Monday, 4 April 2016

एतद्देशप्रसूतस्य - X
Vishnu Sharma lecture series of Manuwadi Party (Vishnu Sharma was the writer of Panchtantra, the classic on political training to princes)
Training syllabus for CM. UP.
मुलायमवाद क्या है
मुलायम दर्शन
मार्क्स, गाँधी, अम्बेडकर, लोहिया
 संघपरिवार तथा मुलायम सिंह यादव की विचारधारा के दार्शनिक पहलू : एक तुलनात्मक विवेचन

मार्क्सवाद और लोहियावाद एक तुलनात्मक
समीक्षा : मुलायामवाद का जन्म
लोहियावाद में चूक कहाँ हुई ?
मुलायामवाद में उसे कैसे सुधारा गया ?
मुलायम स्थाई सत्ता क्यों नहीं कायम कर पाए ?
मुलायम क्या करें ?
लोहिया मार्क्स की तुलना में सत्य के अधिक नजदीक थे जब उनहोंने यह घोषणा किया कि भारत में वर्ग संघर्ष (क्लास स्ट्रगल) की गुंजाईश नहीं है - यहाँ पर वर्ण - संघर्ष (अगड़ा, पिछड़ा) का संघर्ष करना पड़ेगा | 82% की लड़ाई की बात लोहिया करने लगे | लोहिया संस्कृत के उतने भी ज्ञाता नहीं थे, जितने अम्बेडकर थे | अम्बेडकर ने क्रम से शास्त्रों के, स्मृतियों के, पुराणों के, अंग्रेजी अनुवाद का गंभीर अध्ययन किया था | लोहिया भूल गए कि हजारों साल से यदि 82% पर 18% हावी है, तो उसकी व्यूह रचना रूस के जारों जैसी नहीं है - कहीं गूढ़ है | बैकवर्ड और दलित के साझा मोर्चा की कल्पना ही असम्भव है | मनुस्मृति के दसवें अध्याय को अम्बेडकर ने पढ़ा था - इस अध्याय को महाराष्ट्र से छापी उनकी ग्रंथावली में कई जगह उद्घृत किया गया है | शास्त्रों में स्पष्ट रूप से उद्घृत है कि विभिन्न जातियों का निर्माण किस परमुटेसन  तथा कम्बीनेशन से हुआ | इसका ज्ञान गैर - मनुवादी विचारकों में केवल अम्बेडकर को था | इस देश के मूल निवासी वे थे जिन्हें गाँधी जी 'हरिजन' कहते थे तथा मायावती जिनको 'दलित' कहती हैं | केवल सोनिया ही विदेशी नहीं हैं, अटल बिहारी बाजपायी भी विदेशी हैं | सोनिया इटली से आई हैं, तो बाजपाई जी स्वर्गलोक से आये हैं | सोनिया तो कम - से - कम इस धरती की हैं - खतरे में पड़ने पर इटली भाग सकती हैं | अटल जी के पूर्वजों को आये इतने दिन हो गये  कि अपने मूल स्थान की वापसी का रास्ता भी भूल गए हैं सच्चे अर्थों में 'एलियन' हैं | सोनिया तो मनुष्य हैं - शेष भारतीयों की तरह | अटल जी देवता हैं - तुलसीदास ने लिखा है - 'सुर महिसुर हरिजन अरु गाई | हमरे कुल इन्ह पर न सुराई |' महीसुर का अर्थ होता है - धरती का देवता | श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी ने लिखा है कि "केरल के शंकराचार्य को विहार के मंडन मिश्र से  वार्ता करने के लिए -शास्त्रार्थ करने के लिए दुभाषिये की जरूरत नहीं पड़ती थी |" कश्मीर से कन्याकुमारी तक के ब्राम्हण की एक भाषा है - संस्कृत | उसका ज्ञान उसने दूसरों को नहीं कराया | मैकाले को हम बुरा कहते हैं - परन्तु उसने कम से कम अपनी विद्द्या को अपने गुलामों तक को पढाया | सबको अंग्रेजी पढाई | किन्तु ब्राम्हणों ने कितनी गोपनीयता बरतने क निर्देश दिया, इसको 'सिद्धकुंजिका - स्त्रोत्र' में पढ़ लीजिये -
'गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वती' शिव जी कहते हैं - 'हे पार्वती जितने प्रयत्न से कोई महिला अपने योनिमार्ग (वैजाइनल कैनाल) को प्रयासपूर्वक छिपा करके रखती है, उतने ही प्रयास से मंत्रों को छिपा करके रखना है |'
'सिद्धकुंजिका स्त्रोत्र' किसी भी पुरोहित से 'दुर्गा सप्त सती' ग्रन्थ मांगकर या गीता प्रेस या कचौड़ी गली वाराणसी से खरीदकर उसमें संग्रहीत अर्थसहित 'सिद्धकुंजिका स्त्रोत्र' को पढ़ा जा सकता है | अतः एस. एस. के विचारक कहते हैं कि विदेशी हमलावरों ने इन्हें दलित बना दिया | मैं इन बरगलाने वाले बुद्धिजीवियों से पूछना चाहता हूँ कि 'सिद्धकुंजिका स्त्रोत्र' क्या मैकाले ने लिखवाया है या अलबरूनी ने ? इन मंत्रों को किससे छिपाने को कहा गया है ? यदि इस देश के सभी निवासी स्वदेशी ही थे, तो किसे दुराव, किससे छिपाव ? मानी हुई बात है, लेखक सभी देशवासियों को अपना नहीं मानता - स्वदेशी नहीं मानता | विदेशियों में ही दुराव - छिपाव की मानसिकता है | अटल जी के पूर्वज ऐसे ही विदेशी थे |
      इन विदेशियों को ही द्विज कहा गया | -ब्राम्हण, क्षत्रिय तथा वैश्य स्पेसलाइजेशन के लिए इन्होंने वर्ण विभाजन कर लिया  | इन सभी का यज्ञोपवीत होता है | जैसे मुसलमान की गोल टोपी को देख कर मोदी जी पहचान लेते हैं कि हम इसे धारण नहीं कर सकते क्यों कि ये गैरों की चीज है, उससे भी एक कदम आगे बढ़कर इस देश के सवर्ण - ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य - अपने को शेष समाज से अलग करते हैं | मुसलमान तो अपनी टोपी सबको पहनाने का प्रस्ताव करता है - द्विज  (सवर्ण) अपना जनेऊ किसी को पहनने नहीं देना चाहता - किसी को पहने देखकर उसे नहीं लगता कि उसकी संस्कृति फैल रही है बल्कि उसे लगता है कि उसकी पहचान का संकट पैदा हो रहा है - आइडेंटिटी खतरे में पड़ रही है | अगर सभी मूल निवासी हैं - सभी एक हैं - तो सभी जनेऊ पहनने पाते |यहाँ तक कि ब्राम्हणों, क्षत्रियों तथा वैश्यों में जनेऊ भी अलग अलग डिजाईन के होते हैं | इन्हीं स्वर्ग लोक से भटककर आये हुए द्विजों तथा आदिवासी दलितों के सयोंग से पिछड़ी जातियां उत्पन्न हुईं - इसका विस्तृत विवरण मनुस्मृति के दसवें अध्याय में पढ़ सकते हैं | ऐंग्लो - इंडियन का अंग्रेजों से झगड़ा चला करता था - अंग्रेज उनको अपने क्लबों में नहीं घुसने देते थे किन्तु भारतीय तथा एंग्लो - इंडियन मिलकर अंग्रेजों से कोई मोर्चा नहीं ले सकते थे क्यों कि एंग्लो इंडियन समानता के न मिलने पर अंग्रेजों से दुखी रहता था किन्तु वह भारतीयों को समानता देने को तैयार नहीं था | उसी तरह अहीर, कुर्मी, लोध - ये सवर्णों की बराबरी तो चाहते हैं किन्तु ये दलितों को बराबरी देना नहीं चाहते | फिर इनका साझा मोर्चा कैसे बन सकता है ? अम्बेडकर के ग्रंथों को मायावती ने अगर सही ढंग से पढ़ा और समझा होता तो स्टेट गेस्ट हॉउस काण्ड की त्रासदी न झेलनी पड़ती | इस युग में अम्बेडकर जैसा अध्ययन शील मनीषी कोई दूसरा पैदा नहीं हुआ - उसके बाद किसी का नंबर आता है तो लोहिया का | जैसे कोई अंग्रेजों के खिलाफ एंग्लो - इंडियन तथा इंडियन का साझा फ्रंट नहीं बना सकता था वही गलती लोहिया ने की - तथा मुलायम माया का मोर्चा न चल सका | इसलिए मायावती के शब्दों में मनुवाद की 'A' team कांग्रेस (बिना शक्ति परीक्षण कराये गवर्नर द्वरा शपथग्रहण कराना) तथा 'B' team भ.ज.पा. (बिना एक मंत्री पद लिए पूरी मलाई को मायावती तथा उनके साथियों को अकेले चाटने का अवसर देना) के सम्मिलित प्रयास से - 82% का संघर्ष स्टेट गेस्ट हॉउस के प्रांगण में सदा सर्वदा  के लिए दफन हो गया | शंबूक के लिए संघर्ष करने की लोहिया की हुंकार को लोरी गाकर सुला दिया गया |

क्रमशः...

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