एतददेश प्रसूतस्य -V
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि हिन्दूधर्म तथा इस्लाम अन्य
धर्मों से अलग हैं | ईसाइयत की कोई भाषा नहीं है - रुसी ईसाई Russian में Bible
पढता है , फ्रांसीसी ईसाई French में , जर्मनी का ईसाई German में आदि आदि |
English ईसाइयत की भाषा नहीं है | ईसा English का एक वाक्य नहीं बोल सकते थे |
किन्तु वैदिक मन्त्रों का जहाँ भी पाठ होगा , संस्कृत में होगा | नमाज अरबी में
होगा | जनेऊ संस्कृत में होगा , विवाह के मन्त्र संस्कृत में होंगे | मरने पर
संपत्ति का बटवारा कैसे हो - शादी , तलाक कैसे हो - इसका Christianity से कोई मतलब
नहीं | किन्तु हिंदुत्व तथा Islam का इससे मतलब है | हिंदुत्व में तो जहाँ चाहे ,
उस दिशा में मलमूत्र त्याग करने तथा शयनकक्ष बनाने तक की आजादी नहीं है | वहां भी
वास्तुशास्त्र बीच में आ खड़ा होता है |
इस कारणों से कोई ' मसीही हिन्दू ' तो हो सकता है , किन्तु
' मोहम्मदी हिन्दू ' की अवधारणा सर्वथा भ्रामक है | A reformed Islam is no Islam
. मै इस्लाम की निंदा नहीं कर रहा हूँ | किसी बड़े से बड़े आलिम से पूछ लीजिये कि
पाक कुरान में जो लिख दिया गया है , उसके विरुद्ध टिप्पणी करने का अधिकार किसी को
नहीं है | संशोधित इस्लाम इस्लाम नहीं है | शास्त्रों का वचन है |
' एकं सद विप्रा बहुधा वदन्ति ' |
किन्तु इस्लाम में एक ' सद ' को बहुत प्रकार से बोलने का
अधिकार किसी को नहीं है | कुरान पाक में जो बोल दिया गया , वह अंतिम सच है ,
मुसलमान के लिए | उस पर दिमाग लगाना तकब्बुर है तथा कुफ्र है | ' वेदोखिलं
धर्ममूलम ' अर्थात वेद धर्म का मूल है | किन्तु अवैदिक सम्प्रदायों से भी
शास्त्रार्थ की परंपरा रही है | दूध और पानी को मिलाया जा सकता है - किन्तु गेंहू
और चावल को नहीं | वे साफ़ अलग दिखाई देंगे |
' हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई |
आपस में सब भाई - भाई ||'
उपरोक्त पंक्तियों को स्वीकार करते ही कोई व्यक्ति जाने
अनजाने कुफ्र कर बैठता है | जब हजरत मुहम्मद साहब खतमुल नबी हैं तो उनके बाद चला
हुआ धर्म कैसे इस्लाम को एक धर्म के रूप में मान्य हो सकता है | ' सर्वधर्मसमभाव'
को मान्यता देना ' कुफ्र ' है | हजरत मुहम्मद के बाद प्रारम्भ हुए किसी धर्म को
इस्लाम मान्यता नहीं दे सकता | पिछले सभी उपदेशों को मंसूख करके आखिरी पैगाम के
रूप में इस्लाम में कुरान की मान्यता है | यह मै इस्लाम की आलोचना में नहीं कह रहा
| विश्व के किसी भी इस्लामी विद्वान् से पूछ ले कि क्या हजरत मोहम्मद के बाद प्रारम्भ
हुए किसी धर्म को इस्लाम मान्यता दे सकता है अथवा नहीं | जहाँ तक मेरी समझ है खतमुल
नबी की अवधारणा (concept) का मतलब ही यह है कि हजरत मोहम्मद साहब आखिरी पैगम्बर
हैं और उनके बाद कोई दूसरा धर्म प्रारम्भ नहीं हो सकता है |
इस स्थिति के समाधान के लिए गुरूजी गोलवरकर ने ' विजिगीषु
का वर्चस्व ' का सिद्धांत जोड़ा | अर्थात ' यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तततदेवतरोजन: |
स यत्प्रमाण कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ||
( जो भी आचरण श्रेष्ठ पुरुष करते हैं , वही दूसरे लोग करते
हैं | श्रेष्ठ पुरुष जो प्रमाण प्रस्तुत करते हैं , लोक उसका अनुसरण करता है | )
नवाज शरीफ से लेकर सद्दाम तक तमाम मुस्लिम राष्ट्राध्यक्ष
टाई लगाये घूम रहे हैं , जो ईसाइयत के क्रास का प्रतीक है | इसी तरह यदि भारत
सुपरपावर हो जाये , तो तमाम लोग टाई की तरह से ही चोटी लटका लेंगे - ऐसी गुरूजी
गोलवरकर की सोच है तथा इस सोच के अनुसार इसके लिए बल प्रयोग की या अत्याचार की या
धमकी की कोई आवश्यकता नहीं है | मुशर्रफ से लेकर नवाज शरीफ तक तथा सद्दाम तक जो
टाई लगाए घूमते थे उसके लिए किसी ईसाई राष्ट्राध्यक्ष ने या पोप ने धमकाया नहीं था
| मोदी ने जरा सा देश - विदेश में अपना प्रभाव फैलाया तथा इतने में ही अफ्रीका के
दर्जनों राष्ट्राध्यक्ष मोदी की डिजाइन के कपडे पहने हुए मीटिंग में भाग लिए | जरा
सा मोदी - मोदी की आवाज हुई और कैमरन के मुंह से निकल गया कि ( अबकी बार कैमरन
सरकार )|
किन्तु कालचक्र परिवर्तित हुआ | अब तो ये पंक्तियाँ याद आती
हैं -
बड़े गौर से सुन रहा था ज़माना |
तुम्ही सो गए दास्ताँ कहते कहते ||
गोलवरकर जी तथा बलराज मधोक की बातों का ज़माना लद गया |
सावरकर को भुला देना ही श्रेयस्कर दिखने लगा | ट्वीट आजकल पढ़िए | कांग्रेसी याद
दिलाते हैं कि किस प्रकार स्वामी श्रद्धानंद तथा सावरकर के नाम पर उन्होंने डाक -
टिकट जारी किये थे | कांग्रेसी आपको यह भी याद दिलाते मिल जायेंगे कि परम पूजनीय
गुरूजी गोलवरकर के निधन पर इंदिरा जी ने कितना दुःख व्यक्त किया था तथा उन्हें
कितना महान व्यक्तित्व बताया था , पर संघपरिवार आज उस बीते अध्याय को सुनने को
तैयार नहीं है | कांग्रेस भाजपा तथा संघ पर दशकों से देश के भगवाकरण के प्रयास का
आरोप लगा रही है | संघपरिवार इसे धो डालने के लिए उतारू होकर अपना तिरंगाकरण करने
पर आमादा है | अब साक्षी की क्लास मोदी साहब के निर्देश पर अमित शाह लेते हैं | संघ
तथा भाजपा में अब हिंदुत्व की उतनी गर्मी भी नहीं रह गई , जितनी नेहरु जैसे
व्यक्ति तक में थी , जो अपने को by accident of birth Hindu मानते थे | जितना
सम्मान जवाहर लाल नेहरु ने गोंडसे को दिया , उतना सम्मान भी संघपरिवार तथा भाजपा
अब गोंडसे को देने के लिए तैयार नहीं है | आखिर साक्षी ने क्या कह दिया था जिसके
लिए उनकी क्लास लेने की जरूरत पड़ी थी ? आखिर साक्षी ने क्या कहा था ? यही तो कहा
था कि गोंडसे भी देशभक्त थे | जवाहर लाल नेहरु ने तो इससे भी बड़ी बात कही थी और वह
भी उस गरमाए हुए वातावरण में जब गांधी जी की हत्या हुई थी | ' It is unfortunate
and rather tragic that he was killed by one of our misguided compatriots .
नेहरु ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण तथा दुखद माना कि गांधी की हत्या एक ऐसे व्यक्ति के
हाथों हुई जो कि compatriot था अर्थात नेहरु के ही टक्कर का देशभक्त था - अंतर
मात्र इतना था कि वह misguided था | नेहरु ने गोंडसे को CIA या KGB या विदेशी ताकत
के एजेंट नहीं कहा - देशद्रोही नहीं कहा | गांधी की हत्या के उत्तेजनापूर्ण क्षणों
में भी जो सम्मान गोंडसे को नेहरु ने दिया , उससे कम बातें साक्षी के मुख से
निकलने पर उनकी class ली गई | साध्वी प्राची के ' रामजादे ' वाली बात को छोडिये ,
4 बच्चे पैदा करने के उपदेश पर उन्हें कोसा गया | संघपरिवार defensive हो गया तथा
सफाई दी कि औरतें बच्चा पैदा करने की factory नहीं हैं | ' एकोहम बहुस्याम ' का
धर्मसम्मत मूलमंत्र भुला दिया गया | War on the bed के खिलाफ पान्च्जन्य ,Organiser
तथा राष्ट्रधर्म दशकों से आग उगल रहे थे कि बिस्तर पर युद्ध लड़ा जा रहा है तथा
हिन्दू अल्पसंख्यक हो जायेगा | अब 4 बच्चे में औरत संघपरिवार को factory लगने लगी
| जब साइकिल का एक चक्का चलता है तो दूसरे को अपने आप चलना पड़ता है | कश्मीरी
पंडितों से बढ़कर secular कौन होगा ? उस नेहरु का जयकारा करते थे जो कश्मीर को UNO
में ले गए , शक्ति के रहते हुए बिना घुसपैठियों से खाली कराये ceasefire किये ,
plebiscite जैसे शब्द का आविष्कार किया | कश्मीरी पंडित मुशायरे करते थे ,
गंगाजमुनी संस्कृति में ढले हुए थे | चूड़ीदार पायजामा तथा शेरवानी पहनते थे | इतने
secularism में डूबे थे कि जब मार्कंडेय काटजू जी का बयान beef पर आया तो एक का भी
tweet या facebook पर comment या किसी का सम्पादक के नाम पत्र मेरे पढने में नहीं
आया , जिसने इसकी आलोचना की | फिर भी जब बच्चा पैदा करने की factory की speed धीमी
पड़ी , तो उन्हें दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में आना पड़ा | साध्वी ने किसी अन्य
धर्मावलम्बी महिला की जबरन नसबंदी की बात नहीं की थी - केवल जो उनका भाषण सुनने आए
थे - उनका आह्वान इस factory को speed up करके production बढाने के लिए था , पर
संघपरिवार इतना भी नहीं पचा पाया |
मै संघपरिवार / भाजपा का विश्लेषण कर रहा हूँ - आलोचना नहीं
| संघ तथा भाजपा का कांग्रेसीकरण हो गया | कांग्रेस एक गंगाजमुनी पार्टी थी | उसमे
सरदार पटेल थे तो मौलाना अबुल कलाम आजाद भी थे|
मौलाना आजाद ' सूरज डूब गया ' न लिखकर लिखते थे ' आफताब
तुलू हो गया ' | नेहरु लिखते थे कि ' हम हजार साल की गुलामी के कीचड को एक दिन में
साफ़ नहीं कर सकते ' तो मौलाना आजाद की सोच थी कि वे केवल सौ - डेढ़ सौ साल गुलाम
रहे | राजेंद्र प्रसाद का भी गुजारा वहां हो जाता था तो मुसलमानों में मुहम्मद
करीम छागला जैसे लोगों को preference दिया जाता था | लाल बहादुर शास्त्री जैसे
भारतीय संस्कृति के प्रतीक भी वहां थे | अगर शाहबानो केस में मुस्लिम कट्टरपंथियों
के appeasement के लिए राजीव गांधी मत्था टेकते थे , तो अयोध्या से चुनाव - अभियान
भी शुरू करते थे तथा अदालत में गुपचुप शान्तिव्यवस्था के बारे में रिपोर्ट भी चली
जाती थी और माननीय न्यायालय से ताला खोलने का निर्णय भी हो जाता था | अब कांग्रेस
में भी संतुलन का यह माहौल नहीं रहा तथा संतुलन की जमीन को परती भूमि की तरह कांग्रेस
ने छोड़ दिया है जिस पर संघ परिवार भगवा की जगह तिरंगा की बात करके लगातार कब्ज़ा
जमाता चला जा रहा है तथा कांग्रेस भूमिहीन हो रही है | इसके एवज में कांग्रेस जमीन
तलाशने के लिए तीसरे मोर्चे के दलों तथा वाम मोर्चे के दलों से मुकाबला कर रही है
तथा उनसे अधिक बढ़कर तुष्टीकरण की भाषा बोलने के होड़ में लग गई है | किस प्रकार
राहुल की भाषा तुष्टीकरण के मामले में मुलायम सिंह यादव से भी बढ़कर थी इसका विश्लेषण
अगले लेख में किया जायेगा तथा किस प्रकार तीसरे मोर्चे के और वाम मोर्चे के दल
तुष्टीकरण के मामले में कांग्रेस का मुकाबला करने के लिए सीधे अफजल गुरु को सिर पर
लेकर नाचने को तैयार हैं इसका विश्लेषण भी आगे होगा | क्रमशः .....
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