Wednesday, 6 April 2016

मनुवादी पार्टी ही क्यों ? (भाग -2)
(3) प्रायः यह प्रचार किया जाता है कि मनुवादियों में एकता नहीं है | ब्राह्मणों के बारे में कहा जाता है कि
'बाभन कुत्ता हाथी |
नहीं जाति के साथी |'
क्षत्रियों के बारे में कहा जाता है कि 'एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं' | किन्तु यह गलतफहमी है | ब्राह्मणों तथा क्षत्रियों में न तो पारस्परिक विवाद है और न आतंरिक विवाद | कोई मुझे बताये कि कब नेहरू जी ने गोडसे तक के लिए अपशब्द कहे हैं | गाँधी जी की death के बाद नेहरू के भाषण का अंश था - 'unfortunately, he was killed by one of our misguided compatriots' अर्थात नेहरू जी गोडसे को मात्र 'दिग्भ्रमित' कहा - कहीं उसे CIA का agent या गद्दार या बिका हुआ देशद्रोही नहीं कहा | नेहरू तथा अटल बिहारी बाजपाई या इंदिरा या जयललिता ने कब एक दूसरे को अपशब्द कहे | यहाँ तक कि उद्दंडता तथा बदतमीजी का प्रर्याय समझी जाने वाली ममता भी अटल को 'दादा' कह कर बुलाती थीं | अटल द्वारा किये गये backlog तथा 'प्रमोशन में Reservation' के संशोधनों से इतना खिन्न होते हुए भी मनुवादी पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष शारदा प्रसाद त्रिपाठी ने उन्हें अपने परिवार का भीष्म पितामह कहा था तथा उन्हें राजनीति में शरशय्या पर भेजने का आह्वान इन शब्दों में किया था 'जब हमारी प्रतिष्ठा, गरिमा, मर्यादा और जीविका की द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था तो हमारा भीष्मपितामह (अटल) उसे रोकना तो दूर, तालियाँ बजा रहा था तथा उठकर कमरे के बाहर भी न जा सका' | अटल की गद्दी पर बैठे मोदी तक को हम अपना 'युधिष्ठिर' कहते हैं जो हमारा वोट लेकर हमारी प्रतिष्ठा, गरिमा, मर्यादा तथा जीविका की द्रौपदी को जुए में हार गए हैं | युधिष्ठिर चरित्र, नैतिकता तथा सदाचरण के प्रतीक मने जाते हैं - 'पुण्यश्श्लोको नलो राजा पुण्यश्श्लोको युधिष्ठिरः |' वे साक्षात् धर्मराज के पुत्र माने जाते हैं | किन्तु युधिष्ठिर के प्रति जितना सम्मान द्रौपदी के मन में था, उतना ही सम्मान मनुवादियों के मन में मोदी के प्रति है | हमने कहीं पर लोहिया, मार्क्स, ज्योति वसु, मुलायमसिंह यादव, अखिलेश कभी किसी के लिए अपशब्द नहीं लिखा | हम भातीय संविधान को सादर 'अम्बेडकर स्मृति' कहते हैं तथा मानते हैं कि यदि अम्बेडकर समृति (संविधान) मूलरूप में लागू कर दिया जाय तो स्वतः मनुवाद आ जायेगा - आरक्षण समाप्त हो जायेगा - प्रिवीपर्स, राजा की टाइटल स्वतः आ जाएगी | हो सकता है जमीदारी भी वापस आ जाये |
      हम तो किसी से नहीं लड़ते, आपस में क्या लड़ेंगे | ताल ठोककर लड़ने के लिए मोदी हैं, घनश्याम दास बिड़ला नहीं | वे मंद - मंद मुस्कराने के लिए हैं | अटल जी चुटकी लेते हैं, 'भुलक्कड़' 'पियक्कड़' तथा न जाने कितने अन्य दिव्य विशेषण कल्याण सिंह की वाणी को सुसोभित करते हैं | जब उत्तेजना में वी. के. सिंह जनरल जैसे कोई तेजस्वी व्यक्तित्व 'कुत्ते' आदि से तुलना कर लक्ष्मण की तरह दहाड़ते है, तो तुरंत राम की भूमिका में आकर राजनाथ सिंह उनको आँखे तरेरते हैं तथा चुप करा देते हैं |
      जिस प्रकार के गंदे तथा गलीज आरोप दीनानाथ भाष्कर तथा राम समुझ पासी ने अपनी ही पार्टी की अपनी ही बहन मायावती पर लगाये क्या कोई बता सकता है कि कभी किसी द्विज ने ऐसे आरोप किसी भी पार्टी की किसी भी महिला पर लगाये हों |
      कब अटल जी या इंदिरा जी या सोनिया जी ने एक दूसरे पर व्यक्तिगत आरोप लगाये हैं | कब वी. पी. सिंह या राजनाथ सिंह किसी के व्यक्तिगत रागद्वेष में मुखर हुए |
      देवताओं के गुरू ब्रहस्पति है तो राक्षसों के शुक्राचार्य तथा ब्रहस्पति का पुत्र शुक्राचार्य के यहाँ शिक्षा प्राप्त करने जाता है | शिष्य को ब्राम्हण पुत्रवत मानता है |
      जब भीम ने द्रोणाचार्य से कहा कि 'मैंने  अश्वत्थामा को मार डाला' तो द्रोण का उत्तर था 'यदि तुम शिष्य न होते तो ऐसा वाक्य बोलकर जीवित न बचते | शिष्य पुत्र के समान होता है' | इसी प्रकार अश्वत्थामा ने द्रौपदी के समस्त पांचो पुत्रों को जब मार डाला, तो द्रोपदी ने क्षमादान की संस्तुति की, तथा कहा 'जिस तरह से मैं रो रही हूँ , मैं नहीं चाहती कि उसी तरह आचार्य पत्नी भी रोयें |' द्रोणाचार्य तथा द्रोपदी के ये उद्गार ब्राम्हण - क्षत्रिय एकता के नींव के पत्थर हैं |
      (4) अन्य जातियों के साथ भी कभी कोई अत्याचार ब्राम्हणों या क्षत्रियों ने नहीं किये | मनुवादी आस्तिक होता है तथा पुनर्जन्म में विश्वास करता है | गीता में भगवन कृष्ण ने कहा है - 'अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम' अर्थात जो कर्म कोई व्यक्ति करेगा, उसका फल उसे भुगतना ही पड़ेगा | इसकी तार्किक परिणति है कि यदि कोई ब्राम्हण या क्षत्रिय या वैश्य शूद्र पर अत्याचार करेगा तो इसके दो विकल्प होंगे -
      (1) यदि शूद्र के कर्म अच्छे हैं तो अगले जन्म में ब्राम्हण या क्षत्रिय या वैश्य होगा तथा अगले जन्म में अत्याचारी ब्राम्हण या क्षत्रिय शुद्र बनेगा तथा उत्पीडन का परिणाम भुगतेगा |
      (2) यदि शूद्र के कर्म इस लायक न हो सके कि वह द्विज बन सके, तो अत्याचारी द्विज उसकी भैंस या सूअर बनकर उसके हाथों दण्ड का फल भुगतेगा | जन्म से इस तरह की शिक्षा दीक्षा जिसको दी गई, वह स्वभावतः अत्याचार नहीं कर सकता | किसी गलतफहमी में कोई घटना,दुर्घटना हो जाये तो दुःखद है |
'जासु राज प्रिय प्रजा दुःखारी,
तिनहि विलोकत पटक भरी'
राजाओं के लिए नीति निर्देशक तत्व है |
      अगर द्रोणाचार्य ने किसी का अंगूठा काटा तो भी अर्जुन को तो सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर घोषित किया किन्तु सर्वश्रेष्ठ शिष्य एकलव्य ही हुआ | आज भी मनुवादी छात्रसभा एकलव्य कि गुरुभक्ति को पूजनीय तथा प्रणम्य मानती है | एकलव्य इसके बावजूद महाभारत में द्रोणाचार्य के साथ लड़ा | एकलव्य की जय हो |
      आज भी उदितराज को जब Justice party का समापन करने का सद्विचार आया, तो वे बसपा में नहीं घुसे, भाजपा में प्रवेश लिए | इतिहास स्वयं को दोहराता है | कौन कहता है कि दलित या पिछड़े ब्राम्हणों से नफरत करते हैं | अगर मुलायम सिंह तथा मायावती से पूछा जाय कि मुलायम सिंह, मायावती, नारायणदत्त तिवारी, कलराज मिश्र, प्रमोद तिवारी, रीता जोशी, इन सभी में से अपने को छोड़कर एक को मुख्यमन्त्री मानता है तो मायावती की आखिरी prefrence मुलायम होंगे तथा मुलायम की आखिरी prefrence मायावती | यदि ब्राम्हण अत्याचारी होता, तो क्या ऐसी स्थिति होती |
      क्षत्रिय तो अत्याचार की सोंच नहीं सकता है | एक मल्लाह की बेटी को प्राप्त करने के लिए चक्रवर्ती सम्राट शन्तनु को अपने बेटे को अखण्ड ब्रम्हचारी बनाना पड़ा | जो भीष्म बढ़ी हुई उम्र में काशिराज की बेटियों का अपहरण कर सकते थे, क्या वे मत्स्यकन्या का अपहरण नहीं कर सकते थे | राजा की बेटी का अपहरण वे कर सकते थे, प्रजा की बेटी का नहीं | मनुवाद की यही ताकत थी जिसने नेपाल जैसे विद्रोह प्राचीन भारत में नहीं होने दिए तथा राजसत्ता चिरस्थाई रही | यदि नेपाल में कुल पुरोहित को वशिष्ठ की जगह चंदरबरदाई पैटर्न का न बना दिया होता, तो देवता की तरह नेपाल में राजा पूजा जाता |
      राज्याभिषेक के समय राजा स्वेच्छारिता में जोर से ललकारता था कि ' अदण्ड्योस्मि, अदण्ड्योस्मि, अदण्ड्योस्मि' अर्थात अब मैं राजा हो रहा हूँ, मुझे कोई दण्ड नहीं दे सक्ता | तब राज पुरोहित उसे पलास के डंडे से 3 डंडे सार्वजनिक रूप से मरता था  कि 'धर्मदण्डोअस्ति, धर्मदण्डोअस्ति, धर्मदण्डोअस्ति' अर्थात यह धर्म का दण्ड है |
      यही धर्म का दण्ड जब प्रभावी नहीं रहा, तो नेपाल में क्या हुआ - दुनिया ने देखा |
Emergency को अनुशासनपर्व घोषित करने वाले बिनोवा भावे जब चंदरबरदाई बनकर रह गए, तो इंदिरा 0 सीट पर आ गईं | R.S.S के इसी दण्ड को नकार देने के कारण मोदी का यह हाल दिल्ली तथा विहार में हुआ तथा यू. पी. में पूत के पाँव पालने में दिख रहे हैं (साभार : सर्वे रिपोट)

क्रमशः ...

No comments:

Post a Comment