बिहार में कब जंगलराज नही था
आदिकाल से लेकर आजतक का जंगलपुराण
कैसे डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने आरण्यक युग ( मनुस्मृति ) की वापसी का प्रयास किया
आदिकाल से लेकर आजतक का जंगलपुराण
कैसे डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने आरण्यक युग ( मनुस्मृति ) की वापसी का प्रयास किया
बार - बार लोग कहते है कि बिहार में जंगलराज पार्ट II आ गया | बिहार में जंगलराज
कब नही था--- कोई मुझे बस इतना बता दे | तुलसीदास जी का रामचरितमानस स्वघोषित रूप
से "नानापुराणनिगमागमसम्मत" है अर्थात समस्त शास्त्रों का निचोड़
रामचरितमानस है | उसमे उन्होंने स्पष्ट घोषणा किया है कि -----
"काशी मग सुरसरि क्रमनाशा"
अर्थात काशी और मगध में वही अंतर है जो अन्तर गंगा तथा कर्मनाशा नदियों में है
| इसी को और विकसित करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है ----
"मगध गयादिक तीरथ जैसे"
( अर्थात मगध में गया आदि तीर्थ एक विसंगति है |)
( अर्थात मगध में गया आदि तीर्थ एक विसंगति है |)
विश्वामित्र बिहार में नाक दबाकर संध्यापूजन , प्राणायाम जैसे नेक काम भी नही
करने पाते थे | वे भी चिंतामग्न हो गये - आमिर खान की तरह - कि असहिष्णुता बढ़ रही
है, कैसे गुजारा होगा ? तुलसीदास जी ने मनोदशा का चित्रण किया है --
'गाधि सुवन मन चिंता व्यापी
बिनु हरि मरहिं न निसिचर पापी'
बिनु हरि मरहिं न निसिचर पापी'
पूजापाठ करने के लिए भी राम और लक्ष्मण जैसे धनुर्धरो की आवश्यकता पड़ती है
जिसकी व्याख्या रामधारी सिंह दिनकर ने की है --
ऋषियों को मिलती सिद्धि
तभी पहरे पर |
जब स्वयं धनुर्धर
राम खड़े होते है ||
तभी पहरे पर |
जब स्वयं धनुर्धर
राम खड़े होते है ||
यह स्थिति बिहार की रामराज्य के काल में रही है | रामचरितमानस की पंक्तियाँ
शंतिव्यस्था के संबंध में उल्लेखनीय है ----
तोरेउ धनुष ब्याहु अवगाहा |
बिनु तोरे को कुंअरि बिआहा ||
( धनुष तोड़ने पर भी व्यवधान पैदा होगा ब्याह में | फिर बिना धनुष तोड़े कौन कुंअरि को ब्याह लेगा |)
बिनु तोरे को कुंअरि बिआहा ||
( धनुष तोड़ने पर भी व्यवधान पैदा होगा ब्याह में | फिर बिना धनुष तोड़े कौन कुंअरि को ब्याह लेगा |)
अहिल्या का उद्धार भगवान राम ने बिहार में किया था जो यह प्रदर्शित करता है कि
छलपूर्वक बलात्कार की दशा में से उस युग में भी बिहार में नारियां पाषाणी बना दी
जाती थी | अर्थात राजा जनक तक को चुनौती देने की तैयारी हो रही थी कि लोग उनको
स्वेच्छा से कन्यादान नही करेंगे तथा व्यवधान उत्पन्न करेंगे | आज कम से कम
मंत्रियो मुख्यमंत्रियों अधिकारियो की बेटियो का अपरहण उनकी मौजूदगी में करने की
कोई नही सोंच पा रहा है |
कम्युनिस्ट जब इतिहास का अपने ढंग
से पुनर्लेखन करेंगे तो बतायेंगे कि सुबाहु और ताड़का आदिवासी थे तथा आर्य
आक्रमणकारियो से अपनी स्वतंत्रता की रक्षा कर रहे थे | कम्युनिस्टो को एक झूठ को
सच बनाने के लिए हजार झूठ बोलने पड़ते है तथा वे उपहास के पात्र बन जाते हैं | सारा
देश जानता है कि सुबाहु तथा ताड़का रावण के परिवार के थे | मारीच जो बिहार में राम
के बाण से घायल हुआ था , रावण का रिश्तेदार था तथा रावण घोषित रूप से ब्राह्मण था
तथा शास्त्रों का ज्ञाता था | आज भी 'रावणसंहिता' ज्योतिष का एक मानक ग्रन्थ है
तथा रावणकृत 'शिवताण्डवस्तोत्रम्' भक्ति साहित्य की अमूल्य निधि है | देवता तथा
दैत्य सौतेले भाई थे तथा उनकी माताएं दिति और अदिति सगी बहने थी तथा एक ही पिता और
उनकी दो पत्नियों जो कि अलग नस्ल की न होकर सगी बहने थी उनसे उत्पन्न संताने अलग
नस्ल की कैसे हो गयी -- देवासुरसंग्राम पारस्परिक पारिवारिक संघर्ष है - दो नस्लों
का युद्ध नही | कम्युनिस्टो से लाख गुना ज्ञानी तो डॉ. अम्बेडकर साहब थे तथा मेरे
पढने में कभी नही आया कि वे अपने को या अन्य किसी दलित कभी रावण या महिषासुर के
वंश का घोषित किये हो | दैत्य भी ब्राह्मण थे - इसका विधिवत् ज्ञान अम्बेडकर साहब
को था तथा हम अम्बेडकर साहब की व्याख्या से सहमत या असहमत हो सकते है किन्तु
जानबुझकर उन्होंने कभी कम्युनिस्टो की तरह इतिहास बोध से बलात्कार नही किया | उनके
द्रष्टि बोध में जो हम लोगो से कही - कही अंतर दिखता है , वह मात्र इसलिए कि उनका
शास्त्रों का ज्ञान संस्कृत माध्यम से अर्जित नही था , बल्कि अंग्रेजी अनुवाद पर
आधारित था | मैकाले के मानसपुत्रो के गलत अंग्रेजी अनुवादों से सनातनियो से कही -
कही मतभेद परिलक्षित होते है |
द्वापर युग में जरासंध के राज्य
में अत्याचार की पराकाष्ठा थी - शुद्ध जंगलराज | जब भीम ने जरासंध का वध किया , तब
प्रजा ने उनका अभिनन्दन किया | जरासंध की मैत्रीसंधि कालयवन ( विदेशी शासक ) से थी
तथा भविष्य के आम्भि तथा जयचंद की भांति उसने मथुरा पर विदेशी आक्रमण कराया तथा
भागते शत्रु कृष्ण का पिछा किया तथा युद्ध के समस्त नियमो को तोडकर कृष्ण को
रणछोड़दास बना दिया तथा उनके समर्थको सहित शरणार्थी की तरह पलायन को विवश कर दिया |
कलियुग में महापद्मनन्द बिहार का ही राजा था , जिसके अत्याचारों से त्रस्त होकर
सवर्णों ने पहाड़ की शरण ली तथा आज भी जो पहाड़ो में सवर्णों का बहुमत है , वह
महापद्मनन्द के जंगलराज की देन है | चाणक्य की चोटी पकडकर मगध में ही घसीटा गया था
| भूरा बाल ( भूमिहार , राजपूत , ब्राह्मण , लाला ) के सफाए का नारा चाहे लालू ने
दिया हो या न दिया हो , पर यह नारा वैसे ही लालू से जुड़ा हुआ है जनदृष्टि में जैसे
--
' तिलक तराजू कलम तलवार
इनको मारो जूते चार '
इनको मारो जूते चार '
का नारा बसपा के साथ चाहे यह झूठ ही क्यों न हो | इस जंगलराज को पलटने के लिए
चाणक्य ने भी जंगलराज की शैली में ही लड़ाई लड़ी | 'कुटिल' से 'कौटिल्य' बना है तथा
अपनी निंदा को उसने अपनी प्रशंसा मान लिया | RSS की तरह अपनी निंदा से घबराया या
बिगड़ा नही | विषकन्या प्रयोग तक करके किस तरह नन्दवंश से छुटकारा दिलाया - इतिहास
साक्षी है | पुष्यामित्र शुंग ने भारतीय इतिहास की एकमात्र सैनिक क्रांति मगध में
ही की तथा बौद्धधर्म का उन्मूलन जंगलराज के तौर तरीको से ही हुआ | आधुनिक युग की
देखिये तो ---
"
वैटिकन पोप का
सहरसा गोप का "
सहरसा गोप का "
नारा बिहार में ही लगा था तथा नेहरु युग में पंजाब को छोड़ दिया जाय तो
मुसलमानों का सबसे बड़ा नरसंहार बिहार में ही हुआ था | आज भी जो बांग्लादेश बिहारी
मुसलमानो की समस्या से त्रस्त है , वह बिहार के लोगो की ही देन है | यह संघपरिवार
की देन नही है | पंजाब में तो संघ का अच्छा ख़ासा आस्तित्व भी था किन्तु बिहार में
संघ लगभग आस्तित्वहीन था | बिहार में जवाहर लाल नेहरु के प्रचंड तेजोयुग में भी
बिहारी मुस्लिमो की समस्या बिना जंगलराज के नही हुई होगी |
पुनः जब भागलपुर कांड हुआ तथा
अन्य बड़े बड़े दंगे हुए - हजारो लाखो की संख्या में लोग विस्थापित हुए , उस टक्कर
के दंगे दूसरे भागो में नही हुए | विभिन जातीय सेनाओ का गठन तथा जातिगत नरसंहार
जितने बड़े पैमाने पर बिहार में विभिन्न सरकारों में हुआ , क्या वह जंगलराज नही था
तथा क्या उसकी भयावहता आज से महती नही थी | बाबा साहब अम्बेडकर के नेतृत्व में जिस
समय हिन्दू मान्यताओ तथा परम्पराओ को झटका दिया जा रहा था , उस समय क्या डॉ.
राजेंद्र प्रसाद ने तगड़ा ब्रेक लगाकर यह परिस्थिति नही पैदा कर दी थी कि डॉ.
अम्बेडकर को त्याग पत्र देना पड़े | Hindu
Code Bill कानून न बन सके , भारत में मनुस्मृति ,
याज्ञवल्क्य स्मृति तथा मिताक्षरा के कानून चलते रहे -- इस मार्ग पर डॉ. राजेन्द्र
प्रसाद ने देश को मोड़ा - यह वह रास्ता नही था जिसे उस समय जवाहर लाल नेहरु तथा अब
मोदी विकास का मार्ग कहते है | यह " आरण्यक युग " ( Jungle age ) की
वापसी का मार्ग प्रशस्त करता है | जैसे मुसलमानो के बारे में Muslim Personal Law
लागू है उसी पर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद हिन्दुओ के बारे में Hindu Personal Law लागू
रहने देना चाहते थे | हमे डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पर गर्व है कि मनुस्मृति ,
याज्ञवल्क्य स्मृति , दायभाग तथा मिताक्षरा के कानूनों की रक्षा के लिए उन्होंने
मजबूती से पं. जवाहर लाल नेहरु तथा अम्बेडकर से पंजा मिलाया तथा इन दोनों
महत्वपूर्ण हस्तियों के Joint Psychological Pressure के आगे विचलित नही हुए |
विवेकानंद ने इस बिंदु पर लिखा है कि " If Manu visits India, he will not be bewildered. He will find some changes
hither and thither, but fundamentals remain the same. विकास का रास्ता अंग्रेजियत की ओर ले जाता है |
डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने स्मृतियों के युग की ओर भारत के कदमो को मोड़ने की कोशिश की
| ऋषियों के आरण्यक युग ( Jungle age ) से तादात्म्य बिठाने की कोशिश | इस jungle
age की वापसी के मार्ग को प्रशस्त करने के लिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद के पुण्य
प्रयास का हम अभिनन्दन करते है तथा उन्हें सादर प्रणाम करते है | आखिर यहाँ का
न्याय है कि Muslim Personal Law को तो touch करने का साहस कोई न करे क्योकि अफजल
मिल जायेगा तथा Hindu Personal Law को - स्मृतियों की व्यवस्था को ध्वस्त कर दो
क्योकि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के हटने के बाद अफजल तो दूर कोई डॉ. राजेंद्र प्रसाद
की तरह मुख्यवक्ता भी न मिले | यदि common civil code लागू किया गया होता तो हम
नेहरु से असहमत होते हुए भी इसे नेहरु की मर्दानगी तथा आधुनिक liberal विचारधारा
के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक मानते किन्तु Muslim Personal Law को जारी रखते
हुए Hindu Personal Law से छेड़खानी करना तो appeasement की पराकाष्ठा है तथा वही
कहावत चरितार्थ होती है कि "गरीब की जोरू सबकी भाभी |" आरण्यक युग (
jungle age ) की वापसी के अभियान के प्रबल पुरोधा डॉ. राजेंद्र प्रसाद को मनुवादी
पार्टी की ओर से तथा मेरी ओर से शत - शत नमन |
बिहार जीवन्त लोगो की भूमि रही है तथा डॉ. लोहिया का कहना है कि ' जिन्दा कौमे पांच साल तक इंतजार नही करती |' प्रजातंत्र का तकाजा है कि पांच साल तक इंतजार करो - इसका कोई विकल्प नही है | श्री जयप्रकाश नारायण जी ने जिस सम्पूर्ण क्रांति ( Total Revolution ) का आह्वान किया था , क्या वह कानून के राज का आह्वान था या जंगलराज का ? मोदी जी के बारे में क्या सच है , क्या नही - इसे माननीय न्यायलय जाने, मोदी जी जाने किन्तु जनमानस की धारणा है कि वे गोधरा के हीरो है तथा जब तक यह धारणा थी तब तक दिल्ली में 7 में से 7 सीटें लोकसभा में मिली , यू.पी. में 80 सीटो में से 73 सीटें मिली | जब यह धारणा विखंडित होकर के विकासपुरुष की अवधारणा सामने आई तथा सामाजिक क्रांति तथा अनन्तकाल तक चलने वाले आरक्षण के वाहक बन गये , तबसे दिल्ली तथा बिहार की विधानसभा में में क्या हुआ सबने देखा तथा यू.पी. में जो होने वाला है - उसमे पालने में पूत के लक्षण आरंभिक survey में दिखने लगे है | अमित शाह ने साक्षी तथा साध्वी की class लेकर तथा मोदी ने अपने हाथो पद्दमपुरुस्कार के लिए चयनित चहेते अनुपम खेर के मुंह से योगी , साध्वी प्राची तथा स्वामी की गिरफ़्तारी की मांग उठाकर बड़ी मुश्किल से इस छवि को धोया है | इसी प्रकार जार्ज फर्नांडिस की डायनामाइट कांड में कोई भूमिका थी या नही इसे दिवंगित आत्मा जाने किन्तु काफी जनता उन्हें हिंसक क्रांति का समर्थन मानती है , चाहे यह धारणा मोदी के गोधरा छवि की तरह मिथक ही क्यों न हो | धरना प्रजातान्त्रिक है , किन्तु घेराव नही | मै उस जमाने में इलाहाबाद विश्वविद्यालय का छात्रनेता था | मध्यम श्रेणी का चुनाव लड़कर जीता था - मैंने नजदीक से देखा है कि जो हो रहा था , वह कानून के राज की परिभाषा में नही आता , उद्देश्य चाहे कितने ही प्रशंसनीय क्यों न हो ? उसी आन्दोलन की उपज लालू और नितीश है - कानून की धाराओं में बंधकर चलने की इनसे अपेक्षा करना व्यर्थ है | जिसे अपनी समझ में जनहित मानते है उसके लिए अपनी इच्छाओ को थोप देना इनकी फितरत है तथा इनके जंगलराज पर राष्ट्रकवि दिनकर ने टिप्पणी की है -----
बिहार जीवन्त लोगो की भूमि रही है तथा डॉ. लोहिया का कहना है कि ' जिन्दा कौमे पांच साल तक इंतजार नही करती |' प्रजातंत्र का तकाजा है कि पांच साल तक इंतजार करो - इसका कोई विकल्प नही है | श्री जयप्रकाश नारायण जी ने जिस सम्पूर्ण क्रांति ( Total Revolution ) का आह्वान किया था , क्या वह कानून के राज का आह्वान था या जंगलराज का ? मोदी जी के बारे में क्या सच है , क्या नही - इसे माननीय न्यायलय जाने, मोदी जी जाने किन्तु जनमानस की धारणा है कि वे गोधरा के हीरो है तथा जब तक यह धारणा थी तब तक दिल्ली में 7 में से 7 सीटें लोकसभा में मिली , यू.पी. में 80 सीटो में से 73 सीटें मिली | जब यह धारणा विखंडित होकर के विकासपुरुष की अवधारणा सामने आई तथा सामाजिक क्रांति तथा अनन्तकाल तक चलने वाले आरक्षण के वाहक बन गये , तबसे दिल्ली तथा बिहार की विधानसभा में में क्या हुआ सबने देखा तथा यू.पी. में जो होने वाला है - उसमे पालने में पूत के लक्षण आरंभिक survey में दिखने लगे है | अमित शाह ने साक्षी तथा साध्वी की class लेकर तथा मोदी ने अपने हाथो पद्दमपुरुस्कार के लिए चयनित चहेते अनुपम खेर के मुंह से योगी , साध्वी प्राची तथा स्वामी की गिरफ़्तारी की मांग उठाकर बड़ी मुश्किल से इस छवि को धोया है | इसी प्रकार जार्ज फर्नांडिस की डायनामाइट कांड में कोई भूमिका थी या नही इसे दिवंगित आत्मा जाने किन्तु काफी जनता उन्हें हिंसक क्रांति का समर्थन मानती है , चाहे यह धारणा मोदी के गोधरा छवि की तरह मिथक ही क्यों न हो | धरना प्रजातान्त्रिक है , किन्तु घेराव नही | मै उस जमाने में इलाहाबाद विश्वविद्यालय का छात्रनेता था | मध्यम श्रेणी का चुनाव लड़कर जीता था - मैंने नजदीक से देखा है कि जो हो रहा था , वह कानून के राज की परिभाषा में नही आता , उद्देश्य चाहे कितने ही प्रशंसनीय क्यों न हो ? उसी आन्दोलन की उपज लालू और नितीश है - कानून की धाराओं में बंधकर चलने की इनसे अपेक्षा करना व्यर्थ है | जिसे अपनी समझ में जनहित मानते है उसके लिए अपनी इच्छाओ को थोप देना इनकी फितरत है तथा इनके जंगलराज पर राष्ट्रकवि दिनकर ने टिप्पणी की है -----
पातकी न होता है
प्रबुद्ध दलितों का खड्ग
पातकी बताना उसे
दर्शन की भ्रान्ति है
प्रबुद्ध दलितों का खड्ग
पातकी बताना उसे
दर्शन की भ्रान्ति है
आगे जो दिनकर ने आह्वान किया है वह कानून के राज्य का आह्वान नही है , बल्कि
जंगलराज का ही आह्वान है ---
युद्ध रोकना है तो उखाड़ विष दंत फेको
वृक् व्याघ्र भीति से मही को मुक्त कर दो
वृक् व्याघ्र भीति से मही को मुक्त कर दो
अथवा अजा
के छागलो को भी बनाओ व्याघ्र
दांतों में कराल काल कूट विष भर दो
वद की विशालता के नीचे जो अनेक वृक्ष
ठिठुर रहे है उन्हें फैलने का वर दो
रस सोखता है जो मही का भीमकाय वृक्ष
उसकी शिराएँ तोड़ो , डालियाँ कतर दो |
दांतों में कराल काल कूट विष भर दो
वद की विशालता के नीचे जो अनेक वृक्ष
ठिठुर रहे है उन्हें फैलने का वर दो
रस सोखता है जो मही का भीमकाय वृक्ष
उसकी शिराएँ तोड़ो , डालियाँ कतर दो |
कब जनसंघर्ष जंगलराज में बदलता है ,
इसकी borderline बहुत ही thin है | यह मै बिहार की बुराई में नही कह रहा | मगध वीरो के तलवारों की गुंजार भारतीय
इतिहास का गौरव रही है | आज भी सम्राट अशोक का धर्मचक्र हमारा राष्ट्रीय चिह्न है
| चाणक्य हमारे राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक है | पतंजलि तथा पुष्यमित्र के प्रति
श्रद्धा सुमन के रूप में आज भी ' पतंजलि शक्ति पीठ ' का निर्माण बाबा रामदेव ने
किया है | आज भी पुरखो की आत्मा को शांति गया के श्राद्ध से ही होती है | बिहार बौद्धों
की क्रीडास्थली रहा है | बिहार ने हमे जगद्गुरु बनाया है तथा आज भी बौद्ध धर्म के
अनुयायी पूरे विश्व में है | ईसाइयत भी बौद्ध धर्म से प्रभावित है | विद्यापति के
गान विश्वप्रसिद्ध है | मगधवीरो ने ही यवन हमलावर सेल्यूकस को पीछे ढकेलकर उसकी
बेटी को चन्द्रगुप्त की महारानी बनाकर आधुनिक युग के लवजेहाद की शुरुआत की थी |
तलवार से तथा प्रेम से विश्वविजय मगध ने की है | बिहार में शास्तार्थ के दौरान आदि
शंकराचार्य से कामशास्त्र पर प्रश्न पूछकर मंडन मिश्र की पत्नी ने उन्हें हतप्रभ
कर दिया था तथा परकायाप्रवेश के बारे में सोचना पड़ा था |
मागध वीर ओजस्वी रहे है | जो
ओजस्वी होता है , वह सन्मार्ग पर ला दिया जाय तो देश का गौरव बन जाता है तथा यदि वह
गलत रास्ता पकड़ लिया तो देश का कलंक बन जाता है | मै कन्हैया को उतना दोष नही देता
जितना दोष JNU को , उसके प्रोफेसरों को , JNU की परम्परा को | कन्हैया तो बिहार का
एक होनहार बेटा है | यदि यह श्रद्धानंद के गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में
प्रवेश लिया होता, यदि यह DAV college का विद्यार्थी होता तो आज पूरा देश उस पर
गर्व करता | वह भारत माता के लिए गला कटाता | मै कन्हैया से कही अधिक दोषी उन लोगो
को मानता हूँ जिन्होंने JNU के घटनाक्रम के बाद उसके पक्ष में बयान दिए | वह तो
उनके हाथ का एक मोहरा बन गया है | JNU में देश की प्रतिभा जाती है - मुझे विश्वास
है कि यदि JNU के समस्त परिवेश को प्रदूषित करने वाले प्राध्यापको , कर्मचारियों
तथा छात्रो को एक साथ निष्कासित कर दिया जाय तो भविष्य में जो कन्हैया आएगा , वह
भारत का गौरव होगा , वह भारत माता की ओर आँख उठाने वाले की आँखे निकाल लेगा | लोगो
को बुरा लगा सुनकर---
कितने अफजल मारोगे
हर घर से अफजल निकलेगा
हर घर से अफजल निकलेगा
किन्तु इसके दुसरे पहलू को देखिये | जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय का नामकरण
उस जवाहर लाल नेहरु के नाम पर किया गया जिन्होंने ----
(1) खान अब्दुल गफ्फार खां के भारत में शामिल होने की मांग को ठुकरा दिया तथा उस बुजुर्ग सीमांत गाँधी के मुंह से हाय निकली कि 'बापू ! आपने मुझे भेड़ियों के डाल दिया |' गाँधी - नेहरु का उत्तर था - 'आप लोग बहादुर है , उनसे निपट लेंगे |' पख्तूनिस्तान भारत का एक प्रान्त बन सकता था, गाँधी - नेहरु ने इसे होने नही दिया | गाँधी - नेहरु ने जब कहा कि ' बीच में इतना बड़ा पाकिस्तान है हम उसकी रक्षा कैसे करेंगे ?' तो सावरकर का उत्तर था ' जैसे पश्चिम बर्लिन की रक्षा अमेरिका तथा नैटो करते है , जैसे पूर्वी बंगाल की रक्षा पकिस्तान करेगा |' किन्तु ऐसा न हो सका |
(1) खान अब्दुल गफ्फार खां के भारत में शामिल होने की मांग को ठुकरा दिया तथा उस बुजुर्ग सीमांत गाँधी के मुंह से हाय निकली कि 'बापू ! आपने मुझे भेड़ियों के डाल दिया |' गाँधी - नेहरु का उत्तर था - 'आप लोग बहादुर है , उनसे निपट लेंगे |' पख्तूनिस्तान भारत का एक प्रान्त बन सकता था, गाँधी - नेहरु ने इसे होने नही दिया | गाँधी - नेहरु ने जब कहा कि ' बीच में इतना बड़ा पाकिस्तान है हम उसकी रक्षा कैसे करेंगे ?' तो सावरकर का उत्तर था ' जैसे पश्चिम बर्लिन की रक्षा अमेरिका तथा नैटो करते है , जैसे पूर्वी बंगाल की रक्षा पकिस्तान करेगा |' किन्तु ऐसा न हो सका |
(2) गाँधी जी ने कहा था कि ' भारत का विभाजन मेरी लाश पर होगा ' किन्तु गाँधी
नेहरु ने भारत के विभाजन को स्वीकार किया तथा किस प्रकार देश की हत्या हुई , इसके
लिए गुरुदत्त के ऐतिहासिक उपन्यास को पढने की संस्तुति की जाती है | काश अगर हम
सुभाष और सावरकर के मार्ग पर चले होते तथा हमारी आजादी समझौते से न आकर गोलियों की
सनसनाहट से आई होती तो आज हमे अपने पूर्वजो का अस्थि प्रवाह सिन्धु में करने के
लिए पासपोर्ट की आवश्यकता न पड़ती |
(3) कश्मीर में कोई विवाद ही नही था | वैधानिक रूप से हरी सिंह राजा थे तथा
उन्होंने कश्मीर में भारत का संविलीयन किया था | शेख अब्दुल्ला का अविष्कार करना
सर्वथा भारत के हितो के विरूद्ध था | UNO में मामले को ले जाना तथा plebiscite को स्वीकार करना आज के कन्हैया की performance का rehearsal क्या नही था ?
विभाजन की नियमावली स्पष्ट थी - शेख अब्दुला का अविष्कार ही कन्हैया जैसो को जन्म
देता है | जिस विश्वविद्यालय का नामकरण जवाहर लाल नेहरु के नाम पर रहेगा , जब तक
लोगो को brainwash नही किया जायेगा कि शेख अब्दुल्ला का अविष्कार तथा plebiscite की चर्चा भारत माता की मर्यादा के विरूद्ध
थी , तब तक अफजल को पैदा होने से कौन रोकेगा ? शेख अब्दुल्ला को इतने लम्बे समय तक
जेल में बंद रखना तथा फिर उनका महिमामण्डन यही अफजल को जन्म देता है | शेख
अब्दुल्ला को एक विशेष भूमिका देना , धारा 370 - यही अफजल के प्रेरणास्रोत है |
अगर केवल JNU का नाम बदलकर सुभाष या सावरकर के नाम पर कर दिया जाय तो भारत माँ के
टुकड़े की चर्चा करने वाले की बोटी - बोटी भविष्य का बिहार का कन्हैया काट डालेगा |
जब तक JNU के परिवेश में छद्मधर्म निरपेक्षतावादी तत्वों का वर्चस्व रहेगा , जब तक
अफजल का गुणगान करने वाले लोग इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहेंगे , तब
तक हजारो अफजल निकलेंगे | कन्हैया बिहार का बेटा है, तो अफजल, मकबूल बट तथा
हुर्रियत कांफ्रेस के नेता भी भारत माता के बेटे है | छद्मधर्म निरपेक्षतावादी
उन्हें देशद्रोही बनाये है , उग्रवादी बनाये है | उनको अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
के नाम पर बरगलाया गया है | देशद्रोह की गंगोत्री को पहचानिए - उसका उद्गम स्थल
क्या है ? जब गाँधी जी ने ' खिलाफत गाय है ' का नारा देकर खिलाफत के पक्ष में भारत
में माहौल बनाया था , तो जिन्ना ने कहा था कि " आप भारत के मुसलमानों में Extra territorial loyalty पैदा कर रहे है तथा जब ये भविष्य में बिगड़ी -
बहकी बाते करेंगे तो आप इन्हें तोपों का fooder ( चारा ) बना देंगे | खलीफा का
क्या हो , इससे भारतीय मुस्लिम का क्या मतलब ?" किन्तु गाँधी नही माने , तो
नही माने |
इस प्रकार किसी प्रदेश को , व्यक्ति को , पार्टी को jungle raj के नाम से brand कर देना उचित नही है | बिहार के लोग तेजस्वी है - लोहिया की भाषा में ' जिन्दा कौम ' है | यदि उन्हें समुचित मार्ग निर्देशन मिले तो देश को चाणक्य , चन्द्रगुप्त , अशोक दे सकते है | यदि वे दिग्भ्रमित हुए तो नंदवंश तथा बृहद्रथ बनकर देश के पतन के कारण बन सकते है | परस्पर आलोचना - प्रत्यालोचना के स्थान पर देश के चतुर्मुखी विकास की बात सोचनी होगी | प्रजातंत्र में जनादेश सर्वोपरि होता है | जनादेश को गाली देने की जगह अपनी कमियों की समीक्षा वांछनीय है |
इस प्रकार किसी प्रदेश को , व्यक्ति को , पार्टी को jungle raj के नाम से brand कर देना उचित नही है | बिहार के लोग तेजस्वी है - लोहिया की भाषा में ' जिन्दा कौम ' है | यदि उन्हें समुचित मार्ग निर्देशन मिले तो देश को चाणक्य , चन्द्रगुप्त , अशोक दे सकते है | यदि वे दिग्भ्रमित हुए तो नंदवंश तथा बृहद्रथ बनकर देश के पतन के कारण बन सकते है | परस्पर आलोचना - प्रत्यालोचना के स्थान पर देश के चतुर्मुखी विकास की बात सोचनी होगी | प्रजातंत्र में जनादेश सर्वोपरि होता है | जनादेश को गाली देने की जगह अपनी कमियों की समीक्षा वांछनीय है |
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