Friday, 15 April 2016

मनुवादी पार्टी ही क्यों ? -
मधु मिश्र के नाम खुला ख़त भाग - 2
जानि गरल जे संग्रह करहीं |
कहहु उमा ते कस नहिं मरहीं ||

'बीती ताहि बिसारि दे,
आगे की सुधि लेय'
जो बीत गई सो बीत गई | अब आगे क्या फैसला है ? अब आप को कोई दूसरी पार्टी नहीं लेगी और लेगी तो मीडिया ट्रायल होगा तथा अपनी फजीहत कराएगी | 'इस अंजुमन में आप को आना है बार - बार' | इतने कड़े बयान दे अब आप के लिए कहीं जगह नहीं बची है |
'जा पर विपदा पड़त है, सोई आवत एहि देश |' आप के पास मनुवादी पार्टी के अलावा कोई ठौर नहीं बचा है मगर हम भी आप को बिना शर्त नहीं ले पाएंगे | यदि आप यह वचन दे सकें -
      (1) कि आप दलितों को सवर्णों के पतन का जिम्मेदार नहीं मानेंगी | आप जैसे लोग सवर्णों के पतन के जिम्मेदार हैं और इसके लिए मानसिक प्रायश्चित करेंगी |
      (2) आगे यह सुनिश्चित करेंगी कि कोई भी पार्टी जो आरक्षण की समर्थक है, उसका प्रचार नहीं करेंगी |
      (3) आप इस बात पर मनन करेंगी तथा घोषणा करेंगी कि आपके और आपके परिवार के जूते पोछने की स्थिति में आने के लिए संविधान जिम्मेदार नहीं है, बल्कि संविधान के प्रावधानों और उनके अनुरूप माननीय उच्चतम नयायालय द्वारा पारित निर्णयों को निरस्त करने के लिए किये गए संशोधन जिम्मेदार हैं |
      (4) आप इस बात की घोषणा करेंगी कि सवर्णों की दुर्दशा के दोषी अम्बेडकर साहब नहीं हैं, बल्कि नेहरू, विश्वनाथ प्रताप सिंह, अटल तथा मोदी हैं |

      हम आपको विवश नहीं कर रहे हैं | केवल एक बात ध्यान रखना होगा कि blasphemy तथा किसी वर्ग विशेष से घ्रणा मनुवाद में नहीं है | गीता के उपदेश को आत्मसात कीजिए कि दुर्योधन की जांघ को तोड़ने तथा दुःशासन की छाती का लहू पीने के पहले भीष्म, द्रोण, तथा कर्ण को रास्ते से हटाना होगा | अभी तो कोई दुर्योधन तथा दुःशासन हमारी प्रतिष्ठा, गरिमा, मर्यादा तथा जीविका की द्रौपदी का चीरहरण करने की स्थिति में नहीं है, इसीलिए नाममात्र की हिंसा या उत्तेजना की आवश्यकता नहीं है | अभी जुआ चालू है, ख़त्म नहीं हुआ | अभी पासा फेंकने वाले युधिष्ठिर के हाथों को थाम लिया जाय Negative Voting करके (जैसा बिहार में हुआ) तो हमारी जीविका, प्रतिष्ठा, मर्यादा, गरिमा की द्रौपदी की लज्जा की रक्षा के लिए इतना ही प्रयाप्त है | यदि U.P. elections में आप जैसे लोग यह प्रतिज्ञा कर लें कि चाहे दलित, पिछड़ा या मुस्लिम भले जीत जाये, पर आरक्षण का समर्थन करने वाली पार्टी के टिकट पर कोई आरक्षण विरोधी मंचों पर माला पहनने वाला न जीतने पायें - ब्राह्मण सभाओं, क्षत्रिय सभाओं, वैश्यसम्मेलनों को संबोधित करने वाला कोई व्यक्तित्व यदि आरक्षण समर्थक पार्टी का प्रत्याशी है, तो उसे किसी भी कीमत पर हरा दिया जाय - तो कम से कम आरक्षण विरोधियों में एकता आ जायेगी - उन्हें कोई टिकट नहीं देगा | सवर्ण सभाओं तथा आरक्षण विरोध के मंचों पर माला पहनने वालों को तब वैसे ही मनुवादी पार्टी का प्रत्याशी बनने के लिए विवश होना पड़ेगा जैसे इटावा के बलराम यादव को मुलायम सिंह यादव के टिकट पर लड़ना पड़ा था | हमें आशा है हम 2019 तक इस लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे - काफी हद तक 2017 तक ही | ऐसा होने पर जिन दिग्गजों ने आप को पार्टी से निकाला है, उन सारे दिग्गजों को मनुवादी पार्टी आप के आगे नाक रगड़ने को मजबूर कर देगी | आरक्षण विरोधी अगर ठान लें कि कम से कम उनका कोई रिश्तेदार या परिचित या मित्र किसी आरक्षण समर्थक पार्टी के टिकट पर नहीं जीतेगा तो जिस तरह से सत्रुहन सिन्हा सांसद श्री सिंह जो पूर्व में गृह सचिव थे तथा श्री कीर्ति आजाद विहार में प्रलाप कर रहे हैं वैसा ही प्रलाप श्री कलराज मिश्र श्री राजनाथ सिंह तथा श्री महेश शर्मा करने लगेंगे | अगर आप सिराथू विधान सभा में जो कौशाम्बी जनपद में है केवल एक महीने घूम कर हर गाँव में केवल दो बूँद आँसू बहा दें तो केशव मौर्य जी जो प्रदेश अध्यक्ष हैं लड़ाई के बहार हो जायेंगे तथा दुबारा अगर सक्रिय राजनीति में उतरने की सोचे तो उन्हें वैसे ही कोई मौका नहीं देगा जैसे बड़े - बड़े दिग्गजों विनय कटियार ओमप्रकाश सिंह प्रेमलता कटियार आदि को UP में दुबारा सांसद का टिकट नहीं मिला तथा जिस प्रकार आदरणीय किरण वेदी को दिल्ली में दुबारा मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट कर कभी भाजपा चुनाव लड़ने की गलती नहीं करेगी |

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