Thursday, 31 March 2016

एतद्देशप्रसूतस्य Part-7

Vishnu Sharma lecture series of Manuwadi Party (Vishnu Sharma was the writer of Panchtantra, the classic on political training to princes)
Training syllabus for CM. UP.
Readers will be surprised why I am starting this series of lectures for Akhilesh now and why I did so earlier for Rahul. Why not that for BJP and BSP and others. When we are ourselves a party why were we trying to boost others? what are Manuwadi targets?  Targets stand on a quite different footing from those of missions and objectives. Mission is what we cherish. Objective is what we aspire. Target is what we can reasonably  centemplate to be in our reach. Targets should be neither too low nor too high. They should be so designed that they should be achieved within the time schedule of proposed frame work. If targets are too high, they will create frustration, as is aften the case in BJP. If targets are too low, they will create lethargy. A balance has to be devised between the two.
एतद्देशप्रसूतस्य - series had been designed to give effect to the Manuwadi  manifesto as enshrined in Manusmriti that all human beings should learn their dos and donts from an अग्रजन्मा (ब्राह्मण ) in this land ie. Bharat. But lessons cant be delivered for all. It is for human beings, not for buffaloes. 'भैंस के आगे बीन बजावे, भैंस खड़ी पगुराय' (If you start playing on the flute before a buffalo, she will start chewing the cud.) A famous saying goes that a monkey destroyed the nest of a bird when she preached a monkey shivering with cold during winter rain that they could have avoided this discomfort had they prepared a shelter earlier. I treated Congress like a human  being and Samajwadi Party like a buffalo or monkey of the above brand. Congress would not be annoyed at suggestions. But now I feel I stand corrected. My concept about Smajwadi Party with special emphasis on Akhilesh has undergone a radical change. Of course I always had high regards for Akhilesh as a person, though not as a politician. These feelings were quite akin to those for Late Rajiv Gandhi. I always felt  that Rajiv was one of the best politicians India has ever produced and It was unfortunate that he destroyed the party as well as himself because of the lack of proper grooming. He was trained by Chandbardai and not by Vashisth. Prithviraj Chauhan was as competent as Raghu, and Chandbardai was no oess capable than Vashisth . The only difference was that of mutual status. Words of Chandbardai did not carry that weight for Prithviraj as compared to those of Vashishtha. Chandbardai has summarised.
बाँधि लियो चामुंड है
हत्यो सुमित कयमास
संभरीष साम्राज्य की
करत तऊ पै आश
(You have arrested Chamunda Rai and killed Kaimas and it is tragic that you still hope that you will emerge victorious)
            Chandbardai had suggested that he would procure Samyogita, with the consent of Jai Chand for Govind Rao
, son of Prithviraj and not for king himself. Had it been the case and had Prithviraj not spoiled his relations with his son-in-law and his lieuten- ants Alha and Udal, Ghori would have been crushed. Similarly Rana Pratap's priest stood between the fighting brothers Rana and Shakti Singh and issued ultimatum that if they didnt stop fighting, he would commit suicide. But both brothers didn’t yield and priest commited suicide and Shakti Singh was banished and joined hands with Akbar. Had the priest been effective like Vashishtha, both the princes would have stopped fighting. Had there been no Samarth Guru Ramdas Shivaji would have been another Rana Pratap. Had Modi some Golwalkar, he would not have faced debacle in Delhi and Bihar 'Power corrupts and absolute power corrupts absolutely'. It was because of lack of Kanshiram that Mayawati was reduced to 0  seats and if she is reviving, it is because of vacuum as a god gift and not because of her efforts. I was well aware of Congress culture that Nehru and his descendants at least listen to their shortcomings and that is why they revive again and again. Rahul had taken the absurd position after the JNU students case, but may be because of several articles and tweets by several luminaries, he modified his stand on disciple of Owaisi in Maharastra, to the surprise of all concerned. It may be an exaggeration, but the lecture series of एतद्देशप्रसूतस्य might have played its own role. But I thought that if I deliver some lectures for Akhilesh, he might react like the monkey for the bird. And my efforts would go waste. I don’t want demolition of any party at this moment. It is the target of Manuwadi Party to secure a super-fractured mandate for U.P.in 2017 so that all parties stand with folded hands for our petty vote-bank-
पितु समेत लै लै निज नामा
करन लगे सब दण्ड प्रणामा

When Akhilesh was seen learning from the cartoonist, I thought that he was a deserving student to be admitted to this Vishnu Sharma lecture series of Manuwadi Party (Vishnu Sharma was the writer of Panchtantra, the classic on political training to princes). I want improvement in all political parties so that contest becomes very narrow and relevance of Manuwadi Party increases. In a sweep, we will lose our relevance. I wish all parties well. In the welfare of all, lies our welfare. From tomorrow, lecture series on Lohiya, Mulayam and Akhilesh will start. If Akhilesh just has a glance over it, his chances will improve. If he is not seen relishing, we will stop the series. We never deliver lectures for unwilling princes.

Wednesday, 30 March 2016

बिहार में कब जंगलराज नही था
आदिकाल से लेकर आजतक का जंगलपुराण
कैसे डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने आरण्यक युग ( मनुस्मृति ) की वापसी का प्रयास किया
बार - बार लोग कहते है कि बिहार में जंगलराज पार्ट II आ गया | बिहार में जंगलराज कब नही था--- कोई मुझे बस इतना बता दे | तुलसीदास जी का रामचरितमानस स्वघोषित रूप से "नानापुराणनिगमागमसम्मत" है अर्थात समस्त शास्त्रों का निचोड़ रामचरितमानस है | उसमे उन्होंने स्पष्ट घोषणा किया है कि -----
"काशी मग सुरसरि क्रमनाशा"
अर्थात काशी और मगध में वही अंतर है जो अन्तर गंगा तथा कर्मनाशा नदियों में है | इसी को और विकसित करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है ----
"मगध गयादिक तीरथ जैसे"
( अर्थात मगध में गया आदि तीर्थ एक विसंगति है |)
विश्वामित्र बिहार में नाक दबाकर संध्यापूजन , प्राणायाम जैसे नेक काम भी नही करने पाते थे | वे भी चिंतामग्न हो गये - आमिर खान की तरह - कि असहिष्णुता बढ़ रही है, कैसे गुजारा होगा ? तुलसीदास जी ने मनोदशा का चित्रण किया है --
'गाधि सुवन मन चिंता व्यापी
बिनु हरि मरहिं न निसिचर पापी'
पूजापाठ करने के लिए भी राम और लक्ष्मण जैसे धनुर्धरो की आवश्यकता पड़ती है जिसकी व्याख्या रामधारी सिंह दिनकर ने की है --
ऋषियों को मिलती सिद्धि
तभी पहरे पर |
जब स्वयं धनुर्धर
राम खड़े होते है ||
यह स्थिति बिहार की रामराज्य के काल में रही है | रामचरितमानस की पंक्तियाँ शंतिव्यस्था के संबंध में उल्लेखनीय है ----
तोरेउ धनुष ब्याहु अवगाहा |
बिनु तोरे को कुंअरि बिआहा ||
( धनुष तोड़ने पर भी व्यवधान पैदा होगा ब्याह में | फिर बिना धनुष तोड़े कौन कुंअरि को ब्याह लेगा |)
अहिल्या का उद्धार भगवान राम ने बिहार में किया था जो यह प्रदर्शित करता है कि छलपूर्वक बलात्कार की दशा में से उस युग में भी बिहार में नारियां पाषाणी बना दी जाती थी | अर्थात राजा जनक तक को चुनौती देने की तैयारी हो रही थी कि लोग उनको स्वेच्छा से कन्यादान नही करेंगे तथा व्यवधान उत्पन्न करेंगे | आज कम से कम मंत्रियो मुख्यमंत्रियों अधिकारियो की बेटियो का अपरहण उनकी मौजूदगी में करने की कोई नही सोंच पा रहा है |
      कम्युनिस्ट जब इतिहास का अपने ढंग से पुनर्लेखन करेंगे तो बतायेंगे कि सुबाहु और ताड़का आदिवासी थे तथा आर्य आक्रमणकारियो से अपनी स्वतंत्रता की रक्षा कर रहे थे | कम्युनिस्टो को एक झूठ को सच बनाने के लिए हजार झूठ बोलने पड़ते है तथा वे उपहास के पात्र बन जाते हैं | सारा देश जानता है कि सुबाहु तथा ताड़का रावण के परिवार के थे | मारीच जो बिहार में राम के बाण से घायल हुआ था , रावण का रिश्तेदार था तथा रावण घोषित रूप से ब्राह्मण था तथा शास्त्रों का ज्ञाता था | आज भी 'रावणसंहिता' ज्योतिष का एक मानक ग्रन्थ है तथा रावणकृत 'शिवताण्डवस्तोत्रम्' भक्ति साहित्य की अमूल्य निधि है | देवता तथा दैत्य सौतेले भाई थे तथा उनकी माताएं दिति और अदिति सगी बहने थी तथा एक ही पिता और उनकी दो पत्नियों जो कि अलग नस्ल की न होकर सगी बहने थी उनसे उत्पन्न संताने अलग नस्ल की कैसे हो गयी -- देवासुरसंग्राम पारस्परिक पारिवारिक संघर्ष है - दो नस्लों का युद्ध नही | कम्युनिस्टो से लाख गुना ज्ञानी तो डॉ. अम्बेडकर साहब थे तथा मेरे पढने में कभी नही आया कि वे अपने को या अन्य किसी दलित कभी रावण या महिषासुर के वंश का घोषित किये हो | दैत्य भी ब्राह्मण थे - इसका विधिवत् ज्ञान अम्बेडकर साहब को था तथा हम अम्बेडकर साहब की व्याख्या से सहमत या असहमत हो सकते है किन्तु जानबुझकर उन्होंने कभी कम्युनिस्टो की तरह इतिहास बोध से बलात्कार नही किया | उनके द्रष्टि बोध में जो हम लोगो से कही - कही अंतर दिखता है , वह मात्र इसलिए कि उनका शास्त्रों का ज्ञान संस्कृत माध्यम से अर्जित नही था , बल्कि अंग्रेजी अनुवाद पर आधारित था | मैकाले के मानसपुत्रो के गलत अंग्रेजी अनुवादों से सनातनियो से कही - कही मतभेद परिलक्षित होते है |
      द्वापर युग में जरासंध के राज्य में अत्याचार की पराकाष्ठा थी - शुद्ध जंगलराज | जब भीम ने जरासंध का वध किया , तब प्रजा ने उनका अभिनन्दन किया | जरासंध की मैत्रीसंधि कालयवन ( विदेशी शासक ) से थी तथा भविष्य के आम्भि तथा जयचंद की भांति उसने मथुरा पर विदेशी आक्रमण कराया तथा भागते शत्रु कृष्ण का पिछा किया तथा युद्ध के समस्त नियमो को तोडकर कृष्ण को रणछोड़दास बना दिया तथा उनके समर्थको सहित शरणार्थी की तरह पलायन को विवश कर दिया | कलियुग में महापद्मनन्द बिहार का ही राजा था , जिसके अत्याचारों से त्रस्त होकर सवर्णों ने पहाड़ की शरण ली तथा आज भी जो पहाड़ो में सवर्णों का बहुमत है , वह महापद्मनन्द के जंगलराज की देन है | चाणक्य की चोटी पकडकर मगध में ही घसीटा गया था | भूरा बाल ( भूमिहार , राजपूत , ब्राह्मण , लाला ) के सफाए का नारा चाहे लालू ने दिया हो या न दिया हो , पर यह नारा वैसे ही लालू से जुड़ा हुआ है जनदृष्टि में जैसे --
' तिलक तराजू कलम तलवार
इनको मारो जूते चार '
का नारा बसपा के साथ चाहे यह झूठ ही क्यों न हो | इस जंगलराज को पलटने के लिए चाणक्य ने भी जंगलराज की शैली में ही लड़ाई लड़ी | 'कुटिल' से 'कौटिल्य' बना है तथा अपनी निंदा को उसने अपनी प्रशंसा मान लिया | RSS की तरह अपनी निंदा से घबराया या बिगड़ा नही | विषकन्या प्रयोग तक करके किस तरह नन्दवंश से छुटकारा दिलाया - इतिहास साक्षी है | पुष्यामित्र शुंग ने भारतीय इतिहास की एकमात्र सैनिक क्रांति मगध में ही की तथा बौद्धधर्म का उन्मूलन जंगलराज के तौर तरीको से ही हुआ | आधुनिक युग की देखिये तो ---
 " वैटिकन पोप का
    सहरसा गोप का "
नारा बिहार में ही लगा था तथा नेहरु युग में पंजाब को छोड़ दिया जाय तो मुसलमानों का सबसे बड़ा नरसंहार बिहार में ही हुआ था | आज भी जो बांग्लादेश बिहारी मुसलमानो की समस्या से त्रस्त है , वह बिहार के लोगो की ही देन है | यह संघपरिवार की देन नही है | पंजाब में तो संघ का अच्छा ख़ासा आस्तित्व भी था किन्तु बिहार में संघ लगभग आस्तित्वहीन था | बिहार में जवाहर लाल नेहरु के प्रचंड तेजोयुग में भी बिहारी मुस्लिमो की समस्या बिना जंगलराज के नही हुई होगी |
      पुनः जब भागलपुर कांड हुआ तथा अन्य बड़े बड़े दंगे हुए - हजारो लाखो की संख्या में लोग विस्थापित हुए , उस टक्कर के दंगे दूसरे भागो में नही हुए | विभिन जातीय सेनाओ का गठन तथा जातिगत नरसंहार जितने बड़े पैमाने पर बिहार में विभिन्न सरकारों में हुआ , क्या वह जंगलराज नही था तथा क्या उसकी भयावहता आज से महती नही थी | बाबा साहब अम्बेडकर के नेतृत्व में जिस समय हिन्दू मान्यताओ तथा परम्पराओ को झटका दिया जा रहा था , उस समय क्या डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने तगड़ा ब्रेक लगाकर यह परिस्थिति नही पैदा कर दी थी कि डॉ. अम्बेडकर को त्याग पत्र देना पड़े | Hindu Code Bill कानून न बन सके , भारत में मनुस्मृति , याज्ञवल्क्य स्मृति तथा मिताक्षरा के कानून चलते रहे -- इस मार्ग पर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने देश को मोड़ा - यह वह रास्ता नही था जिसे उस समय जवाहर लाल नेहरु तथा अब मोदी विकास का मार्ग कहते है | यह " आरण्यक युग " ( Jungle age ) की वापसी का मार्ग प्रशस्त करता है | जैसे मुसलमानो के बारे में Muslim Personal Law लागू है उसी पर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद हिन्दुओ के बारे में Hindu Personal Law लागू रहने देना चाहते थे | हमे डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पर गर्व है कि मनुस्मृति , याज्ञवल्क्य स्मृति , दायभाग तथा मिताक्षरा के कानूनों की रक्षा के लिए उन्होंने मजबूती से पं. जवाहर लाल नेहरु तथा अम्बेडकर से पंजा मिलाया तथा इन दोनों महत्वपूर्ण हस्तियों के Joint Psychological Pressure के आगे विचलित नही हुए | विवेकानंद ने इस बिंदु पर लिखा है कि " If Manu visits India, he will not be bewildered. He will find some changes hither and thither, but fundamentals remain the same. विकास का रास्ता अंग्रेजियत की ओर ले जाता है | डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने स्मृतियों के युग की ओर भारत के कदमो को मोड़ने की कोशिश की | ऋषियों के आरण्यक युग ( Jungle age ) से तादात्म्य बिठाने की कोशिश | इस jungle age की वापसी के मार्ग को प्रशस्त करने के लिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद के पुण्य प्रयास का हम अभिनन्दन करते है तथा उन्हें सादर प्रणाम करते है | आखिर यहाँ का न्याय है कि Muslim Personal Law को तो touch करने का साहस कोई न करे क्योकि अफजल मिल जायेगा तथा Hindu Personal Law को - स्मृतियों की व्यवस्था को ध्वस्त कर दो क्योकि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के हटने के बाद अफजल तो दूर कोई डॉ. राजेंद्र प्रसाद की तरह मुख्यवक्ता भी न मिले | यदि common civil code लागू किया गया होता तो हम नेहरु से असहमत होते हुए भी इसे नेहरु की मर्दानगी तथा आधुनिक liberal विचारधारा के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक मानते किन्तु Muslim Personal Law को जारी रखते हुए Hindu Personal Law से छेड़खानी करना तो appeasement की पराकाष्ठा है तथा वही कहावत चरितार्थ होती है कि "गरीब की जोरू सबकी भाभी |" आरण्यक युग ( jungle age ) की वापसी के अभियान के प्रबल पुरोधा डॉ. राजेंद्र प्रसाद को मनुवादी पार्टी की ओर से तथा मेरी ओर से शत - शत नमन |
      बिहार जीवन्त लोगो की भूमि रही है तथा डॉ. लोहिया का कहना है कि ' जिन्दा कौमे पांच साल तक इंतजार नही करती |' प्रजातंत्र का तकाजा है कि पांच साल तक इंतजार करो - इसका कोई विकल्प नही है | श्री जयप्रकाश नारायण जी ने जिस सम्पूर्ण क्रांति ( Total Revolution ) का आह्वान किया था , क्या वह कानून के राज का आह्वान था या जंगलराज का ? मोदी जी के बारे में क्या सच है , क्या नही - इसे माननीय न्यायलय जाने, मोदी जी जाने किन्तु जनमानस की धारणा है कि वे गोधरा के हीरो है तथा जब तक यह धारणा थी तब तक दिल्ली में 7 में से 7 सीटें लोकसभा में मिली , यू.पी. में 80 सीटो में से 73 सीटें मिली | जब यह धारणा विखंडित होकर के विकासपुरुष की अवधारणा सामने आई तथा सामाजिक क्रांति तथा अनन्तकाल तक चलने वाले आरक्षण के वाहक बन गये , तबसे दिल्ली तथा बिहार की विधानसभा में में क्या हुआ सबने देखा तथा यू.पी. में जो होने वाला है - उसमे पालने में पूत के लक्षण आरंभिक survey में दिखने लगे है | अमित शाह ने साक्षी तथा साध्वी की class लेकर तथा मोदी ने अपने हाथो पद्दमपुरुस्कार के लिए चयनित चहेते अनुपम खेर के मुंह से योगी , साध्वी प्राची तथा स्वामी की गिरफ़्तारी की मांग उठाकर बड़ी मुश्किल से इस छवि को धोया है | इसी प्रकार जार्ज फर्नांडिस की डायनामाइट कांड में कोई भूमिका थी या नही इसे दिवंगित आत्मा जाने किन्तु काफी जनता उन्हें हिंसक क्रांति का समर्थन मानती है , चाहे यह धारणा मोदी के गोधरा छवि की तरह मिथक ही क्यों न हो | धरना प्रजातान्त्रिक है , किन्तु घेराव नही | मै उस जमाने में इलाहाबाद विश्वविद्यालय का छात्रनेता था | मध्यम श्रेणी का चुनाव लड़कर जीता था - मैंने नजदीक से देखा है कि जो हो रहा था , वह कानून के राज की परिभाषा में नही आता , उद्देश्य चाहे कितने ही प्रशंसनीय क्यों न हो ? उसी आन्दोलन की उपज लालू और नितीश है - कानून की धाराओं में बंधकर चलने की इनसे अपेक्षा करना व्यर्थ है | जिसे अपनी समझ में जनहित मानते है उसके लिए अपनी इच्छाओ को थोप देना इनकी फितरत है तथा इनके जंगलराज पर राष्ट्रकवि दिनकर ने टिप्पणी की है -----
पातकी न होता है
प्रबुद्ध दलितों का खड्ग
पातकी बताना उसे
दर्शन की भ्रान्ति है
आगे जो दिनकर ने आह्वान किया है वह कानून के राज्य का आह्वान नही है , बल्कि जंगलराज का ही आह्वान है ---
युद्ध रोकना है तो उखाड़ विष दंत फेको
वृक् व्याघ्र भीति से मही को मुक्त कर दो 
 अथवा अजा के छागलो को भी बनाओ व्याघ्र
दांतों में कराल काल कूट विष भर दो
वद की विशालता के नीचे जो अनेक वृक्ष
ठिठुर रहे है उन्हें फैलने का वर दो
रस सोखता है जो मही का भीमकाय वृक्ष
उसकी शिराएँ तोड़ो , डालियाँ कतर दो |
 कब जनसंघर्ष जंगलराज में बदलता है , इसकी borderline बहुत ही thin है | यह मै बिहार की बुराई में नही कह  रहा | मगध वीरो के तलवारों की गुंजार भारतीय इतिहास का गौरव रही है | आज भी सम्राट अशोक का धर्मचक्र हमारा राष्ट्रीय चिह्न है | चाणक्य हमारे राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक है | पतंजलि तथा पुष्यमित्र के प्रति श्रद्धा सुमन के रूप में आज भी ' पतंजलि शक्ति पीठ ' का निर्माण बाबा रामदेव ने किया है | आज भी पुरखो की आत्मा को शांति गया के श्राद्ध से ही होती है | बिहार बौद्धों की क्रीडास्थली रहा है | बिहार ने हमे जगद्गुरु बनाया है तथा आज भी बौद्ध धर्म के अनुयायी पूरे विश्व में है | ईसाइयत भी बौद्ध धर्म से प्रभावित है | विद्यापति के गान विश्वप्रसिद्ध है | मगधवीरो ने ही यवन हमलावर सेल्यूकस को पीछे ढकेलकर उसकी बेटी को चन्द्रगुप्त की महारानी बनाकर आधुनिक युग के लवजेहाद की शुरुआत की थी | तलवार से तथा प्रेम से विश्वविजय मगध ने की है | बिहार में शास्तार्थ के दौरान आदि शंकराचार्य से कामशास्त्र पर प्रश्न पूछकर मंडन मिश्र की पत्नी ने उन्हें हतप्रभ कर दिया था तथा परकायाप्रवेश के बारे में सोचना पड़ा था |
      मागध वीर ओजस्वी रहे है | जो ओजस्वी होता है , वह सन्मार्ग पर ला दिया जाय तो देश का गौरव बन जाता है तथा यदि वह गलत रास्ता पकड़ लिया तो देश का कलंक बन जाता है | मै कन्हैया को उतना दोष नही देता जितना दोष JNU को , उसके प्रोफेसरों को , JNU की परम्परा को | कन्हैया तो बिहार का एक होनहार बेटा है | यदि यह श्रद्धानंद के गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया होता, यदि यह DAV college का विद्यार्थी होता तो आज पूरा देश उस पर गर्व करता | वह भारत माता के लिए गला कटाता | मै कन्हैया से कही अधिक दोषी उन लोगो को मानता हूँ जिन्होंने JNU के घटनाक्रम के बाद उसके पक्ष में बयान दिए | वह तो उनके हाथ का एक मोहरा बन गया है | JNU में देश की प्रतिभा जाती है - मुझे विश्वास है कि यदि JNU के समस्त परिवेश को प्रदूषित करने वाले प्राध्यापको , कर्मचारियों तथा छात्रो को एक साथ निष्कासित कर दिया जाय तो भविष्य में जो कन्हैया आएगा , वह भारत का गौरव होगा , वह भारत माता की ओर आँख उठाने वाले की आँखे निकाल लेगा | लोगो को बुरा लगा सुनकर---
कितने अफजल मारोगे
हर घर से अफजल निकलेगा
किन्तु इसके दुसरे पहलू को देखिये | जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय का नामकरण उस जवाहर लाल नेहरु के नाम पर किया गया जिन्होंने ----
(1) खान अब्दुल गफ्फार खां के भारत में शामिल होने की मांग को ठुकरा दिया तथा उस बुजुर्ग सीमांत गाँधी के मुंह से हाय निकली कि 'बापू ! आपने मुझे भेड़ियों के डाल दिया |' गाँधी - नेहरु का उत्तर था - 'आप लोग बहादुर है , उनसे निपट लेंगे |' पख्तूनिस्तान भारत का एक प्रान्त बन सकता था, गाँधी - नेहरु ने इसे होने नही दिया | गाँधी - नेहरु ने जब कहा कि ' बीच में इतना बड़ा पाकिस्तान है हम उसकी रक्षा कैसे करेंगे ?' तो सावरकर का उत्तर था ' जैसे पश्चिम बर्लिन की रक्षा अमेरिका तथा नैटो करते है , जैसे पूर्वी बंगाल की रक्षा पकिस्तान करेगा |' किन्तु ऐसा न हो सका |
(2) गाँधी जी ने कहा था कि ' भारत का विभाजन मेरी लाश पर होगा ' किन्तु गाँधी नेहरु ने भारत के विभाजन को स्वीकार किया तथा किस प्रकार देश की हत्या हुई , इसके लिए गुरुदत्त के ऐतिहासिक उपन्यास को पढने की संस्तुति की जाती है | काश अगर हम सुभाष और सावरकर के मार्ग पर चले होते तथा हमारी आजादी समझौते से न आकर गोलियों की सनसनाहट से आई होती तो आज हमे अपने पूर्वजो का अस्थि प्रवाह सिन्धु में करने के लिए पासपोर्ट की आवश्यकता न पड़ती |
(3) कश्मीर में कोई विवाद ही नही था | वैधानिक रूप से हरी सिंह राजा थे तथा उन्होंने कश्मीर में भारत का संविलीयन किया था | शेख अब्दुल्ला का अविष्कार करना सर्वथा भारत के हितो के विरूद्ध था | UNO में मामले को ले जाना तथा plebiscite को स्वीकार करना आज के कन्हैया की performance का rehearsal क्या नही था ? विभाजन की नियमावली स्पष्ट थी - शेख अब्दुला का अविष्कार ही कन्हैया जैसो को जन्म देता है | जिस विश्वविद्यालय का नामकरण जवाहर लाल नेहरु के नाम पर रहेगा , जब तक लोगो को brainwash नही किया जायेगा कि शेख अब्दुल्ला का अविष्कार तथा plebiscite  की चर्चा भारत माता की मर्यादा के विरूद्ध थी , तब तक अफजल को पैदा होने से कौन रोकेगा ? शेख अब्दुल्ला को इतने लम्बे समय तक जेल में बंद रखना तथा फिर उनका महिमामण्डन यही अफजल को जन्म देता है | शेख अब्दुल्ला को एक विशेष भूमिका देना , धारा 370 - यही अफजल के प्रेरणास्रोत है | अगर केवल JNU का नाम बदलकर सुभाष या सावरकर के नाम पर कर दिया जाय तो भारत माँ के टुकड़े की चर्चा करने वाले की बोटी - बोटी भविष्य का बिहार का कन्हैया काट डालेगा | जब तक JNU के परिवेश में छद्मधर्म निरपेक्षतावादी तत्वों का वर्चस्व रहेगा , जब तक अफजल का गुणगान करने वाले   लोग इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहेंगे , तब तक हजारो अफजल निकलेंगे | कन्हैया बिहार का बेटा है, तो अफजल, मकबूल बट तथा हुर्रियत कांफ्रेस के नेता भी भारत माता के बेटे है | छद्मधर्म निरपेक्षतावादी उन्हें देशद्रोही बनाये है , उग्रवादी बनाये है | उनको अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर बरगलाया गया है | देशद्रोह की गंगोत्री को पहचानिए - उसका उद्गम स्थल क्या है ? जब गाँधी जी ने ' खिलाफत गाय है ' का नारा देकर खिलाफत के पक्ष में भारत में माहौल बनाया था , तो जिन्ना ने कहा था कि " आप भारत के मुसलमानों में Extra territorial loyalty पैदा कर रहे है तथा जब ये भविष्य में बिगड़ी - बहकी बाते करेंगे तो आप इन्हें तोपों का fooder ( चारा ) बना देंगे | खलीफा का क्या हो , इससे भारतीय मुस्लिम का क्या मतलब ?" किन्तु गाँधी नही माने , तो नही माने |
      इस प्रकार किसी प्रदेश को , व्यक्ति को , पार्टी को jungle raj के नाम से brand कर देना उचित नही है | बिहार के लोग तेजस्वी है - लोहिया की भाषा में ' जिन्दा कौम ' है | यदि उन्हें समुचित मार्ग निर्देशन मिले तो देश को चाणक्य , चन्द्रगुप्त , अशोक दे सकते है | यदि वे दिग्भ्रमित हुए तो नंदवंश तथा बृहद्रथ बनकर देश के पतन के कारण बन सकते है | परस्पर आलोचना - प्रत्यालोचना के स्थान पर देश के चतुर्मुखी विकास की बात सोचनी होगी | प्रजातंत्र में जनादेश सर्वोपरि होता है | जनादेश को गाली देने की जगह अपनी कमियों की समीक्षा वांछनीय है |


Tuesday, 29 March 2016

एतद् देश प्रसूतस्य - VI

एतददेश प्रसूतस्य -VI
                    भाजपा कांग्रेस हो गई तथा कांग्रेस साम्यवादी पार्टी
एक ओर संघपरिवार तथा भाजपा ने पल्टी मारकर कांग्रेस की centrist policy को adopt कर लिया तो दूसरी ओर मुलायम सिंह यादव जी ललकारने लगे कि ''परिंदा पर नहीं मार सकता" तथा "आत्मरक्षा" के लिए वैध अवैध असलहे रखना मुसलमान के लिए आवश्यक है I" कम्युनिस्ट घर घर से अफजल निकालने वाले आंदोलनों को चाहे आयोजित किए हों या नहीं ,पर उनकी उपस्थिति में बिना उनके चेहरे पर तनाव पैदा किए - ये नारे लगे इसमें संदेह नहीं है I ममता जी के जेहादी तेवर देखने लायक हो गए I बंगलादेश से अवैध आव्रजन की बात या रोक जब संघ तथा भाजपा के एजेंडे में नही रही, तो और कौन सोंचे ? यदि बंगाल और असम में भाजपा की सरकार नहीं है तो दिल्ली तथा मुंबई में तो है -वहां पर खुल्लमखुल्ला अवैध बांग्लादेशी क्या केजरीवाल के बूते रह रहे हैं , दिल्ली का पुलिस कमिश्नर केजरीवाल के अधीन नहीं है | मुस्लिम वोट बैंक ममता के पास चला गया, तो कही केजरीवाल के पास | सपा , बसपा , राजद , नितीश कुमार , जयललिता , करूणानिधि , एनटी रामराव , शरद पवार आदि पहले से सेंधमारी कर रहे थे | अपनी जमीन बचाने के लिए Congress को defensive होना पड़ा | चाहे उसका आशय जो भी रहा हो , JNU के देशद्रोही नारे लगाने वालो के साथ कांग्रेस खड़ी दिखी | राजनीति में सदैव 2+2=4 नही होता | राजनीति perception पर चलती है | अब अगर मुस्लिम वोट बैंक नही रहेगा , तो सत्ता से चिपके पिस्सू किसी भी सेक्युलर पार्टी को छोडकर खुद भागने लगेंगे | चिदम्बरम तक नेहरु परिवार से हटकर कांग्रेस का भविष्य देखने लगेंगे जिन्हें बिना किसी जनाधार के मात्र पारिवारिक स्वामिभक्ति के चलते इतना मान सम्मान दिया गया था |
 कांग्रेस क्या करे ? किंकर्तव्यविमूढ़ है | आज वह appeasement में होड़ लगा रही है | सुधर पायेगी भगवान मालिक है | भाजपा तथा संघपरिवार के लिए Congress ने एक बड़ा Vacuum छोड़ दिया जिसे भाजपा तथा संघपरिवार लगातार भरे जा रहे है | इसके बाद appeasement की इस दौड़ में Congress अधिकांश states में जब junior partner बनकर रह जाएगी तो फिर कभी भी उसके revival का chance नही रह जायेगा |
(4) अगर Congress Centrist Policy Adopt नही करती है , अगर congress मुलायम सिंह से भी कट्टर इस्लामपरस्ती करना चाहेगी तथा इस Competition में उतरेगी तो यह गलत फहमी है कि उसे मुसलमान वोट देंगे | अधिकांश मुसलमानों का वोट अब बटेंगा नही | यदि सांसदों के चुनाव में भी मुस्लिम वोट बंटा नही होता तो भाजपा को इतनी landslide victory नही मिलती | रामपुर , मुरादाबाद संभल , मेरठ आदि जैसी तमाम दूसरी सीटो पर निर्यायक भूमिका में थे | किन्तु उन्हें भाजपा के इस स्तर के विजय की उम्मीद नही थी , इसीलिए बंट गये | केजरीवाल के विजय का रहस्य यही था कि शीला दीक्षित जैसे प्रमाणित धर्मनिरपेक्ष व्यक्तित्व के भी वश का नही रहा कि मुस्लिम वोट ले सके | यही बिहार में हुआ | यू.पी. में या किसी भी स्टेट  में कांग्रेस को मुस्लिम वोट तभी मिलेगा जब वह मुख्यधारा में दिखाई दे | राज्य स्तरीय पार्टियों के पास एक visible क्षेत्रीय या जातीय या धार्मिक वोट बैंक है | कांग्रेस सर्व समाज की है | उसमे जगजीवन से लेकर कमलापति त्रिपाठी तक , बेनी प्रसाद वर्मा से लेकर पुनिया तक सभी अपने को मकानमालिक समझते है | कोई अपने को किराएदार नही मानता | हिन्दू तथा मुस्लिम दोनों के नरमपंथियो से लेकर उग्रवादियों तक को congress संतुलित करती रही है | अगर बेलछी कांड में इंदिरा जी का दलित प्रेम दिखता था तो देवली कांड में 24 दलितों के हत्यारों को वी. पी. सिंह के राज्य में बिना एक डंडे की मार पड़े जमाने ने जेल जाते देखा | अगर कांग्रेस अल्पसंख्यको का तुष्टीकरण करती थी तो जमाने ने यह भी देखा कि मलियाना तथा हाशिमपुरा में कांग्रेस क्या कर सकती है | मुरादाबाद में ईदगाह कांड में नमाजियों के भीड़ पर जितनी जबर्दस्त फायरिंग कांग्रेसी राज में हुई , उतनी जलिया वाला बाग कांड के बाद शायद ही इतिहास में कभी हुई हो | केवल शाहबानो केस में तुष्टीकरण ही कांग्रेस ने नही किया | आवश्यकता पड़ने पर भीषण दमनचक्र भी चलाया | शेख अब्दुल्ला को कांग्रेस ने इतना सिर पर चढाया कि जनसंघी गाते थे कि ---
हर इसाई यहाँ का फीजो है
हर मुस्लिम यहाँ का अब्दुल्ला |
कांग्रेस कहती थी ठीक कहते हो | अब्दुल्ला धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक है | हम चाहते है कि हर मुसलमान शेख अब्दुल्ला हो जाय | किन्तु जब शेख अब्दुल्ला ने तेवर दिखाना चालू किया , तो जितने लम्बे समय तक शेख अब्दुल्ला को कांग्रेस ने जेल की चहारदीवारी में कैद कर दिया उतने लम्बे समय तक भाजपा राज्य में कत्लेआम मचाने वाला कोई घोषित आतंकवादी भी नही बंद रह सका है | कांग्रेस की परम्परा थी कि सबका तुष्टीकरण करती थी - सबके आगे हाथ जोडती थी - किन्तु आत्मसमर्पण नही करती थी | कांग्रेस सबके आगे घुटने टेके दिखती थी , लेकिन सबको अपनी औकात में रखती थी | शाही इमाम के साथ इमरजेंसी में क्या हुआ सबको पता है | शाही इमाम सर संघचालक तक से हाथ मिलाने को मजबूर हो गए | गोंडसे और जिन्ना दोनों से कांग्रेस खिलवाड़ कर लेती थी " मै नागिन , तू सपेरा |" कुमारमंगलम जैसे साम्यवादी विचारधारा के घुसपैठियों को यदि कांग्रेस पनाह देती थी , तो सिद्धार्थ शंकर रे के राज्य में बंगाल में नक्सलियों पर जो दमनचक्र चला वह किसी इस्लामी देश में भले चला हो या स्टालिन या हिटलर जैसे ने चलाये हो , पर किसी प्रजातंत्र में नही चला होगा | राजीव ने जनरैल सिंह भिण्डरावले को संत कहा तथा लोंगोवाल से समझौता हुआ, किन्तु operation blue star , इंदिरा हत्याकाण्ड तथा सिखों का हत्याकाण्ड भी हुआ | राष्ट्रपति जैल सिंह को राष्ट्रपति भी कांग्रेस ने ही बनाया था | कांग्रेस सबके साथ थी , किसी के साथ नही थी | कांग्रेस सबको लेकर चलती थी | कांग्रेस ने Civil Rights Act बनाया किन्तु उसे इतना कड़ा नही बनाया कि समाज में कटुता उत्पन्न हो | सीलिंग किया किन्तु annihilation of class enemies नही किया | दहेज़ का कानून बनाया किन्तु ऐसा कड़ा कानून नही बनाया कि माननीय उच्चतम न्यायालय तथा उच्च नयायालय भी कई मौको पर कानून के दुरूपयोग पर त्राहि - त्राहि कर चुके है | कट्टर से कट्टर मुस्लिम लीग तथा संघपरिवार के लोग भी जब कांग्रेस में गये तो उनको कांग्रेस ने इस सीमा तक आत्मसात कर लिया कि वे प्रथक नही दिखते थे | बाघेला साहब को देखकर कोई कहेगा कि ये कभी संघपरिवार के रहे होंगे | कांग्रेस खुद औकात में रहती थी तथा सबको औकात में रखती थी | सरदार पटेल कांग्रेस में हैदराबाद आपरेशन करते थे तो नेहरु कश्मीर में प्लेबिजिट तथा यू. एन. और सीजफायर का रास्ता अपनाते थे |
(5) अब वे दिन नही रहे | अब बटाला हॉउस कांड की तथा इसरत जहाँ कांड की बात की जाती है | मलियाना कांड तथा हाशिमपुरा कांड को निगल जाने वाली कांग्रेस - वह कांग्रेस जो इन कांडो में आरोपित S.P. को अल्पसंख्यको को संतुष्ट करने के लिए कभी निलंबित करती थी तो कभी बहाल करती थी - उस कांग्रेस के नेताओ के बयान आने लगे कि सोनिया गाँधी रो पड़ी थी | JNU में टी. वी. में पूरा जमाना देख रहा था कि क्या नारे लग रहे है तथा राहुल गाँधी 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' पर प्रवचन दे रहे थे | भगवान जाने कि राहुल तथा सोनिया के Political advisors का यह सुविचारित विचार था या चापलूसी में ठकुरसोहाती कर रहे थे | JNU कांड पर कांग्रेस का सधा - सधाया बयान आना चाहिए था- "जिस तरह के नारे लगने की बात कही जा रही है , वे नारे निंदनीय तथा देशद्रोह की परिधि में आते है तथा कठोरतम दंडनात्मक कार्यवाही की जानी चाहिए |" बिना आग के धुंआ नही होता | कन्हैया ने यदि नारे न भी लगाये हो तो भी अध्यक्ष के नाते उसका नैतिक दायित्व था कि वह इसे रोकने की कार्यवाही करता तथा भीड़ के द्वारा overpower होने की स्थिति में यदि यह संभव नही था तो कम से कम वहां से withdraw कर जाता | फिर भी उसके विद्यार्थी होने के नाते इस बात की गहराई से छानबीन होनी चाहिए कि उसने नारे लगाये या नहीं | यदि देशद्रोही नारे लगाने की बात प्रमाणित होती है , तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में इसकी छूट देने की बात कहना अराजकता है किन्तु वह एक terrorist नही है बल्कि एक misguided youth है जिसे भुखमरी , गरीबी , अशिक्षा से यहाँ तक कि RSS , मोदी या सांप्रदायिकता या असहिष्णुता से आजादी के नारे लगाने का हक है किन्तु कश्मीर की आजादी का अथवा हर घर से अफजल निकलने का नारा लगाने का कोई अधिकार नही | न्याय की मांग है कि यह नारा लगाना देशद्रोह है, किन्तु तथ्यों का गहराई से सत्यापन किया जाय तथा आरोप सत्य होने की स्थिति में इस सिद्धांत को ध्यान में रखा जाय कि justice should be tempered with mercy - विशेष रूप से इस पृष्ठभूमि में कि वह अभी terrorist नही है बल्कि दिग्भ्रमित है | इस आयोजन के पीछे जिन लोगो का शातिर दिमाग रहा, उनके विरूद्ध exemplary action लेकर रासुका तक की कार्यवाही की जानी चाहिए |"
यह कही भी उन्मादी बयान नही है - राष्ट्रवादी भी है , समझौतावादी भी है , appeasement करने वाला भी है तथा सख्ती का सन्देश भी देता है | ममता जी से अगर appeasement में congress के chief minister competition करेंगे तो कितने दिन करेंगे - 20 साल 30 साल हद से हद 40 साल | कांग्रेस ने अगर इस स्तर का appeasement किया होता तो अब तक WB तथा Assam में न कम्युनिस्ट को , न ममता को , न कांग्रेस को , न भाजपा को लड़ने की कोई जगह बचती | कांग्रेस जो चोरी चुपके Bangladeshi influx हुआ, उसे भगा तो न पाती पर उसको तेजी से बढ़ने भी न देती | वोट बैंक के निर्माण के चक्कर में demographical changes large scale पर न होने पाते | 20-30-40 साल में कश्मीर की स्थिति में illicit immigration की वजह से W.B. तथा Assam पहुचने जा रहा है | मुलायम सिंह तथा लालू से बिगड़ी बहकी बाते करने में कांग्रेस कभी competition नही करती थी | वह अपने रास्ते चलती थी | आज मुलायम से भी तगड़ा appeasement कांग्रेस कर रही है | क्षेत्रीय दल हतप्रम है | किन्तु minorities का वोट कांग्रेस को नही मिलेगा | जिसे minorities प्यार करते है उसे वोट नहीं देते | minorities का वोट उसे मिलता है जिसके पास अपना निजी वोट बैंक होता है और निजी वोट बैंक कांग्रेस ने कभी बनाया ही नहीं और न यह उसकी परम्परा रही |
 आज भाजपा D. Raja की बेटी को political courtesy extend कर रही है | कानून कहता है कि आरोप झूठे हो या सच्चे यदि वे cognizable office के ingredients को पूरा करते है , तो किसी भी प्रकार की जांच की आवश्यकता नही है - Police को सीधे cognizance लेकर FIR पंजीकृत करनी चाहिए | पिल्ले तथा मणि ने जो बयान दिए , उनके गुणदोष पर विचार किये बिना सीधे FIR लिखाने का प्रावधान संविधान तथा भारतीय दण्ड विधान में है | Law should be allowed to adopt its own course - किसी का चेहरा तथा पद देखकर कानून नही चलता है | कानून के अपने मानक है | प्रधानमंत्री तक के खिलाफ FIR अंकित कराने के लिए किसी के permission की आवश्यकता नही है | prosecution sanction की आवश्यकता तब होती है जब आरोप सत्य पाए जाये तथा न्यायलय में आरोपपत्र भेजा जाना हो | और उसमे भी गिरफ़्तारी के लिए किसी prosecution sanction की आवश्यकता नहीं है | इसकी आवश्यकता माननीय न्यायलय के संज्ञान लेने के लिए है | गंभीर आरोपों में गिरफ़्तारी के बाद 90 दिनों के अंदर यदि  prosecution sanction नही मिलती तथा आरोपपत्र नही लगता तो अभियुक्त जमानत पर छोड़ दिया जायेगा | और A.R. Antulay Case के अनुसार भूतपूर्व मंत्रियो तथा अधिकारियो के लिए prosecution sanction की कोई आवश्यकता नही है | इसके अलावा 409 I. Pc में सुस्थापित सिद्धांत है कि वर्तमान मंत्री या अधिकारी के लिए भी prosecution sanction आवश्यक नही है क्योकि सरकारी धन का गबन करना राजकीय सेवा का अंग नही है | तो फिर क्या बलात्कार , हत्या या अनुसूचित जाति अत्याचारण निवारण अधिनियम के अपराध राजकीय सेवा के अंग है ? इसी logic को आगे बढाते हुए क्या सिगरेट से जलाना राजकीय सेवा का अंग है ? यदि तकनीकी द्रष्टि से पूर्ण विवेचना के बाद आवश्यक समझा जाय तो अभियोजन स्वीकृति बाद में ली जाती है | किन्तु आज तक Pillai तथा मणि के बयान पर गाल सभी बजा रहे है किन्तु आज तक चिदंबरम के खिलाफ मुकदमा तक कायम नही हुआ | आखिर चिदंबरम को संरक्षण कौन दे रहा है - वह मोदी जिनको मरवाने के प्रयासों तथा फर्जी मुकदमो में फंसाने के प्रयासों जैसे आरोप लोग चिदम्बरम के बारे में सुनते आ रहे थे | यह भाजपा के कांग्रेसीकरण का नमूना है |
 यदि कांग्रेस ने अपनी रणशैली छोड़ दी , तो वही होगा जो पानीपत के तीसरे युद्ध में अहमदशाह अब्दाली और मराठो के बीच हुआ | मराठो ने छापामार युद्ध की शैली छोड़ दी और परिणाम सामने है | कांग्रेस अपनी संतुलित कार्यशैली को छोडकर अतिवादी रास्ते पर निकल पड़ी है | कम्यूनिस्ट पूरी दुनिया से उजड़ गये | उनकी नकल करने पर कांग्रेस भी उजड़ जाएगी | कांग्रेस अपने रास्ते को छोड़ेगी तो खाली जमीन को भाजपा कब्ज़ा लेगी तथा सूखते सूखते एक दिन कांग्रेस भी कम्यूनिस्ट की तरह सूख जाएगी | यदि कांग्रेस अपने रास्ते पर बनी रही तो भाजपा भी अपने fundamentals को छोड़ नही पायेगी तथा देश में एक two party system का दृश्य दिखेगा | (समाप्त)

Saturday, 26 March 2016

मुसलमानों का असली प्रतिनिधि कौन : जावेद अख्तर या ओवैसी ?- भाग - 3

मुसलमानों का असली प्रतिनिधि कौन : जावेद अख्तर या ओवैसी ?
ओवैसी ने कौन सी नई बात कही ?
कब कब किस मुसलमान ने " भारत माता की जय " कहा ? भाग - 3
अर्थात 15 अगस्त 1947 को मौलाना आजाद तथा जवाहर लाल नेहरु दोनों आजाद हुए , किन्तु जवाहर लाल 1000 साल बाद तथा मौलाना आजाद 150 साल बाद | पूरे विश्व में राजनीतिशास्त्र का कोई विद्वान् इस पर टिप्पणी करे कि क्या जिन दो लोगों का जय और पराजय का इतिहास एक नहीं है , वे एक राष्ट्र के हैं ? क्या उनकी राष्ट्रीयता ( Nationality ) एक मानी जा सकती है , भले ही वे एक ही Nation - State के Citizen क्यों न हों ? यह मै Academic Question उठा रहा हूँ - इसको किसी की आलोचना में न लिया जाए | जब तराइन के मैदान में पृथ्वीराज की पराजय हुई तो अगर एक व्यक्ति के लिए विजय दिवस तथा दूसरे के लिए पराजय दिवस या शोक दिवस हो तो क्या इसी को ' एक राष्ट्र ' ( One Nation ) कहते हैं ? One Nation तथा One State में fundamental difference हैं | परम पूजनीय गुरूजी गोलवरकर ने इसीलिए राष्ट्र की आत्मा ' चिति ' ( We - feeling ) को माना है | गुलाम , खिलजी , तुगलक , लोदी , मुग़ल शासन क्या गुलामी का काल था या नहीं - इस पर जिनमे मतभेद हो , उनकी citizenship भले एक हो , पर क्या Nationality भी एक है |
भाजपा नेता तथा RSS के वरिष्ठ लोग हतप्रभ हैं | ओवैसी के बयान से वे क्षुब्ध हैं | सावरकर तथा गोलवरकर के चेलों को ओवैसी से इससे बेहतर बयान की उम्मीद क्यों है ? आज भाजपाई तथा संघी स्तब्ध इसलिए हैं कि श्री मोदी जी विश्वरत्न बनने के लिए भारतरत्न अटल बिहारी बाजपेई से भी दो हाथ आगे निकल गए हैं | अटल जी की सरकार विकलांग थी - पूर्ण बहुमत नहीं था | उनकी लाचारी एक बार समझी जा सकती है किन्तु मोदी के पास पूर्ण बहुमत है | उन्हें संघ का मूल एजेंडा लागू करने में क्या दिक्कत है ? मै मोदी जी की बुराई नहीं कर रहा | उनकी शक्ल देखकर दंगाइयों की रूह कांप जाती थी | उन्हें लोग गोधरा के हीरो के नाम से जानते थे | उनका सीना कितने इंच का था - मैंने तो नापा नहीं किन्तु यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि उनका नाम सामने आते ही हर हिन्दू का सीना 56" का हो जाता था | किन्तु कुछ स्वरचित पंक्तियाँ कह रहा हूँ -
तब मैंने अपना जीवन ही
कर दिया समर्पित था तुमको
सोचा था ऐसा मधुर योग
मिल पाता इस जग में कम को
पर अब तो सब कुछ बदल गया
मन का उल्लास विषाद बना
आयाम सजीले सपनों का
है परिहासी अवसाद बना |
नेहरु ने न जाने क्या जादू टोना कर दिया कि लगता है प्रधानमन्त्री की कुर्सी विक्रमादित्य की कुर्सी बन गई है | विक्रमादित्य की कुर्सी की विशेषता थी कि वह जमीन में दबी थी | उस स्थान पर एक अनपढ़ गड़ेरिया बैठ गया तो वह शास्त्रों की , न्याय व्यवस्था की चर्चा करने लगा | उसी तरह प्रधानमन्त्री की कुर्सी पर बैठते ही हर प्रधानमन्त्री विदेशनीति तथा गृहनीति में नेहरु का चेला हो गया | ' तन - मन हिन्दू ' लिखने वाले अटल जी की आवाज बदल गई | सोमनाथ यात्रा को गति देने वाली पार्टी का शीर्ष नेतृत्व बाबरी मस्जिद गिरते ही शर्मिंदा होने लगा कि यह एक काला दिवस है | जब हिन्दू हृदय सम्राट बाल ठाकरे ने एलान किया कि यदि उनके स्वयंसेवकों ने बाबरी मस्जिद गिराया है तो उन्हें अपने स्वयंसेवकों पर गर्व है , तो कल्याण सिंह की मर्दानगी जगी तथा उन्होंने गर्व घोषित करते हुए अपनी सरकार कुर्बान की | जब आडवानी जी को प्रधानमन्त्री बनने का स्वप्न आया , तो वे जिन्ना की मजार पर चादर चढाते मिले - भूल गए कि जिन्ना ने ही उनको भारत भेजा था | अवसाद ग्रस्त हिन्दू मष्तिष्क को तिनके का सहारा मिला मोदी का तथा मोदी को प्रचंड समर्थन मिला | जनता क्या करती है , इसका चित्रण हिटलर ने किया है - ' यदि मै आगे चलूँ , तो मेरे पीछे चलो , मै पीछे हटूं , तो मुझे कुचलकर आगे बढ़ जाओ | ' जनता की भावनाओं पर चढ़े हुए हर नेता का यही हस्र होता है | देश के बंटवारे के साथ गाँधी का अस्तित्व समाप्त हो गया था तथा यदि नाथूराम गोंडसे ने उनकी हत्या न की होती , तो वे केवल जयप्रकाश नारायण या अन्ना का स्तर प्राप्त कर पाते | 1962 की लड़ाई में नेहरु का अस्तित्व समाप्त हो गया | मेरे पूज्य पिताजी ने कहा था कि ' अब नेहरु में इतना नैतिक साहस नहीं बचेगा कि वे विदेश जा सकें |' 2 वर्ष के शेष जीवन में वे विदेश नहीं गए - अपवाद स्वरुप केवल एक बार नेपाल ( भैंसालोटन ) गए | मैंने पिताजी से तर्क - वितर्क किया कि देखिये नेहरु विदेश चले गए | पिता जी का उत्तर था कि जब तक पशुपतिनाथ जी तथा विश्वनाथ जी के मंदिरों में घंटे बज रहे हैं , तब तक भारत और नेपाल की नागरिकता अलग हो सकती है लेकिन राष्ट्रीयता एक है | वे अलग Nation - State हो सकती हैं , किन्तु उनकी Nationality अलग नहीं है | नेपाल जाने के लिए Passport नहीं लगता | जैसे Canada तथा America में Passport नहीं है |
प्रश्न है - राष्ट्रभक्ति की उम्मीद आप किससे कर सकते हैं ? जिसे आप अपने राष्ट्र का समझते हैं ? क्या RSS मुसलमानों को राष्ट्रीय मानता है ? मै कोई आरोप नहीं लगा रहा | मै दिग्विजय सिंह नहीं हूँ | RSS स्वयं ही इसका जवाब दे दे | गुरूजी गोलवरकर का प्रसिद्ध उदगार सबने पढ़ा है - ' हिन्दू ही यहाँ का राष्ट्र है , अन्य परकीय हैं |' हाँ , वे मोहम्मदी हिन्दू तथा मसीही हिन्दू की संघ की अवधारणा में विश्वास रखते हैं | मसीही हिन्दू का उदाहरण राजकुमारी अमृत कौर हैं | सोनिया गांधी को राजनीतिक कारणों से भाजपा और उसकी वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज विदेशी महिला भले कहें किन्तु गुरूजी गोलवरकर की परिभाषा में वे मसीही हिन्दू हैं तथा मसीही हिन्दू होने के कारण राष्ट्रीय हैं क्योंकि -
1. प्रयाग के कुम्भ - समागम में वे डुबकी भले ही न लगा पाई हों किन्तु कटि-स्नान ( कमर तक की डुबकी जिसमे आधी देह भीगती है ) तो गंगाजल में उन्होंने किया ही था |
2. सोनिया गांधी जी को साड़ी पहनने में तथा आवश्यकतानुसार सिर पर पल्लू डालने में कोई संकोच नहीं है |  
3. अपने पुत्र का नाम राहुल तथा पुत्री का नाम प्रियंका रखा | Robert तथा Mary जैसे नाम उन्होंने अपने बेटे बेटियों के नहीं रखे | अत: आदरणीय सुब्रमणयमस्वामी चाहे सोनिया तथा राहुल को जो भी मानें , किन्तु RSS के परमपूजनीय गोलवरकर की दृष्टि में सोनिया जी ' मसीही हिन्दू ' की श्रेणी में आती हैं तथा राहुल चाहे England की citizenship लें , और चाहे सदा के लिए भारत छोड़ दें किन्तु किसी भी देश में बस जाने पर उनकी राष्ट्रीयता भारतीय ही रहेगी क्योंकि वे मसीही हिन्दू हैं | इस्लामी दुनिया में ' रहीम ' और ' रसखान ' मोहम्मदी हिन्दू के प्रतीक हैं | ताज बेगम को भी मोहम्मदी हिन्दू माना जा सकता है जिन्होंने घोषणा किया कि-
" नन्द के कुमार कुरबान तेरी सूरत पे ,
हौं तौ मुगलानी हिन्दुआनी ह्वै रहूंगी मै ||
इसाइयत मात्र एक पूजा पद्धति है | इस्लाम एक पूर्ण धर्म है | बाइबल किसी भी भाषा में पढ़ी जा सकती है , किन्तु नमाज अरबी में ही होनी है | इसी प्रकार हिन्दुओं के संस्कार संस्कृत में जो मन्त्र हैं , उन्ही से होगा | इसका कोई विकल्प नहीं है | दूध और पानी मिल सकते हैं , सोना और चांदी नहीं | ईसाइयत तथा बौद्ध धर्म की कोई भाषा नहीं है | सिख धर्म की भाषा है पंजाबी तथा लिपि है गुरुमुखी | रुसी ईसाई बाइबल Russian में पढता है तथा Germany का ईसाई German में | इसीलिए मसीही हिन्दू तो feasible है , किन्तु मोहम्मदी हिन्दू नहीं | आधुनिक युग में बांग्लादेश के नजरुल इस्लाम साहब का नाम मोहम्मदी हिन्दू में लिया जा सकता है जिन्होंने अपनी बेटियों का नाम वारिधारा तथा पल्लवी रखा | इसी को Professor बलराज मधोक ने ' भारतीयकरण ' कहा है | किन्तु मोहम्मदी हिन्दू को मुस्लिम की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है | A reformed Islam is no Islam | एक संशोधित इस्लाम , इस्लाम ही नहीं है | इस्लाम में संशोधन संभव नहीं है | शिर्क की गुंजाइश नहीं है | यहाँ तक की अरबी , फ़ारसी नाम वाले भी इस्लाम से खारिज हैं यदि उनकी कुरान पाक तथा नबी में आस्था नहीं है | कम्युनिस्ट पार्टी में जितने मुस्लिमों जैसे नाम वाले सदस्य हैं , वे सारे के सारे इस्लाम से ख़ारिज हैं | कम्युनिस्ट पार्टी का ईश्वर में विश्वास नहीं है ' Religion is the opium of the masses ' | अत: कम्युनिस्ट मुसलमान हो नहीं सकता है | एक बार एक कम्युनिस्ट रुझान की सिनेजगत की अभिनेत्री ने जब शाही इमाम को ' कठमुल्ला ' कहने की हिमाकत की थी , तो शाही इमाम ने उन्हें ' नाचने गाने वाली तवायफ ' के रूप में संबोधित किया था | ऐसे में मोहम्मदी हिन्दू की धारणा असंभव है , क्योंकि रहीम और रसखान जैसे लोग मुसलमान हैं ही नहीं , वे इस्लाम से खारिज हैं , क्योंकि वे बुतपरस्त हैं |

इस बात की पुष्टि सरदार विट्ठल भाई पटेल के इस वाक्य से होती है कि ' There is only one nationalist Muslim in India and he is Pt. Jawahar Lal Nehru .' अर्थात भारत में केवल एक राष्ट्रवादी मुस्लिम हैं और वह है पं० जवाहर लाल नेहरु | सरदार की उक्ति Organiser में कई बार उद्धृत हुई हैं | ऐसी स्थिति में यदि मोहम्मदी हिन्दू की अवधारणा को सर्वथा भ्रामक तथा काल्पनिक न भी माना जाए , तो भी यह मानना पड़ेगा कि 90% से अधिक मुस्लिम मोहम्मदी हिन्दू की सूची में नहीं आते हैं | कम से कम ओवैसी तो मोहम्मदी हिन्दू नहीं ही है | और जो मोहम्मदी हिन्दू नहीं है , उसे गुरूजी गोलवरकर भारत का नागरिक ( citizen ) भले मान लें , किन्तु भारत का राष्ट्रीय ( National ) नहीं मानते | Stalin के सिद्धांतों का Destalinisation उसके उत्तराधिकारियों ने किया किन्तु परम पूजनीय गुरूजी गोलवरकर के इस सिद्धांत को कभी संघपरिवार ने निरस्त नहीं किया | आज तक कोई कभी ऐसी कोई घोषणा नहीं हुई कि गुरूजी गोलवरकर की ' Bunch of Thoughts ' तथा ' We are our Nationhood Defined ' तथा ' विचार - गुच्छ ' को repudiate किया गया है | इस प्रकार RSS की दृष्टि में ओवैसी की नागरिकता ( citizenship ) भारतीय संविधान के परिप्रेक्ष्य में भारतीय है किन्तु उसकी राष्ट्रीयता संघ की दृष्टि में भारतीय नहीं है , क्योंकि वे मोहम्मदी हिन्दू नहीं है | ऐसी स्थिति में जब संघपरिवार मात्र भारतीय नागरिक मानता है तथा उनकी राष्ट्रीयता भारतीय नहीं मानता है तो इसकी logical corrollary है कि संघपरिवार ओवैसी के भारतीय होने के नाते संविधान के अनुपालन की अपेक्षा कर सकता है किन्तु जब तक उनकी भारतीय राष्ट्रीयता को स्वीकारता नहीं है , तब तक राष्ट्रभक्ति की आशा कैसे करता है ? मै किसी को भी राष्ट्रद्रोही नहीं घोषित कर रहा हूँ - मेरा मात्र यह कहना है कि यदि ओवैसी की राष्ट्रीयता को संघपरिवार भारतीय नहीं मानता ( क्योंकि वे मोहम्मदी हिन्दू नहीं हैं ) तो उन्हें राष्ट्रभक्ति के स्वयंनिर्मित मानकों पर कसने का औचित्य क्या है ? पहले RSS उन्हें बिना मोहम्मदी हिन्दू बने राष्ट्रीय घोषित करे अथवा उन्हें मोहम्मदी हिन्दू बनने के लिए प्रेरित कर ले तब अपेक्षा करे | क्रमशः .......