एतद्देशप्रसूतस्य - IX
Vishnu Sharma lecture series of Manuwadi Party (Vishnu Sharma was the writer of Panchtantra, the classic on political training to princes)
Training syllabus for CM. UP.
मुलायमवाद क्या है
मुलायम दर्शन
मार्क्स, गाँधी, अम्बेडकर, लोहिया
संघपरिवार तथा मुलायम सिंह यादव की विचारधारा के दार्शनिक पहलू : एक तुलनात्मक विवेचन
Vishnu Sharma lecture series of Manuwadi Party (Vishnu Sharma was the writer of Panchtantra, the classic on political training to princes)
Training syllabus for CM. UP.
मुलायमवाद क्या है
मुलायम दर्शन
मार्क्स, गाँधी, अम्बेडकर, लोहिया
संघपरिवार तथा मुलायम सिंह यादव की विचारधारा के दार्शनिक पहलू : एक तुलनात्मक विवेचन
मार्क्सवाद और लोहियावाद एक तुलनात्मक
समीक्षा : मुलायामवाद का जन्म
समीक्षा : मुलायामवाद का जन्म
लोहिया ने लिखा है कि "मार्क्स भारत में सिर
के बल खड़ा था - मैंने उसे पैर के बल खड़ा कर दिया | मैंने वर्ग संघर्ष को वर्ण
संघर्ष में बदल दिया |" लोहिया ने अपने भाषणों तथा ग्रंथों में विस्तार से
वर्णन किया कि भारत में वर्ग - संघर्ष की गुंजाईश ही नहीं है - साम्यवादी पार्टी
की जड़ें गहरी नहीं हो सकती - यह हवा हवाई हो जाएगी | गावं का मजदूर तथा दलित किसी
अम्बेडकर को, किसी जगजीवनराम को (आज की तिथि में किसी मायावती को) अपना नजदीकी
मानता हो - वह अपने गाँव के मजदूरी करने वाले पिछड़े वर्ग के यादव, कुर्मी से या
रिक्शा खींचने वाले से, प्राइवेट नर्सरी स्कूल में मजदूर से भी कम वेतन में पढ़ाने
वाले नर्सरी स्कूल के ब्राम्हण, क्षत्रिय, भूमिहार या वैश्य कायस्थ से अपना तादात्म्य
स्थापित नहीं करता है | ऐसी स्थिति में वर्ग संघर्ष की गुंजाईश कहाँ है | रामायण -
मेला लगवाने के बावजूद लोहिया ने राम को खुली चुनौती देते हुए ललकारा - 'हमें सीता
के आँसुओं तथा शम्बूक के खून का बदला लेना है' | देवी - देवताओं तक को जाति विशेष
से जोड़ने का अभियान लोहिया ने इस हद तक चलाया कि आज ब्राम्हण परशुराम जयंती पर
अवकाश की बात करता है तो लोहार बढई 'विश्वकर्मा जयंती' की बात कर रहे हैं और सिंधी
'झूलेलाल' के बारे में सोंच रहे हैं | पहले महापुरुषों तक की जाति के बारे में कोई
सोंचता नहीं था - देवताओं की जाति के बारे में कोई सोंचने का सपना नहीं देख सकता
था | मामला यहाँ तक बढ़ा कि तुलसीदास की रामचरितमानस की तथा मनुस्मृति की प्रतियाँ
फाड़ी गईं तथा जलाई गईं |
किंतु यहीं लोहिया फेल हो - ऋषयः मन्त्रद्रष्टारः - ऋषि मंत्रों के द्रष्टा हैं | आगे क्या होने वाला है - इसे जो नहीं समझ पता है - वही चिंतक असफल होता है |
किंतु यहीं लोहिया फेल हो - ऋषयः मन्त्रद्रष्टारः - ऋषि मंत्रों के द्रष्टा हैं | आगे क्या होने वाला है - इसे जो नहीं समझ पता है - वही चिंतक असफल होता है |
लोग कहते थे कि इंकलाब आएगा
नक्शा कोहना चमन का बदल जायेगा
न मालूम था आतिशे गुल से ही
तिनका तिनका नशेमन का जल जायेगा
नक्शा कोहना चमन का बदल जायेगा
न मालूम था आतिशे गुल से ही
तिनका तिनका नशेमन का जल जायेगा
लोहिया को नहीं पता था कि मायावती का आगमन होगा
जो 'तिलक तराजू कलम तलवार -इनको मारे जूते चार' का नारा चाहे लगाये हो या न लगाये
हो - किन्तु यह नारा जाने - अनजाने उनके व्यक्तित्व से चिपका हुआ है तथा इसके
बावजूद भी सवर्णों के वोटों के आधार पर टिकी मनुवाद की 'A' तथा 'B' टीमे -
कांग्रेस और भाजपा - दोनों ने बारी - बारी से मायावती का साथ दिया तथा मुलायम और
माया की साझा सरकार उखाड़ फेंका | आज कितने ही हवाई पत्रकार बार - बार लिखते हैं कि
यदि मुलायम और मायावती मिलकर चुनाव लड़ें तो क्या होगा ? उनसे पूंछता हूँ कि क्या
लड़ा नहीं था ? क्या जीता नहीं था ? क्यों नहीं एक रह सके ? उत्तर स्पष्ट है - 'तप
बल बिप्र सदा बरियारा' - तपस्या के बल से ब्राह्मण सर्वोपरि रहता है | जो उपवास
करता हो, वही मलाई खा कर पचा पाता है | बाकी खायेंगे तो कोलेस्ट्राल बढ़ जायेगा
हार्ट अटैक हो जायेगा | चाणक्य गद्दी पर नहीं बैठे - उसने चन्द्रगुप्त मौर्य ढूंढ
लिया | संघपरिवार ने बाहर से मायावती को समर्थन देकर कहा - 'बहना, मुख्यमंत्री बन
- अपना पूरा एजेंडा लागू कर हमारा एक भी मंत्री नहीं रहेगा - सारी मलाई अकेले खा
ले - मुलायम और उनके चेले चना चबैना भी न पावें' | बिना सदन में शक्तिपरिक्षण का
मौका दिए कांग्रेस के गवर्नर ने मायावती को शपथ ग्रहण करा दिया | आज अगर मुलायम -
मायावती मिलकर पूर्ण बहुमत बना लें तो क्या कांग्रेस/भाजपा का समर्थन लेकर मायावती
मुख्यमंत्री बनकर समाजवादियों का रक्तपान नहीं करेंगी - इसकी गारंटी कौन लेगा |
इसका जवाब कोई बुद्धिजीवी, कोई लोहियावादी, गाँधीवादी चिन्तक मुलायम को नहीं दे
सकता | इसी मोड़ पर मुलायमवाद का जन्म हुआ | लोहिया का दर्शन शम्बूक की तरफ से संघर्ष
का था | किन्तु जब चाणक्य तथा पतंजलि की संतानों ने अपनी तपस्या के बल पर शंबूक की
मानस - पुत्री को मुलायम का दमन करने के लिए मना लिया, तो मुलायम को लोहियावाद से
पीछा छुड़ाना पड़ा - शम्बूक के खून का बदला राम से लेने का सपना छोड़ना पड़ा तथा
शम्बूक के वंशजो से मोर्चा खोलना पड़ा | अब राम के वंशज राजा भैया से हाथ मिलाने के
अलावा विकल्प क्या बचा ? नेहरू को वशिष्ठ की संतान तथा प्रतिनिधि कह कर लोहिया ने
हजारों बार कड़े उद्गार व्यक्त किये किंतु शम्बूक के वंशजों से मुलायम का मोर्चा
खुल जाने पर परशुराम जयंती को सार्वजनिक अवकाश घोषित करने का कोई विकल्प नहीं था |
'जाति तोड़ो अभियान' लोहिया का अभियान था जिसमे मंच पर चढ़ कर जाति के प्रतीक जनेऊ
को समाजवादी ब्राम्हण को तोड़ना पड़ता था किन्तु जमाना बदल गया था - 'वह साल दूसरा
था, यह साल दूसरा है' | राम से मोर्चा खोलकर शम्बूक के खून का बदला लेने का लोहिया
का सपना चकनाचूर हो गया था | लोहिया के चेलों को शम्बूक की चेली से स्टेटगेस्ट
हाउस में जोर आजमाइश करनी पड़ी | अब केवल लोहिया के द्वारा रामलीला के आयोजन की
चर्चा शेष रही है - शम्बूक का पक्षधर होने का सपना सपना रह गया | राम भी शम्बूक के
ही पक्षधर थे - उन्होंने केवट को गले लगाया था - शबरी के जूठे बेर खाए थे - किन्तु
राज्याभिषेक के मंच पर मन्त्र बोलने वाले वशिष्ठ के हस्तक्षेप पर राम को शम्बूक पर
बाण छोड़ना पड़ा | आखिर संविधान सर्वोपरि होता है | वशिष्ठ की संतानों ने स्टेट
गेस्ट हॉउस कांड में लोहिया के चेलों को मायावती पर लाठी चलाने को मजबूर कर दिया |
जिस तरह संघपरिवार अटल तथा मोदी को दबा लेता है, वैसे ही वशिष्ठ राम को दबा लेते
थे | लड़कपन में 'चरण - चापन' कराने वाले निर्णयों को प्रभावित कर लेते है | यहीं
लोहिया के शम्बूक - दर्शन का समापन होता है तथा मुलायम को शम्बूक से ताल ठोंकना
पड़ता है - दलितों की जमीन बेंचने की परमीशन का समर्थन देना पड़ता है - बिना किसी
कानून को बदले हरिजन एक्ट का आतंक समाप्त हो जाता है - कार्यवाही तो दूर , हरिजन
को FIR लिखवाने तक के लिए अभियान चलाना पड़ता है | जिन यादव दरोगाओ , सिपाहियों को
मायावती राज्य में नाम के आगे यादव लिखने में डर लगने लगता था तथा राजनितिक वनवास
झेलना पड़ा था - राजनितिक पुनर्वास होने पर वे किसी पीड़ित हरिजन की पीड़ा को पढने
में असमर्थ हो गये - उस पीड़ित के चेहरे में भी उन्हें मायावती के चेहरे के दर्शन
होने लगे |
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