1 क्या स्वघोषित दुर्गाभक्त "स्मृति
ईरानी" भाजपा से सांसद श्री उदित राज के निलंबन / माँ दुर्गा के अपमान समारोह
में भाग लेने के प्रायश्चित स्वरुप बिना शर्त क्षमायाचना की मांग करेंगी ?
2 क्या विश्वहिंदू परिषद तथा "भगवा ब्रिगेड"
माँ दुर्गा के अपमान पर द्रौपदी के चीरहरण के समय भीष्म/द्रोणाचार्य/कृपाचार्य की
भूमिका निभाएंगे ?
सीने को 56" फुलाना हरदम लाभदायक नहीं होता क्योकि
" धरा को प्रमाण यही तुलसी, जो फरा सो झरा, जो बरा वो बुताना "
" धरा को प्रमाण यही तुलसी, जो फरा सो झरा, जो बरा वो बुताना "
जिसका सीना 32" से 48" का होता है, वह अपना सीना maintain कर लेता है | जब कोई सीना 48" से भी फुलाकर 56" कर लेता है तो उचित
अवसर पर या तो वह फट जाता है या फिर सिकुड़कर 6" का हो जाता है , इसीलिए कहा
जाता है ___
" नानक नन्हे बनि रहो
जस नन्ही है दूब
और घास जरि जात है
दूब खूब की खूब "
जस नन्ही है दूब
और घास जरि जात है
दूब खूब की खूब "
स्मृति ईरानी ललकारते - ललकारते महिषासुर दिवस के मामले में पहुच गयीं तथा
तथ्यों से सामना हुआ तो बंगले झाकने लगीं | Indian Express में 27 फरवरी के कुछ अंश उद्धृत कर रहा हूँ ___
"Amid all the rhetoric over the JNU sedition
controversy the fact remains that there are tribal groups across the country
that believe in the counter - narrative and want the truth to be presented in
an unbiased manner. We are all born from the womb of the same mother Earth. But
we believe that Mahishashur was our king and he was killed dishonestly
by Durga. Why should a biased picture be
presented? As
it is, we do not have an idol of Mahishashur. We invoke him in our hearts.
"
Latehar के Netrahat के Sakhupali
गाँव के Sushma Asur के ये उद्दगार बताये जाते हैं / उसका परिचय Indian express में इन शब्दों में दिया गया है /
"Sushma is member of Asur, classified officially as a Primitive Tripe
Group, (PTG) and who number less than 10,000 in Jharkhand. And according
to experts,
the counter narrative of so-called demon kings being worshipped and their
slaying mourned exist among tribal groups across Jharkhand,
Bihar, West Bengal and Madhya Pradesh. "
सुषमा ने फिर अपने उद्दगार व्यक्त
किये हैं -
"We believe we are
the descendants Mahishashur. We do not celebrate Durga Puja. Our
rituals that have been passed on to us through generations tell us that we
should take protective measures on the night Mahishashur was killed. "
Vandana Tete का परिचय इन शब्दों में Indian Express ने दिया है-
"An activist who has
been working on conserving the heritage, history and
literature of tribals over the past decade"
Vandana Tete कह रही हैं -
" Not only among Asurs, the narrative exists in Santhals, one of the largest tribal groups. They mourn the deaths of Mahishashur and Ravana."
" Not only among Asurs, the narrative exists in Santhals, one of the largest tribal groups. They mourn the deaths of Mahishashur and Ravana."
स्पष्ट है कि Indian Express का एक क्रांतिकारी इतिहास रहा है - Emergency के
खिलाफ , Reservation के खिलाफ उसने Series निकाली है , बिहार के आँख फोड़ो काण्ड को
limelight में लाने का श्रेय उसको है पर किसी प्रख्यात इतिहासकार ( चाहे किसी
विचारधारा का हो ) या genuine देहाती आदमी का बयान उसे छापना चाहिए था | ऐसा लगता
है कि ये prejudiced communists के बयान हैं , innocent tribals के नहीं | Indian
Express के सम्पादक महोदय भी अवगत होंगे कि रावण ब्राह्मण था तथा ' रावणसंहिता '
के रूप में उसने ज्योतिष का अदभुत ग्रन्थ लिखा है | रावण पुलसत्य के वंश का है तथा
आज भी ' जटाटवी ' हर शिवमंदिर में गाया जाता है तथा वह अर्धनारीश्वर शिव तथा माँ
जगदम्बा का उपासक था | माँ दुर्गा का विरोधी कोई हो भी तो वह रावण का जयकारा कैसे
करेगा | इसके अलावा जितने भी दैत्य आदि रहे हैं , वे DNA से देवताओं के पितृपक्ष
से सौतेले तथा मातृपक्ष से मौसेरे भाई रहे हैं | महर्षि कश्यप के दो पत्नियाँ थीं
दिति और अदिति | दिति और अदिति दोनों सगी बहनें थीं | दिति के बच्चे दैत्य कहलाये
तथा अदिति के बच्चे आदित्य ( देवता ) | देवता और दैत्य अलग नस्ल ने नहीं हैं बल्कि
दोनों के पिता तो एक हैं ही साथ ही माताएं भी अलग नस्ल की न होकर सगी बहनें हैं |
अत: देवासुर संग्राम में आर्यों के विदेशी आक्रमण को ढूंढना केवल वाणी की वाचालता
है तथा दुर्भावना एवं पूर्वाग्रह से ग्रस्त है | आर्यों के विदेशी आक्रमणकारी होने
के सिद्धांत से मै सहमत नहीं हूँ किन्तु यदि कुछ दुराग्रही बुद्धिजीवियों के
कुतर्क के चलते यदि कोई इसे सत्य भी मान ले तो उसे यह मानना पड़ेगा कि दोनों की
नस्ल एक ही है चाहे वे जहाँ के रहने वाले हों | देवताओं और दैत्यों का संघर्ष लगभग
उस प्रकार का है जैसे इजराइली तथा अरब लोगों का | जवाहर लाल नेहरु जैसे लोग भले
मानते रहे हों कि इजराइली यूरोपीय देशों के हैं तथा वहां से आकर अरब लैंड में बस
गए किन्तु मिश्र के राष्ट्रपति नासिर ने कभी इस प्रकार की बकवास नहीं की | नासिर
बराबर कहते थे कि ( हम उन्हें पुन: समुद्र में फेंक देंगे अर्थात एक बार हम उनको
भगा कर समुद्र के रास्ते शरणार्थी बनने को मजबूर कर चुके हैं और दुबारा हम उन्हें
समुद्र के रास्ते भागने को मजबूर कर देंगे | इजराइली भी खतना कराते हैं तथा कोई
इजराइली सुअर का मांस नहीं खाता है | इजराइली पैगम्बर हजरत मूसा के बारे में कोई
भी दीनदार मुसलमान अपशब्द का प्रयोग नहीं कर सकता | इजराइली तथा मुसलमान में मात्र
इतना अंतर है कि वे ताजेदारे मदीना हजरत मोहम्मद साहब को पैगम्बर नहीं मानते |
सर्वाधिक शत्रुता होने के बावजूद अंतर केवल धर्म का है | देवता और दैत्य दोनों एक
परिवार के थे तथा ब्राह्मण थे | ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य तथा शूद्र इन चारों
की उत्पत्ति विराट पुरुष के विभिन्न अंगों से मानी गई है तथा ये सभी आपस में भाई
हैं | आज भी ब्राह्मणों , क्षत्रियों तथा वैश्यों के गोत्र एक हैं तथा ऐसी मान्यता
है कि शूद्रों के भी गोत्र वही हैं केवल वे अपना गोत्र भूल गए हैं | प्राचीन भारत
में कालचक्र में आरक्षण की प्रथा ने वर्णाश्रम व्यवस्था को जातिव्यवस्था में बदल
दिया तथा कटुता के बीज बो उठे फिर भी जिस एकलव्य को लेकर द्रोणाचार्य पर उलाहने
दिए जाते हैं उन्ही द्रोणाचार्य ने एकलव्य को सर्वश्रेष्ठ शिष्य की उपाधि से
विभूषित किया | अर्जुन भले ही एकलव्य की घटना के बाद सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर हो गए
हों किन्तु सर्वश्रेष्ठ शिष्य एकलव्य ही माना गया | मनुवादी पार्टी आज भी एकलव्य
को पूजनीय मानती है तथा हमें इस बात पर गर्व है कि युद्धिष्ठिर ने भले द्रोणाचार्य
के समापन के लिए अर्धसत्य बोल दिया हो तथा समाधिस्थ द्रोणाचार्य का सिर काट लिए
जाने के बाद भी अर्जुन ने सहन कर लिया हो किन्तु एकलव्य महाभारत के युद्ध में अपने
बाएं अंगूठे से शरसंधान करता हुआ द्रोणाचार्य की तरफ से लड़ा तथा उनके निर्देशन और
आदेश में अपने प्राणों का बलिदान किया | हम एकलव्य की गुरुनिष्ठा को सादर प्रणाम
करते हैं तथा इस घटना के बावजूद भी मन में कटुता का न आना उसको युग - युग तक प्रणम्य
बना देता है | ये सारा मतिभ्रम मैकाले के मानसपुत्रों तथा छद्मबुद्धिजीवियों का
फैलाया हुआ है | कल्याण सिंह कहाँ के और कैसे OBC हो गए , मेरी समझ से बाहर है |
कल्याण सिंह के समाज के लोग परम्परागत रूप से अपने को लोधी राजपूत कहते हैं | ये
फर्जी राजपूत नहीं हैं असली राजपूत हैं , पूर्वजन्म में कल्याण सिंह राजनाथ सिंह
के बड़े भाई थे तथा कल्याण सिंह के पूर्वज महाराज वेन के बड़े पुत्र थे | राजनाथ
सिंह के पूर्वज महाराज वेन के छोटे पुत्र थे | महाराज वेन के बड़े पुत्र ने
राज्याभिषेक के अवसर पर ब्राह्मणों के अनुशासन को तोड़ दिया तथा ब्राह्मणों ने उसे
राज्याधिकार से वंचित कर जंगल का राज्य दे दिया , वहीँ से वनवासी जातियों में से
अधिकाँश अपने को राजपूत मानती हैं तथा उनका यह दावा अनुचित नहीं है | मुझे याद है
कि एक बार कल्याण सिंह ने ललकारते हुए समाजवादी पार्टी को चुनौती दी थी कि यदि
उनकी बंदूकों से बारूद निकलती है तो हमारी बंदूकों से सरसों नहीं निकलती | वन के
निवास से थोडा सा रंग भले बदल गया हो किन्तु अकड़ और हेकड़ी तथा टेढ़ी गर्दन को
मानदंड बनाकर समीक्षा की जाए तो निषाद वंशीय जातियां तथा लोधी आदि क्षत्रियों की
तरह ही निर्भय हैं | रामचरितमानस में निषादराज ने अकेले दम पर भरत की अयोध्या की
सेना को ललकारा था -
" सन्मुख
लोह भरत सन लेहूँ
जियत न सुर सरि उतरन देहूं | "
जियत न सुर सरि उतरन देहूं | "
अर्थात आमने सामने मै भरत की सेना से लोहा लेने को तैयार हूँ तथा जीते जी भरत
को सेना समेत नदी के इस पार नहीं उतरने दूंगा | लक्ष्मण से कम टेढ़ी गर्दन निषादराज
की नहीं थी | इस युग में भी बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद जब पूरी भाजपा थर - थर
काँप रही थी तथा रो रही थी कि बड़े शर्म की बात है तो बाल ठाकरे के स्वर में स्वर
मिलाकर कल्याण सिंह ने ही हुंकार भरी थी कि उन्हें शर्म नहीं आती बल्कि उन्हें
गर्व है | पूरे हिन्दू समाज की आँख का तारा कल्याण सिंह बन गए थे किन्तु इतिहास
स्वयं को दुहराता है तथा यहाँ भी उसने पुन: अपने आप को दुहरा दिया | कल्याण सिंह
से वही गलती हुई जो कभी उनके पूर्वज रहे महाराज वेन के बड़े बेटे से हुई थी | अटल
बिहारी बाजपेई को ललकारते हुए उनको भुलक्कड , पियक्कड़ , tired , retired तथा न
जाने किस - किस चीज का शौक़ीन बता दिया | पुन: कालचक्र में कल्याण सिंह निर्वासित
हुए तथा फिर से राजनाथ सिंह के छोटे भाई बन गए | इसी क्रम में मै कुछ नए वर्गों के
गोत्रों का उल्लेख करता हूँ | लोहार , बढई , सोनार , तमेर तथा शिल्पकार ये पांच
जातियां मूलतः ब्राह्मण थीं तथा द्रुपद जैसे पांचाल देश के राजाओं ने जब एक गाय
देने की जगह द्रोणाचार्य को अपमानित कर दिया जोकि उनके गुरुपुत्र थे तब ब्राह्मण
समाज के एक बड़े तबके में निराशा व्याप्त हुई तथा ये पांच जातियों के लोग
शिल्पकार्य में लग गए | आज भी लोहार , बढई अपने को अन्य जातियों की तरह सिंह न
घोषित करके शर्मा लिखते हैं तथा इसके पीछे ऐतिहासिक कारण है | नाई , बारी आदि
जातियां किस तरह से जाबाल गोत्र के ब्राह्मण हैं इसकी विस्तृत व्याख्या जिसे जाननी
हो वह सत्यकाम जाबाल का इतिहास पढ़ ले | अहीरों को किस प्रकार गौरक्षा का काम मिला
तथा किस प्रकार ये ब्राह्मण समाज की एक शाखा हैं इसका वर्णन मनुस्मृति के दसवें
अध्याय में पढ़ा जा सकता है | डोम जाति को क्यों शनिवार का दान मिलता है जबकि दान
लेने पर ब्राह्मणों का एकाधिकार था इसके गहन अध्ययन के लिए शास्त्रों का अनुशीलन
आवश्यक है | कुर्मी तथा शैथवार किस प्रकार क्षत्रियों के अंग हैं इस पर कई ग्रन्थ
लिखे जा चुके हैं | आगे भी इस विषय में ऐतिहासिक तथा सामाजिक शोध की आवश्यकता है
किन्तु किसी भी कीमत पर देवताओं और दैत्यों की लड़ाई को अलग नस्लों के रूप ने
चित्रित करने का कोई औचित्य नहीं है | इतिहासकारों के मत अलग हो सकते हैं ,
शास्त्रार्थ हो सकते हैं किन्तु अन्य बिन्दुओं पर जो विवाद हो रावण के तथा दैत्यों
के शिवभक्त होने पर संदेह के बादल दूर - दूर तक नहीं हैं | साथ ही अन्यों के बारे
में भले ही मतभेद हो किन्तु इनके ब्राह्मण होने के बारे में किसी मतभेद की गुंजाइश
नहीं है | आज भी श्राद्ध के समय यदि किसी का गोत्र याद नहीं आता है तो उसे कश्यप
गोत्र का बताकर जल अर्पित किया जाता है |
निष्पक्ष समीक्षा से यह निष्कर्ष
निकलता है कि भारत में विघटन पैदा करने के लिए साम्यवादियों द्वारा घुट्टी पिलाई
जा रही है तथा आदिवासियों की यह मान्यता नहीं है | रावण सर्वसम्मति से ब्राह्मण था
तथा ऐसा माना जाता है फिर भी ब्राह्मण राम की पूजा करते है | इसी प्रकार परशुराम
को भी स्वयं राम भगवान् का अवतार मानते हैं तथा क्षत्रिय राजा सहस्त्रबाहु के वध
के बावजूद भी क्षत्रिय उन्हें पूजते हैं |
जिन पूर्वाग्रहग्रस्त बुद्धिजीवियों ने आदिवासी शब्द गढ़ा , सबसे बड़ा देशद्रोह
- देश के विघटन का षड्यंत्र उन्होंने किया | हम tribals को वनवासी कह सकते हैं ,
आरण्यक कह सकते हैं , पर उन्हें आदिवासी नहीं कहा जा सकता | यदि tribals वनवासी
हैं , तो बाकी लोग क्या विदेशी हैं ? क्या वे settlers हैं ? यदि ये विदेशी होते ,
तो एक बार सत्ता का पूर्ण नियंत्रण तथा गाँव - गाँव आबादी फैलने के बाद Red
Indians की तरह उनका पूरा सफाया हो गया होता |
इसके अलावा यदि यह theory भी कुतर्क के लिए मान ली जाए कि आर्य विदेश से आए तो
भी भारत तो सांस्कृतिक एकता की धरोहर है | शम्बूकवध की घटना सही है या कल्पित , मै
कुछ कहकर विवाद को बढ़ावा नहीं देना चाहता , किन्तु यदि सच भी हो तो कभी भी तुलसीदास
ने किसी काण्ड में इतने विस्तार में रावणवध का वर्णन करने के बावजूद भी कभी एक
शब्द भी शम्बूकवध के बारे में नहीं लिखा | इतना ही नहीं , आधुनिक युग के मनीषी
अम्बेडकर साहब ने कभी शम्बूकवध का बदला लेने की घोषणा नहीं की और न ही कभी राम को
अपमानित करने का प्रयास किया | लोहिया , जो मार्क्स के भारतीय संस्करण समाजवाद के पुरोधा
बने थे , ने अलबत्ता घोषणा किया कि ' हमें सीता के आंसुओं का और शम्बूक के खून का
बदला लेना है ' जैसे कि सीता और शम्बूक लोहिया के दरवाजे पर राम के खिलाफ FIR
लिखाने पहुंचे हों | खींच के पलटी मारा दलित की बेटी मायावती ने तथा लोहिया की 85
% की लड़ाई हवा में उड़ गई | शम्बूक की पुण्यतिथि पर अब समाजवादी पार्टी अवकाश की
घोषणा नहीं करती है बल्कि परशुराम जयंती पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाता है |
मायावती ने भी शम्बूक पार्क का निर्माण न करके अम्बेडकर पार्क का निर्माण किया |
मुलायम तथा अखिलेश लोहिया पार्क तथा जनेश्वर मिश्र पार्क बनाते हैं , शम्बूक पार्क
नहीं | 85 % की लड़ाई लड़ने की घोषणा करने वालों के वंशज अब परशुराम जयंती मना रहे
हैं , जनेश्वर मिश्र पार्क बनवा रहे हैं , राजा भैया , अरविन्द सिंह गोप , राज
किशोर सिंह तथा पंडित सिंह के साथ मिलकर अपने को सुगठित कर रहे हैं | मायावती भी
जितने टिकट दलितों को दे रही हैं उससे कम टिकट ब्राह्मणों या क्षत्रियों को नहीं
दे रही हैं , चाहे उनकी आबादी कम ही मानती हों | कहीं भी अब यह नारा नहीं सुनाई दे
रहा है -
" तिलक
तराजू कलम तलवार |
इनको मारो जूते चार || "
इनको मारो जूते चार || "
यही भारतीय संस्कृति है | यही लोहिया की गंगाजमुनी संस्कृति है | यही दीनदयाल
उपाध्याय का एकात्म मानववाद है | यही अटल बिहारी बाजपेई का राजधर्म है | यही गांधी
का रामराज्य है | भारतीय संस्कृति समावेशी रही है , आज सभी सनातनी हिन्दू बुद्ध को
भगवान् विष्णु का अवतार मानते हैं , चाहे पुष्यमित्र शुंग तथा पतंजलि का इतिहास
कुछ भी रहा हो | यही सर्वग्राही भाव भारत को पूजनीय बनाता है | यह दुखद है कि
कम्युनिस्ट तथा बाबा साहेब के नाम का दुरूपयोग करने वाले ऐसे लोग जो रिपब्लिकन
पार्टी या बसपा से अधिक कम्युनिस्टों या JNU से प्रेरित हैं , इस समावेशी संस्कृति
का माहौल बिगाड़ रहे हैं | BSP या रिपब्लिकन पार्टी ने कभी माँ दुर्गा को गाली नहीं
दी - जहां तक मेरी जानकारी है , कभी भी मायावती ने महिषासुर दिवस का न तो आयोजन
किया और न ही ऐसे किसी आयोजन के आमंत्रण को स्वीकार किया | ऐसे आयोजनों में JNU की
कम्युनिस्ट संस्कृति से प्रभावित उदित राज जैसे ही लोग शामिल हुए होंगे | मायावती
ने ' जस्टिस पार्टी ' के नाम पर समाज के ताने - बाने को ध्वस्त करने वाले इन लोगों
को ऐसा सबक सिखाया कि ' दिल के अरमां आंसुओं में बह गए ' | अलग पार्टी बनाकर अपनी
दुनिया बसाने का उदितराज का सपना चकनाचूर हो गया तथा वे भागकर भाजपा की शरण में गए
, जिसकी आलोचना करते थे | समाज में अव्यवस्था फैलाने की उदितराज की कोशिशों को
मायावती ने इस तरह से दबाया कि पत्रकारों को दमनचक्र के फोटो उदितराज जी ने दिए
तथा पूरी दुनिया ने देखे | आरक्षण की मांग सभी करते हैं - कोई समर्थन करता है ,
कोई विरोध किन्तु backlog , promotion in reservation तथा consequential benefits
के मुद्दे पर समाज को reservation के मुद्दे पर विघटन की मोड़ तक पहुंचाने का श्रेय
Justice Party को है | जिस कार्यक्रम में माँ दुर्गा को क्या - क्या कहा गया , उन
शब्दों को दुहराना भी पाप समझता हूँ | उन लाइनों को उदधृत करते समय लेखनी और वाणी
अवरुद्ध हो रही है , दिमाग झनझना रहा है , उन समारोहों में यदि उदितराज ने शिरकत
की तो उन प्रसंगों को देखकर , सुनकर यदि ताली नहीं पीट रहे थे , तो इतनी कृपा भी
नहीं किये कि उठकर चले जाएँ | यह स्वयं में उचित है या नहीं , इसकी व्याख्या
धार्मिक तथा कानूनी दोनों पहलुओं से की जा रही है | क्रमश:
जहाँ तक धार्मिक पहलू का सवाल है , उदितराज 100 % गलत हैं | इसकी घोषणा स्वयं
माँ दुर्गा ने ' कुमारसंभव ' में की है -
" न केवलं यो महतोडपमाषते |
श्रणोति तस्मादपि य: स पापमाक || "
श्रणोति तस्मादपि य: स पापमाक || "
जो अपने से महान किसी व्यक्ति को अपशब्द कहता है , केवल वही पापी नहीं है - जो
उन शब्दों को सुनता है , वह भी पापी है |
यह प्रसंग कुमारसंभव के पांचवे सर्ग का है | जब शिवजी रूप बदलकर पार्वती जी से
अपनी बुराइयां गिनाने लगे तो माँ पार्वती ने कहा कि आप ऋषिरूप में हैं , आपको यहाँ
से भगाना मर्यादा का उल्लंघन है , किन्तु मै तो जा सकती हूँ | मै चली , अब मै आपकी
बात नहीं सुनने को , अब मै चली |
इसी मान्यता की पुष्टि तुलसीदास ने रामचरितमानस में की है -
" हरिहर
निंदा सुनै जो काना |
पाप लगै गऊघात समाना || "
पाप लगै गऊघात समाना || "
अर्थात विष्णु और शिव की निंदा जो अपने कान से सुनता है , वह उतना बड़ा पाप
करता है , जितना बड़ा पाप गौहत्या करने वाले को लगता है | इस तरह आध्यात्मिक तथा
धार्मिक दृष्टि से उदितराज माँ दुर्गा के अपमान के दोषी हैं |
अब आइये कानूनी पहलू की ओर , जहाँ तक मेरी समझ है , 149 IPC का क्षेत्र बहुत
बड़ा है | यही हाल NSA का है , मै कानूनी पहलू से इसकी समीक्षा करने जा रहा हूँ |
मै University का professor नहीं रहा - Law Courts में माननीय Supreme Court तथा
High Court में natural justice तथा constitutional aspects पर academic बहस का पर्याप्त अनुभव भी नहीं किन्तु
law enforcing agency के bottom से लेकर शीर्ष तक के अनुभव तथा legal aptitude के
कारण ' अल्पविद्या भयंकारी ' के चलते मेरी व्याख्या में कोई त्रुटि हो तो लगभग
1000 से ऊपर विद्वान् अधिवक्ता मेरे penfriends हैं , कुछ माननीय न्यायमूर्ति रह
चुके हैं | माननीयों की भी इतनी कृपादृष्टि मुझ पर है कि मेरे प्रलापों को न केवल
पढने का कष्ट करते हैं , बल्कि उनके सुधार के लिए सुझाव भी देते हैं , जिन्हें मै
प्रतिटिप्पणी के बाद अपना शंकासमाधान करने बाद न्यायिक फैसले के रूप में शिरोधार्य
करते हुए अपनी पोस्ट को संशोधित कर देता हूँ | कहीं कोई सुधार की आवश्यकता हो , तो
सुधीजन निर्देशित करने का कष्ट करें | Police Action दो प्रकार का होता है -
1. Substantive Action तथा
2. Preventive Action
Substantive Action में अगर कोई समूह
कोई अपराध करता है या बिना किसी पूर्वनिर्धारित योजना के कोई अपराध होने लगता है
तो भी ' Common intention may develop on the spot . माँ दुर्गा को अपशब्द कहना
निस्संदेह अपराध है तथा इसमें कोई दो राय नहीं है | Equality of law एक
fundamental right के रूप में भारत में वर्णित है तथा कमलेश तिवारी के मामले में
जेल भेजा जा सकता है तो माँ दुर्गा को गाली जिसने दिया है तथा घनघोर अपशब्द कहे
हैं , इसे राहुल तथा केजरीवाल , Soli Sorabjee महोदय या प्रशांत भूषण अगर गंगाजल
उठाकर भी कहें कि माँ दुर्गा को JNU में गाली देना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है ,
तो मेरा अन्तर्मन इसे नहीं मानेगा | माँ दुर्गा को गाली देना अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता है या नहीं - इस पर प्रशांत भूषण जी तथा Soli Sorabjee तर्क कर सकते
हैं किन्तु natural justice के principles के अनुसार इस पर कोई बहस नहीं हो सकती
कि माँ दुर्गा को गाली देना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है तथा कमलेश तिवारी अपराधी
हैं | मै कमलेश तिवारी को निर्दोष नहीं मानता तथा उनको छोड़ने की मांग नहीं कर रहा
हूँ | मेरी वाणी मात्र इतनी है कि U.P तथ दिल्ली में कानून की किताबें एक हैं |
न्यायालय भी कमलेश तिवारी को अब तक दोषी मान रहा है वरना अभी तक छोड़ क्यों नहीं
दिया | अगर कमलेश तिवारी दोषी हैं तो माँ दुर्गा को अपशब्द कहने वाले निर्दोष कैसे
हैं ? यहाँ यह उल्लेखनीय है कि आपराधिक मामला कभी कालबाधित ( timebarred ) नहीं
होता | कभी उसकी expiry date नहीं होती | यदि अभियुक्त ज्ञात न हो तो भी ' बनाम
अज्ञात ' मुकदमा पंजीकृत होना ही चाहिए तथा विवेचक को अपराधी का पता लगाना चाहिए |
जब रात में अँधेरे की डकैती का पता चल जाता है - work out हो जाती है - तो सबके
सामने जो कार्यक्रम हुए , उनमे दायित्व का निर्धारण क्यों नहीं हो सकता ? रासुका
अगर कमलेश तिवारी पर लग सकती है तो माँ दुर्गा को गाली देने वाले पर क्यों नहीं ?
गांधी के सम्मान के लिए मात्र गोंडसे का नाम ले लेने पर अमित शाह साक्षी जी की
class लेते हैं | ' रामजादे ' कहने पर तथा चार बच्चे पैदा करने के आह्वान पर
साध्वी , प्राची की क्लास ली जाती है | अमित शाह मोदी जी के साधक हैं तथा मोदी जी
भी धरती की माँ जिसने जन्म दिया तथा ब्रह्मांड की माँ , माँ दुर्गा दोनों के साधक
हैं | मै कहीं युद्धोन्माद नहीं फैला रहा , मै तो मात्र इतनी मांग कर रहा हूँ कि
अगर माँ दुर्गा को गाली देने वाले ज्ञात हैं तो ज्ञात के विरुद्ध अज्ञात के
विरुद्ध मुकदमा कायम किया जाए तथा case को work out करके दोषियों के विरुद्ध उतनी preventive
तथा substantive ( रासुका समेत ) कार्यवाही की जाए जितनी कमलेश तिवारी के मामले
में की गई है | इसमें सीताराम येचुरी को भले एतराज हो या न हो , वे जाने किन्तु
ओवैसी से लेकर शाही इमाम तक कोई भी इसका विरोध नहीं कर सकता | ईशनिंदा (blasphensy) के पक्ष में किसी धर्म को मानने वाला नहीं बोल सकता है |
मै यह भी नहीं कह रहा हूँ कि उदितराज जी अपराधी हैं किन्तु इस पर सर्वसम्मति है - स्वयं उदितराज जी मान
चुके हैं कि वे घटनास्थल पर मौजूद थे | विवेचक निष्पक्ष समीक्षा कर लें कि उनकी
भूमिका क्या थी | यदि उदितराज जी निर्दोष हों तो गवाह के रूप में उन्हें बुलाकर
उनसे पूछताछ की जाए तथा यदि वे दोषी पाए जाएँ तो अभियुक्त के रूप में | किन्तु
मोदी जी तथा स्मृति ईरानी जैसे दुर्गाभक्त को , अमित शाह जी जैसे मोदी भक्त को
इसका उत्तर देना ही होगा कि -
1. अब तक माँ दुर्गा के अपमान पर मुकदमा कायम क्यों नहीं हुआ ?
2. यह मुकदमा कब तक कायम होगा तथा
3. कब तक इसकी विवेचना पूर्ण हो करके work out होने की संभावना है ?
इसमें कौन सी बात unconstitutional है | Ribero जी बताएं - मेरे आका रह चुके
हैं - कि कहीं इसमें कोई डराने वाली बात तो नहीं | मै अपनी लेखनी को संशोधित कर
लूँगा | प्रशांत भूषण जी तथा Soli Sorabjee बताएं कि क्या माँ दुर्गा को गन्दी गाली
देने में कोई अलग कानून लगने चाहिए या कमलेश तिवारी वाला ? क्या यह Article 14 Equality bglive Law का उल्लंघन नहीं है ? क्या बिना लाखों का जुलूस
निकले किसी की बात नहीं सुनी जानी चाहिए ? इन यक्ष प्रश्नों का उत्तर समाज मांग
रहा है | रही बात स्मृति ईरानी जी को तो उन्हें पता होना चाहिए कि भारतीय संविधान
में collective responsibility का सिद्धांत चलता है | अगर यह मुकदमा कायम नहीं
होता है , तो माँ दुर्गा के अपमान का पुलिस प्रशासन समेत गृहमंत्रालय तथा सम्पूर्ण
मंत्रिमंडल जिम्मेदार है | रही बात धार्मिक जिम्मेदारी की तो इसकी चर्चा पहले हो चुकी
है | यह कहना कि उदितराज जी उस समय भाजपा के सदस्य नहीं थे, पर्याप्त नहीं है |
क्या कमलेश तिवारी को पीस पार्टी , ओवैसी की पार्टी या PDM की सदस्यता मिल पायेगी | यदि अज्ञानता में मिल भी जाए तो क्या बरकरार रह
पायेगी ? हम कितने भी tolerant हों , उदितराज जी से इतनी अपेक्षा तो की जाती है कि
माँ दुर्गा के चरणों में उनकी आस्था हो तो और न आस्था हो तो भी जिस सभा में माँ को
गाली दी जा रही थी , उस सभा में उपस्थिति के लिए माँ से क्षमायाचना करें तथा
भविष्य में ऐसी किसी सभा में शिरकत न करने का वचन दें | मै बहुत स्वल्प प्रायश्चित
की बात कर रहा हूँ | यदि इतना प्रायश्चित कराये बगैर भाजपा उदितराज को बरकरार रखती
है , तो इसका उत्तर हमारी मनुवादी पार्टी के कार्यकर्ता हर गाँव में भगवाधारी
पूजनीयों से मांगेंगे कि आपने जिस पार्टी के लिए चाहा , उसको वोट दिलाया - अब
राममन्दिर के लिए संघर्ष की बात करते है- सरकार आपके वोट से बनी - आप इतने सक्षम
क्यों नहीं हो पा रहे हो कि एक शुद्ध संवैधानिक कार्य ही करा दें कि माँ दुर्गा के
अपमान के लिए मुकदमा कायम कराकर सही विवेचना करा दें | राम भी तो दुर्गा के भक्त
थे , माँ दुर्गा अगर गाली खाएँगी , तो क्या, राम अपना मंदिर बनने से प्रसन्न नहीं
होंगे ? वे माँ दुर्गा के सम्मान की रक्षा के लिए अपना धनुष उठा लेंगे | रामलला
मात्र निर्जीव पत्थर के टुकड़े नहीं है - उनमे वैदिक प्राणप्रतिष्ठा हुई है | वे
जीवित विग्रह है | माननीय न्यायालय तक उनको जीवन्त मानता है, तभी तो वे पक्षकार बन
सकते है | यह कोरा अन्धविश्वास नहीं है |
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