भाग - 3
मनुवादी पार्टी वोटकटवा पार्टी नहीं है
मनुवादी पार्टी का मिशन 2017,
2017 (2), 2019, 2020 तथा 2022
कैसे मनुवादी पार्टी 2022 में पूर्ण बहुमत से सत्ता में आयेगी
कौन नेता होगा, कौन कार्यकर्त्ता होगा,
इटावा का बलराम यादव फार्मूला
क्यों V.I.Ps पार्टी नहीं चला पाते हैं ?
'शैल मूल जिन्ह सरितन्हि नाहीं'
मनुवादी पार्टी वोटकटवा पार्टी नहीं है
मनुवादी पार्टी का मिशन 2017,
2017 (2), 2019, 2020 तथा 2022
कैसे मनुवादी पार्टी 2022 में पूर्ण बहुमत से सत्ता में आयेगी
कौन नेता होगा, कौन कार्यकर्त्ता होगा,
इटावा का बलराम यादव फार्मूला
क्यों V.I.Ps पार्टी नहीं चला पाते हैं ?
'शैल मूल जिन्ह सरितन्हि नाहीं'
अब हम इस प्रश्न पर आते हैं कि क्यों मायावती और मुलायम नहीं सूखे तथा क्यों
उनसे बड़ी हस्तियाँ सूख गईं ? उत्तर - 'शैल मूल जिन्ह सरितन्हि
नाहीं' | मुलायम के पीछे लोहिया, आचार्य नारेंद्र्देव
का जीवन दर्शन था, जो पूर्व में देश विदेश के कई socialist thinkers से अनुप्राणित
था | मायावती के पास अम्बेडकर का जीवन - दर्शन था, जिनके पीछे बौद्ध दर्शन था | कोई
मायावती तथा मुलायम की कमियां गिना सकता है, किन्तु इन distortions के बावजूद उनका
जो जीवन - दर्शन था, वह उनके लिए डूबते को तिनके का सहारा था | जीवन - दर्शन किसी
को 'विप्र' बनाता है तथा 'तप - बल बिप्र
सदा बरियारा' | तपस्या के बल पर विप्र बलवान होता है | राजनीति में तपस्या
है - हार के बावजूद डटे रहना | हर मनुष्य तत्काल हल चाहता है | व्याई हुई भैंस को
सभी पसंद करते हैं परन्तु पड़िया खरीद कर उसे भैस बनाना सबके बस की बात नहीं है |
बछिया पालने वालों को प्रारम्भ में केवल पंच्चगव्य के लिए गौमूत्र के दर्शन भले ही
हों - गौदुग्ध तो गाय के व्याने पर ही मिलेगा | यह तपस्या वही कर पाता है, जिसके
पास जीवन - दर्शन होता है | साथ ही जीवन - दर्शन वाले व्यक्ति के पास जो Cadres
होते हैं, उनके पास विकल्प सीमित होते हैं | भौकाली व्यक्ति पार्टी क्यों नही चला
पाते ? शाखा के बाद साधारण परिवेश में किस तरह अटल जी/नाना जी देशमुख लोगों के
दरवाजे पर जा कर सो जाया करते थे | जनसंघ की बैठकों में चना - चबैना चलता था, फाइव
स्टार होटलों में नहीं होती थी | फाइव स्टार बैठकों में आयोजक स्तरीय व्यक्तियों
को बुलाने की कोशिश करता है तथा उसको यह चिन्ता भी रहती है कि भीड़ exceed न करे |
यदि 1000 लोगों की capacity का hall बुक है, तो 10000 लोगों को आने को नहीं कहा जा
सकता | यदि 100 लोगों की capacity का hall है तो 500 लोगों को at random नहीं
बुलाया जा सकता | फिर वहां पर यह भी होता है कि यदि ज्यादा लोग आ गये, तो कहाँ
बैठेंगे ? उनको चाय, नाश्ता, भोजन कैसे मिलेगा ? इसके अलावा सीमित निमंत्रण में
लोग एक दुसरे का परिचय जानते हैं - रिक्शे वाले, ठेले वाले, चाय बेचने वाले,
मजदूर, भिखारी ट्यूशन पढ़ाने वाले, कथावाचक सम्मेलनों में बुलाये नहीं जाते |
तुम तो स्वागत कक्षों में
बन पाहुन आये थे
इसीलिए मन के मोहक
मेहमान न बन पाए |
बन पाहुन आये थे
इसीलिए मन के मोहक
मेहमान न बन पाए |
हर समाज में गरीब लोग हैं | बड़े - बड़े दिग्गज जो पार्टी खोले, उनके सामने
मीटिंग की परिचर्चा या कितने लोग आये - लक्ष्य नहीं था | कौन - कौन प्रतिष्ठित लोग
इकठ्ठा हुए, एक get - together at - home प्रकृति का हो गया | फिर जब सीमित लोगों
को invite किया जायेगा तो वे सीमित लोग अपने - अपने क्षेत्र के कुछ चर्चित
व्यक्तित्व तो होते ही हैं | वे सोंचते हैं कि हमारे जाने से आयोजक का भाव बढ़
जायेगा - हमारी उपस्थिति को वह cash कर रहा है - पद स्वयं ले रहा है, स्वयं बोल
रहा है तथा हमारे लिए मात्र एक डिनर या लंच या नाश्ते के एवज में स्वयं को
गरिमामंडित कर रहा है तथा हमें बेवकूफ बना रहा है | और तो और हमें तो बोलने के लिए
आमंत्रित तक नहीं किया जायेगा | हमारा परिचय तक एक वाक्य में कोई मंच पर नहीं देगा
| परिचय तो छोड़िये, वक्ताओं के संबोधन में कहीं मेरा नाम तक नहीं होगा | 'भाइयों
और बहनों' मात्र में मुझे निपटा दिया जायेगा | बिना किसी identity के हम दूसरे को
VIP बनावें - हमें इतना भी अवसर न मिले कि हम किसी को माला पहना सकें तथा फोटो खिंचा
सके (खुद माला पहनना तो दूर) - ऐसे functions में कौन जायेगा ? मैंने 99% लखनऊ,
दिल्ली, बाम्बे, इलाहाबाद, बनारस में आयोजित functions में देखा है कि India स्तर
की हस्तियों के सम्मान में आयोजित functions में - 100 लोग तक नहीं दिखे हैं |
आमंत्रित अथिति पचास लोगों से कहेगा कि -
'अमुक आयोजन में बुलाया गया है,
मुझसे बड़े अनुरोधपूर्वक आयोजन में आने को कहा है |' किन्तु ऐन मौके पर वह गायब हो
जायेगा कि बहुत धूप थी ठण्ड थी या पानी बरस रहा था - तबीयत ख़राब थी - बुढ़ापा आ गया
है - घर में कोई बीमार पड़ गया - एक दुसरे function में चले जाना पड़ा जो अधिक
महत्वपूर्ण था | यही महत्त्वपूर्ण लोग बाद में आलोचना करते हैं कि दो टेक का आयोजन
था भूँकने के लिए पर्याप्त संख्या में कुत्ते तक नहीं मिले | जो लोग आते भी हैं,
वे कवि सम्मेलन के कवियों का माहौल पैदा कर देते हैं | आप पूछेंगे कि कवियों का
माहौल क्या है | कविसम्मेलन में किंवदन्ती है कि कवि की कविता को आखिर में पढ़वाओ
तो चाहे घर में किसी के प्राण छूट रहे हों - वह हिलेगा नहीं | यदि कहो भी कि यदि
कोई जल्दी हो, तो पहले पढवा दे, तो कविवर बड़े इतमिनान से उत्तर देंगे कि 'कोई
जल्दी नहीं है | अपने हिसाब से आयोजित करें |' कवि जी को जल्दी इसलिए नहीं है कि
जो जितना ही वरिष्ठ माना जाता है, परम्परा है कि उसकी कविता उतने ही बाद में पढवाई
जाती है | उसे कोई जल्दी नहीं है | लेकिन एक बार किसी कवि का कविता - पाठ करवा
दें, फिर उसके सामने 1000 समस्याएं आ जाएँगी | एक समस्या बताने पर यदि आयोजक ने
बिनम्रतापूर्वक अनुरोध रूकने का कर दिया तथा जाने की अनुमति नहीं दी तो 10 मिनट
वाद उससे गंभीर दूसरी तथा अगले 5 मिनट बाद निहायत गंभीर तीसरी समस्या आ जाएगी,
जिसके बाद आयोजक में जरा भी लाज शर्म बाक़ी
होगी, तो अनुमति दे ही देगा | फिर भी यदि आयोजक नहीं पसीजे तो चौथी बार चुपके से
वह बाथरूम जाने के बहाने उठेगा तथा ऐसा अद्रश्य होगा कि ढूंढें नहीं मिलेगा |
कविता पढ़ लेने के बाद उसका मुह लटक जायेगा कि उसे पहले दौर में क्यों पढवा दिया
गया - क्या लोग उसकी गिनती वरिष्ठों में नहीं कर रहे हैं ? इस अपमान बोध के बाद कवि
होने के बावजूद भी उसे किसी भी रस की कविता में आनन्द की अनुभूति नहीं होगी | उसका
चित्त उद्दिग्न होगा - वह जागकर रुआंसा होकर सो जायेगा तथा सामान्य होने में कुछ
दिन लग जायेंगे | एक कहावत है कि एक कविसम्मेलन में जब अध्यक्षीय भाषण तथा कविता
हो रही थी, तो केवल एक ही व्यक्ति कमरे में रह गया तथा बाकी जा चुके थे | अध्यक्ष
महोदय धन्य हो गए | बोले 'तुम्ही सच्चे रसिक हो |' उसने उत्तर दिया है कि उसे
धन्यवाद ज्ञापन करने के लिए छोड़ दिया गया है तथा माइक भी जमा कराना है तथा कमरे
में चाभी बंद कर काउन्टर पर वापस करनी है | यही हाल VIP माहौल में साज धाज से की
हुई राजनैतिक बैठकों की होती है | पूर्व में वर्णित कारणों से
(1) स्टैण्डर्ड आयोजनों में असीमित संख्या में लोगों से आने को नही कहा जा
सकता क्योंकि कि hall की Capacity, नाश्ते तथा भोजन की capicity को देखते हुए किसी
को बुलाना पड़ेगा |
(2) जो बुलाये गए तो उन्हें पहली कुढ़न होती है कि वे किसी पद पर नहीं हैं |
खाम - खां में है |
दूसरी कुढ़न यह होती है कि न पद
सही, तो कम से कम उन्हें बोलने का मौका तक नहीं दिया गया | तीसरी कुढ़न यह कि
उन्हें फूल माला पहनाने तक का दायित्व नहीं सौंपा गया | चौथी कुढ़न यह कि 'भाइयों
और बहनों' के सामूहिक संबोधन के अलावा किसी वक्ता ने उनका नामोल्लेख तक नहीं किया
|
(3) इतनी बाधाएं अगर पार भी कर गए, जो जिसे पहले बोलने का अवसर दे दिया गया,
वह अपनी तौहीन समझता है | तथा बोलने की औपचारिकता पूरी करने के तुरन्त बाद से वह
इस भवबंधन से मुक्ति के लिए प्रयासरत हो जाता है |
मनुवादी पार्टी के सामने यह समस्या
नहीं है | हमारे शैल मूल 'करपात्री जी महराज' है | मनुस्मृति युग से लेकर आज तक के
सारे सन्त, मनीषी, धर्मग्रंथ हमारे शैल मूल हैं | विचारधारा थकने नहीं देती, निराश
नहीं होने देती, हताश नहीं होने देती, पश्चाताप नहीं करने देती है | आखिर क्या
कारण है कि अंगुलिमाल का ह्रदय - परिवर्तन बुद्ध ने कर दिया, किन्तु गोडसे का
ह्रदय - परिवर्तन गांधी या नेहरू नहीं कर पाये | फांसी के समय तक उसने पश्चाताप
नहीं किया | Court में 96 पेज का ब्यान दिया कि उसने गाँधी को क्यों मारा ? कारण
स्पस्ट है कि गोडसे का मन - मस्तिस्क निम्न पंक्तियों से अनुप्राणित था, जिन्हें
वह बार - बार गाता था -
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोअहम
महामंगले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पत्त्वेष कायो नमस्ते नमस्ते
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोअहम
महामंगले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पत्त्वेष कायो नमस्ते नमस्ते
यह प्रश्न बार - बार उठाया जाता है कि गोडसे का संबंध RSS से था या नहीं ? मैं
दिग्विजय सिंह या राहुल गाँधी की तरह किसी विवाद को जन्म नहीं देना चाहता, किन्तु
मेरा अपना अभिमत है कि यदि अटलजी या अडवाणी से संघ का उस प्रकृति का रिश्ता था जो
अर्जुन का दद्रोणाचार्य से था, तो नाथूराम गोंडसे का भी संघ से कम - से - कम उतना
रिश्ता तो था ही जितना एकलव्य का गुरु द्रोणाचार्य से था | गोंडसे संघ परिवार का
एकलव्य था | मात्र पैसे के लिए कोई व्यक्ति ISIS के आत्मघाती दस्ते का सदस्य नही
बनेगा | उसे यह विश्वास होता है कि मौलाना मदनी के पांचो वक्त नमाज पढने के बावजूद
बहिश्त के दरवाजे को खोलना पड़ेगा किन्तु जब अस्लामा इकबाल के शब्दों में 'किसने
अजाँ दी यूरोप की कलीसाओं में' पैटर्न वाले जब क़यामत के दिन अपना फैसला सुनने
पहुंचेगे तो -
यह सोच फ़रिश्ते न रोकेंगे
दीवानों से झगडा कौन करे
अल्लाह न परदे में होगा
मस्तानों से पर्दा कौन करे |
दीवानों से झगडा कौन करे
अल्लाह न परदे में होगा
मस्तानों से पर्दा कौन करे |
अल्लाह से डरें मदनी और ओवैसी तथा हिन्दुस्तान के उलेमा | अलकायदा या ISIS का
योद्धा अल्लामा इकबाल के शब्दों में अल्लाह से पूछ बैठेगा -
हमसे पहले भी
लेता था कोई नाम तेरा
कुव्व्ते - बाजुए मुस्लिम
ने किया काम तेरा
लेता था कोई नाम तेरा
कुव्व्ते - बाजुए मुस्लिम
ने किया काम तेरा
इस्लाम प्यार से फैला या तलवार के
जोर पर - इस पर मौलाना मदनी क्या कहते हैं, इससे उसका कोई मतलब नहीं | उसे फख्र है
कि -
'जेरे खंजर भी ये
पैगाम सुनाया हमने |'
पैगाम सुनाया हमने |'
इसी तरह आदरणीय भागवत जी संघसाहित्य की क्या व्याख्या करते हैं वे जानें
किन्तु गोडसे अपनी स्वयं की निगाहों में अपराधी नहीं था | उसका कोई व्यक्तिगत
स्वार्थ नहीं था | कोई लेन - देन का झगडा नहीं था |
जिस दिन गोडसे फांसी के तख़्त पर
चढ़ा होगा, उस दिन RSS के हर स्वयं सेवक की आँखे नम हो गई होंगी ठीक वैसे ही जैसे
ISIS की ओवैसी साहब कितनी भी निंदा करें किन्तु एक सवाल का जवाब दे दें - जो कह
दें - वही सही मान लूँगा - क्या France में पत्रकारों पर जानलेवा हमले के बाद जब
दुनिया रो रही थी, तो उनके (ओवैसी) मन में यह ख्याल न आया होगा कि "ISIS ने
भले ही गलत किया हो, किन्तु 'हुजूरे - दो - आलम' का कार्टून बनाने वाले काबिले -
कत्ल तो थे ही |" यही ISIS की ताकत है, ये बात मौलाना मदनी तथा उस हर उलेमा
के मन में आई होगी - जो ISIS की निंदा करता है | गोंडसे हिंदुत्व का ISIS है | जब
कोई सच्चिदानन्द साक्षी गोडसे के बारे में कुछ बोलता है तो भाजपा के 90% सांसदों
की सहानुभूति साक्षी के साथ होती है - साक्षी की class लेने वाले मोदी या अमितशाह
के साथ नहीं | RSS के तो 99.9% स्वयंसेवक निःसंदेह इस मुद्दे पर साक्षी के साथ
सहानुभूति रखते हैं |
मनुवादी पार्टी का यही शैल - मूल
है | मनुवादी पार्टी के कार्यकर्ता में तथा भाजपा के कार्यकर्ता या RSS के
स्वयंसेवक में वही अंतर है जो परमपूजनीय गुरूजी गोलवलकर तथा अनन्त श्री विभूषित
करपात्री जी महराज में था | संवैधानिक दायरे में रहकर मनुस्मृति के सिद्धान्तों को
लागू करना हमारा घोषित उद्देश्य है | जब खुदीराम बोस फांसी के तख्ते पर चढ़ा था, तो
उसके हाथ में गीता थी, रोटी का टुकड़ा नहीं था | हमारा एक mission है | हम थकेंगे
नहीं, रुकेगें नहीं |
बुद्ध भी अंगुलीमाल का ह्रदय परिवर्तन कर ले गए, किन्तु उनका मुकाबला यदि
महर्षि पतंजलि के शिष्य पुष्यमित्र शुंग से हुआ होता, तो उसका ह्रदय परिवर्तन न
होता, भले ही नाथूराम गोडसे की तरह वह मृत्यु को प्राप्त हो जाता | indoctrinated कार्यकर्ताओं की तोड़फोड़ संभव नहीं होती |
इसलिए मनुवादी पार्टी चलती रहेगी
| जिस तरह शुंगवंश से लेकर 1947 तक सारे दमनचक्रों को झेलने के बावजूद बौद्धों का
पुनः उभार बोधिसत्व के अवतार डा. अम्बेडकर के रूप में हुआ, उसी प्रकार 1947 से
2016 = लगभग 70 वर्ष का झटका झेलने के बाद यह सोचना कि मनुवाद की कमर टूट चुकी
होगी, मात्र प्रलाप है |
इसके अलावा हमारी पार्टी में जो
व्यक्ति कोई मीटिंग आयोजित करता है, वह उसका व्यय स्वयं उठाता है | पेड़ के नीचे या
झोपड़ी में की हुई बैठकों में भी एक - से - एक दिग्गज लोग शामिल होते रहे हैं तथा
जमीन पर बैठकर बैठकें हुई हैं - हो रही हैं | Five star hotel में बैठक यदि कोई
आयोजित करे या guest house में तो वह जाने | पार्टी की ओर से बैठकों का आयोजन नहीं
होता | इसीलिए Congress तक के सामने कभी - कभी funds की crisis आ जाती है, किन्तु
हमारे सामने यह crisis नहीं आती | यदि आयोजक के पास पैसा नहीं है अथवा है लेकिन वह
खर्च नहीं करना चाहता, तो लोग अपने खर्चे से दुकान पर खा पी लेंगे - हमारी बैठकों
का नियमित क्रम कभी टूटता नहीं है | इसलिये indoctrinated लोगों की संस्था के लिए कार्यकर्ताओं की जीवन शक्ति चाहिए, funds नहीं |
हमारी जड़ें शास्त्रों में हैं -
इस विश्लेषण के बाद हम अगले अंक में दिखायेंगे कि कैसे vote bank को बनाया जाता है
-
आगे के अंगों में आएगा - वैसे हम
majority vote bank बिना compromise/appeasement के बना लेंगे |
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