स्वागत करते हैं तथा उन्हें गले लगा लेते हैं, इसका उदाहरण देखें - मुलायम का हल्ला बोल पाप के खिलाफ है पापी के खिलाफ नहीं | मुलायम की टीम अराजकों तथा गुण्डों का गिरोह नहीं है | वह अन्याय के खिलाफ लड़ने वालों की टीम है | लोहियावादी सीमित हिंसा का संगठित स्वरुप ही हल्लाबोल है | कानपुर के महेन्द्र बहादुर सिंह तथा मैं स्वयं सुरेन्द्र मोहन अग्रवाल के साथ लखनऊ में भोजन ले रहे थे तभी संदेश प्राप्त हुआ कि मुख्यमंत्री जी ने याद किया है | मैं उठकर जाने लगा तो अग्रवाल जी बोले 'समाजवादी माहौल है, सामंतवादी नहीं' - हमारे साथ चलो | देखा तो वह जो अविश्वसनीय था, वहीँ सामने था | चिलचिलाती धूप में गेट पर स्वयं मुलायम सिंह सारे प्रोटोकाल को तोड़कर स्वागत करने को खड़े थे - उतरते ही गले से लगा लिया तथा कहा कि इतनी कीमती गाड़ी से तुम घूम रहे हो - हमको नहीं घुमाओगे | बिना उत्तर की प्रतीक्षा किये लपककर मुलायम सिंह जी गाड़ी में बैठ गए तथा कूदकर सुरेन्द्र मोहन अग्रवाल भी बैठ गए | गाड़ी का टेस्ट ड्राइव करके लौटे | मुख्यमंत्री के लिए क्या दुर्लभ था ? एक इशारे पर दुनिया की कोई चीज हाजिर हो जाती | मुझे कौशाम्बी के पूर्व विधायक रामचरण त्रिपाठी का एक संस्मरण याद आ गया | प्रथम बार बरगद के निशान से विधायक चुने जाने पर रामचरण त्रिपाठी के घर में सारे इष्ट मित्रों के साथ एक जश्न का माहौल था | तभी एक पुराने मित्र आ पहुंचे तथा रामचरण त्रिपाठी ने फरमाइश की कि इस बार जरा बढ़िया कुर्ता पैजामा सिलवाना - विधान सभा में बैठना पड़ेगा | मित्र ने जवाब दिया - 'अब तो तू दूसरों की सिलाने लायक हो गया' | विधायक जी ने तपाक से कहा - 'कपड़े तो सिला सकता हूँ , पर तेरा प्यार मेरी देह पर कैसे टपकेगा ?' मुलायम सिंह द्वारा सुरेन्द्र मोहन अग्रवाल की गाड़ी की तारीफ़ सुनकर मुझे लगा कि मुख्यमंत्री की कुर्सी तक का सफ़र करने के वावजूद भी लोहिया की आत्मा अभी मुख्यमंत्री निवास में सहर्ष गर्वपूरक विचरण कर रही है |
इलाहाबाद हाईकोर्ट में हल्ला बोल
का मामला खूब उलझा | फौज, केन्द्रीय सरकार, न्यायपालिका सभी की भूमिका सामने आई -
तमाम आलोचना - प्रत्त्यालोचना के बावजूद मुलायम तथा उनकी सरकार का बालबाका नहीं
हुआ क्यूंकि उनकी नियती में खोंट नहीं था |
एक प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र
के खिलाफ हल्ला बोल भी चर्चा में रहा किन्तु किस प्रकार वह प्रतिष्ठित समाचार पत्र
फेयर रिपोर्टिंग से तौबाकर मुलायम तथा
अन्य वरिष्ठ नेताओं के व्यक्तिगत झूठे चरित्र हनन में संलग्न था - यह किसी से छिपा
नहीं | क्या रामसमुझ पासी तथा दीनानाथ भास्कर के अपुष्ट चारित्रिक प्रकरण में दिए
बयानों को फ्रंट पेज में प्रमुखता से छापना उस समाचार पत्र की मर्यादा को
धूलधूसरित नहीं करता ? अकेले मुलायम को हल्ला बोलने के लिए दोषी ठहराया नहीं जा
सकता है - इस पर समग्रता से विचार करना पड़ेगा | मुलायमवाद का यह हल्ला बोल ही
उन्हें एक विवादास्पद किन्तु सम्मानित आधार प्रदान करता है | क्या यह सच नहीं है कि
जिस समाचार के विरुद्ध मुलायम के चेलों ने हल्ला बोला -
(1) उसने मात्र किसी असंतुष्ट नेता के गंदे गलीज बयानों के अधार पर किसी उच्च प्रतिष्ठित कुमारी महिला नेता को माँ तथा नानी घोषित कर दिया था तथा इसके लिए उस नेता की गंदी घिनौनी मानसिकता की आलोचना न करके उल्टे महिला नेता की प्रतिष्ठा को तार - तार करने का प्रयास किया था |
(2) किसी दूसरे प्रदेश की प्रतिष्ठित महिला नेता को 'सेक्सी सन्यासिन' घोषित करने वाले एक पाक्षिक मैगजीन के लेखों के अंशों को अपने समाचार पत्रों में प्रमुखता से छाप कर गेरुआ वस्त्रों के बारे में 'मैंने प्यार किया' की छवि को प्रचारित किया था |
(1) उसने मात्र किसी असंतुष्ट नेता के गंदे गलीज बयानों के अधार पर किसी उच्च प्रतिष्ठित कुमारी महिला नेता को माँ तथा नानी घोषित कर दिया था तथा इसके लिए उस नेता की गंदी घिनौनी मानसिकता की आलोचना न करके उल्टे महिला नेता की प्रतिष्ठा को तार - तार करने का प्रयास किया था |
(2) किसी दूसरे प्रदेश की प्रतिष्ठित महिला नेता को 'सेक्सी सन्यासिन' घोषित करने वाले एक पाक्षिक मैगजीन के लेखों के अंशों को अपने समाचार पत्रों में प्रमुखता से छाप कर गेरुआ वस्त्रों के बारे में 'मैंने प्यार किया' की छवि को प्रचारित किया था |
हिंसा बुरी है किन्तु जब - जब रजस्वला
हालत में किसी द्रौपदी का की साड़ी को खींचने का कोई पापी दुःशासन प्रयास करता है,
तथा कोई दुर्योधन उसे अपनी जांघ पर बिठाने का निर्देश देते हुए अपनी जांघ पर ताल
ठोकता है, तो किसी भीमसेन को उस दुःशासन की छाती का लहू पीना पड़ता है तथा गदा
युद्ध के नियमों का उल्लंघन करके उस दुर्योधन की जांघ को तोड़ना पड़ता है | जब
मुलायम सिंह तथा उनके चेले हल्ला बोल करते हैं तो आधुनिक भीमसेन की भूमिका का
निर्वाह करते हैं, वे अराजक, हिंसक तथा अपराधिक तत्वों को संरक्षण नहीं प्रदान
करते | किस प्रकार तथा किन लोगों की गलती से तथा किन परस्थितियों में राजनीति का
अपराधीकरण हुआ तथा इसके लिए कौन कौन लोग जिम्मेदार हैं तथा अपराधियों को राजनैतिक
संरक्षण कैसे समाप्त होगा - इसका विश्लेषण अगले अंक में (क्रमशः...)
टिप्पणी
पाठकों से निवेदन है कि वे अंतिम वाक्य पढ़ें | बीच में निष्कर्ष न निकालें |
यह पूर्वपक्ष है , इसके बाद उत्तरपक्ष रखा जायेगा | यही मनुवादी संस्कृति है , यह
किसी का महिमामंडन नहीं है | चावार्क से बढ़कर वेदों , शास्त्रों तथा ब्राह्मणों का
विरोधी कोई नहीं हो सकता | चावार्क की कोई पंक्ति न मिलती , यदि हम न चाहे होते |
किन्तु हमने शास्त्रों में पहले चावार्क का पक्ष उद्धृत किया -
' त्रयोवेदस्य कर्तारो भाण्डधूर्त निशाचरा: ' अर्थात तीनों वेदों के लेखक
भाण्ड , धूर्त तथा निशाचर हैं |
शायद इतना कड़ा उदगार कभी अम्बेडकर साहब, मायावती जी या मुलायम सिंह जी ने भी न
लिखे हों | पर हमने अपने ग्रंथों में उनका उल्लेख किया - फिर उनका विश्लेषण किया
तथा अंत में उनका खंडन किया | शंकारचार्य जी ने तथा महर्षि दयानंद जी ने भी
सत्यार्थ प्रकाश में इस परंपरा का पालन किया तथा जिस विचारधारा का खंडन करना होता
था पहले उसका विस्तार से वर्णन किया | मार्क्स ने Das Capitol में पहले पूंजीवाद
की तथा उसके कारकों की विस्तृत व्याख्या की तथा तब उसका खंडन किया | मार्क्स का यह
कार्य पूंजीवाद का महिमामंडन नहीं था | इस लेख के अंतिम वाक्य में यही स्पष्ट लिखा
है | कैसे गांधी के धरने को घेराव में बदला गया , कैसे घेराव को हल्ला बोल में
बदला गया तथा कैसे अपराधियों के राजनीतिकरण में होड़ लग गई - कैसे भ्रष्टाचार की
बाढ़ आ गई , कैसे सारा तंत्र ध्वस्त हो गया , कैसे वंशवाद लगभग सर्वव्यापक हो गया -
इसका विश्लेषण द्वितीय भाग में होगा | तृतीय भाग में आएगा कि इन सारी समस्याओं को
मनुवादी विचारधारा कैसे दूर करेगी | यदि सारी चीजें ठीक ही चल रही होतीं तो
मनुवादी पार्टी की आवश्यकता ही क्या थी | कैसे घोषित तौर पर अच्छे उद्देश्य बताकर
सिद्धांत प्रतिपादित किए गए तथा कैसे व्यावहारिक धरातल पर उन्हें उल्टा गया - इनका
विश्लेषण क्रमशः प्रथम तथा द्वितीय खंड है | इसके बाद समाधान है | जितनी भी
पार्टियाँ पंजीकृत हैं , उससे भिन्न यदि कोई पार्टी चलाई गई , तो बौद्धिक पर यह
जवाब आवश्यक है - क्यों ? प्रथम भाग को उपस्थापना द्वितीय को विश्लेषण तथा तृतीय
को निष्कर्ष के रूप में देखा जाए | मेरा अपना मत अंतिम खंड में आयेगा |
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